"हर रात के बाद सुबह होती है" : लॉकडाउन में टोकरी बनाने को मजबूर वकील को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीआर रामचंद्र मेनन ने दिए 10 हज़ार रुपए
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पीआर रामचंद्र मेनन ने हाल ही में तमिलनाडु के एक युवा अधिवक्ता को दस हजार रुपये उपहार में दिए हैंं क्योंकि COVID19 संकट के कारण यह वकील अपने टोकरी बुनाई के पारंपरिक काम को फिर से करने को विवश हो गया है।
पिछले हफ्ते टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जिसमें बताया गया था कि 34 साल का उथमाकुमारन अपने पारंपरिक काम को फिर से अपनाने को मजबूर हो गया है, क्योंकि उन्हें COVID के चलते लगाए गए लॉकडाउन के कारण वह वित्तीय रूप से बेहाल हो गया था।
उसने टीओआई को बताया कि-
''चूंकि मुझे जीवित रहना था, इसलिए मैं किसी भी काम को करने के लिए तैयार था। लेकिन केवल मुझे एक ही काम और आता था,वो है जंगली खजूर के पत्तों से टोकरियां बुनने का,जो मेरा पैतृक व्यवसाय है।''
मुख्य न्यायाधीश मेनन ने श्रम की गरिमा के लिए उसकी ''प्रतिबद्धता'' की सराहना करते हुए लिखा कि-
'' कृपया इस पत्र के साथ संलग्र किए गए 10,000 रुपये की राशि का एक चेक भी प्राप्त करें ... यह किसी सहानुभूति के कारण दिया गया कोई दान या योगदान नहीं है, लेकिन एक 'उपहार' है। क्योंकि 'श्रम की गरिमा' के प्रति आपकी अवधारणा/प्रतिबद्धता के कारण आप इस सम्मान और सराहना को पाने के हकदार हैं।''
उथमाकुमारन, आदिवासी मलाई कुरुवर समुदाय से हैं। उसने टीओआई को बताया कि वर्ष 2010 में उसने लाॅ ग्रेजुएटशन की पढ़ाई पूरी कर ली थी। उसके बाद वह तंजावुर स्थित पट्टुकोट्टई अदालत में प्रैक्टिस करने लग गया था। महामारी शुरू से पहले वह प्रतिमाह 25 हजार रुपये कमाता था।
इस ''दिल दहला देने वाली खबर'' को पढ़ने के बाद से चीफ जस्टिस मेनन ने थमाकुमारन से संपर्क किया और प्रशंसा के एक टोकन के साथ उसकी प्रतिबद्धता की सराहना की।
उन्होंने कहा कि उथमाकुमारन की कहानी बड़े पैमाने पर ''वकील बिरादरी को 'सकारात्मक' रहने के लिए 'सचेत' करती है, क्योंकि "हर रात के बाद सुबह होती है।''