दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व पति के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर की गई शिकायतों के बारे में पति को जानकारी देने से इनकार करने वाले सीआईसी के आदेश को बरकरार रखा
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा पारित उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें एक पति को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत उसकी पत्नी द्वारा अपने दो पूर्व पतियों और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दर्ज की गई शिकायतों के बारे में जानकारी देने से इनकार कर दिया गया है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि चूंकि मांगी गई जानकारी केवल पत्नी ही नहीं बल्कि उसके पूर्व पति और अन्य व्यक्तियों से संबंधित है, जिनके खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी, इसलिए आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) के तहत प्राप्त छूट इस मामले में लागू होती है।
कोर्ट ने कहा कि,
''इस प्रकार, इस मामले में जिस गोपनीयता पर विचार किया जाना है, वह केवल प्रतिवादी नंबर 4 की गोपनीयता नहीं है, बल्कि वास्तव में उन पतियों व ससुराल वालो की भी है जिनके खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी।''
''इस मामले में व्यक्तिगत जानकारी केवल याचिकाकर्ता या प्रतिवादी नंबर 4 से संबंधित नहीं है, बल्कि उन अन्य व्यक्तियों से भी संबंधित है जो उक्त शिकायतों और प्राथमिकी का विषय हैं। इस प्रकार, आरटीआई एक्ट, 2005 की धारा 8 (1) (जे) के तहत अपवाद वर्तमान मामले में स्पष्ट रूप से लागू होगा।''
इस मामले में तीसरे पति यानी याचिकाकर्ता द्वारा चार आरटीआई आवेदन दायर किए गए थे, जिनमें उसकी पत्नी द्वारा अपने पूर्व के दो पतियों के खिलाफ दर्ज शिकायतों के बारे में जानकारी मांगी गई थी।
याचिकाकर्ता ने दिसंबर 2017 में प्रतिवादी नंबर 4/अपनी पत्नी से शादी की थी और कुछ समय बाद ही दंपति के बीच वैवाहिक विवाद पैदा हो गए। जिसके बाद दोनों पक्षों द्वारा विभिन्न शिकायतें दर्ज की गईं।
पति ने विवाह को अमान्य घोषित करने की मांग करते हुए एक मुकदमा दायर किया और दलील दी कि उनका विवाह विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 25 (iii) का उल्लंघन करता है और इसलिए एक शून्यकरणीय विवाह है। इसके अतिरिक्त, पत्नी द्वारा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498ए, 406, 377 और 34 के तहत एक आपराधिक शिकायत दर्ज की गई है, जिसमें याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया है।
महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष पुलिस इकाई के सीपीआईओ ने पति के आरटीआई अनुरोधों को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उक्त जानकारी का खुलासा आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (जे) के तहत प्रतिबंधित है।
जवाब में कहा गया कि,''आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (जे) के अनुसार अपेक्षित दस्तावेजों की प्रति प्रदान नहीं की जा सकती है क्योंकि इसके प्रकटीकरण से व्यक्ति की निजता पर अनुचित आक्रमण होगा और इस जानकारी का खुलासा करने में कोई बड़ा सार्वजनिक हित नहीं है।''
पति द्वारा दायर पहली अपील में, प्रथम अपीलीय प्राधिकारी ने 12 सितंबर, 2018 के आदेश के तहत उनके अनुरोध को फिर से खारिज कर दिया।
इसलिए प्रथम अपील आदेश को चुनौती देते हुए पति द्वारा सीआईसी के समक्ष दूसरी अपील दायर की गई। 5 जनवरी, 2021 के आदेश में सीआईसी ने माना कि मांगी गई जानकारी आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (जे) के तहत कवर होती है।
प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष कार्यवाही के दौरान, दिल्ली पुलिस द्वारा एक संक्षिप्त स्टे्टस रिपोर्ट दायर की गई थी जिसमें प्रतिवादी-पत्नी की तरफ से दायर पहली, दूसरी और तीसरी शिकायत का विवरण अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष प्रस्तुत दिया गया था। यह शिकायत उसने अपने पूर्व पतियों और वर्तमान पति यानी याचिकाकर्ता के खिलाफ दायर की थी।
इस प्रकार याचिकाकर्ता पति का मामला यह है कि पत्नी पहले ही दो शादियां कर चुकी है और तीसरी शादी उसके साथ की है। इसे देखते हुए, अधिवक्ता सचिन दत्ता ने प्रस्तुत किया कि पत्नी ने उसके मुवक्किल यानी याचिकाकर्ता के खिलाफ धोखाधड़ी की है क्योंकि उसने तीनों पतियों के खिलाफ लगभग समान आरोप लगाए गए हैं।
इसके अलावा, याचिकाकर्ता-पति ने तर्क दिया कि यदि सूचना का किसी सार्वजनिक गतिविधि से कोई संबंध नहीं है और इसे व्यापक जनहित में प्रकट करना आवश्यक है। इसलिए उक्त जानकारी का खुलासा आरटीआई अधिनियम के तहत किया जाना चाहिए।
दूसरी ओर, प्रतिवादी जीएनसीटीडी ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 498ए और धारा 377 के तहत पूर्व पतियों के खिलाफ कथित अपराधों से संबंधित संवेदनशील जानकारी मांगी है। इसलिए, यह तर्क दिया गया कि प्राथमिकी के तथ्य सार्वजनिक नहीं किए जाने चाहिए।
यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता पति के पास पहले से ही स्टे्टस रिपोर्ट है, कोर्ट ने कहा किः
'' याचिकाकर्ता के पास उपलब्ध उपायों के साथ, यह स्टे्टस रिपोर्ट स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि मांगी गई जानकारी के संबंध में याचिकाकर्ता रेमिडीलैस नहीं है।''
''तदनुसार, इस न्यायालय की राय है कि आक्षेपित आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मांगी गई जानकारी आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(जे) द्वारा शासित है। हालांकि, तथ्य स्पष्ट है कि इन याचिकाओं को अस्वीकृत करना किसी भी तरह से कलकत्ता हाईकोर्ट और महिला न्यायालय, द्वारका, दिल्ली के समक्ष कानून के अनुसार याचिकाकर्ता के राहत/उपचार की मांग करने के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा, जहां याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रतिवादी नंबर 4 द्वारा दायर आपराधिक शिकायत लंबित है।''
अदालत ने हालांकि याचिकाकर्ता पति को दिल्ली पुलिस द्वारा उपलब्ध कराई गई ओपन स्टे्टस रिपोर्ट को शेष प्रासंगिक रिकॉर्डों को मंगवाने के लिए उपयुक्त मंच के समक्ष रखने की अनुमति दी है, जिस पर अदालत द्वारा कानून के अनुसार विचार किया जाए।
केस का शीर्षकः अमित महरिया बनाम पुलिस आयुक्त व अन्य।
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