''समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा'': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक लिव-इन कपल को संरक्षण देने से इनकार किया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार (12 मई) को एक लिव-इन कपल को संरक्षण देने से इनकार करते हुए कहा कि ''अगर जिस तरह के संरक्षण का दावा किया गया है,उसकी अनुमति दे दी जाती है, तो इससे समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।'' इस कपल ने अपनी याचिका में बताया था कि उनको कथित रूप से लड़की के परिवार से खतरा है।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा,
''याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) मुश्किल से 18 साल की है जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 (लड़का) 21 साल का है। वे लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने का दावा कर रहे हैं और अपने जीवन की सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) के रिश्तेदारों से संरक्षण दिलाए जाने की मांग कर रहे हैं।''
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा,
''यदि इस तरह के संरक्षण का दावा करने वालों को इसकी अनुमति दे दी जाएगी, तो इससे समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा। इसलिए, संरक्षण देने के लिए कोई आधार नहीं बनता है।''
संबंधित समाचार में, एक इंटरफेथ जोड़े द्वारा दायर एक संरक्षण याचिका में, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि एक मुस्लिम महिला और एक हिंदू पुरुष के बीच विवाह मान्य नहीं होगा क्योंकि दुल्हन ने हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार शादी करने से पहले हिंदू धर्म में धर्मांतरण नहीं किया था।
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार (10 मार्च) को एक डीड द्वारा समर्थित 'संविदात्मक(कॉन्ट्रेक्टचुअल) लिव-इन-रिलेशन की नई अवधारणा' पर अपनी अस्वीकृति दर्ज की थी, जिसमें पक्षकारों ने कहा था कि उनका लिव-इन-रिलेशनशिप 'वैवाहिक संबंध' नहीं है।
न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान की खंडपीठ ने कहा था कि 'विशेष रूप से (विलेख/डीड में) यह कहते हुए कि यह 'वैवाहिक संबंध नहीं है',कुछ और नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, क्योंकि इसे नैतिक रूप से समाज में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा, पिछले साल पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह माना था कि सिर्फ इसलिए कि लड़का विवाह योग्य उम्र का नहीं है (हालांकि बालिग है) याचिकाकर्ताओं के साथ रहने के अधिकार को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा, यह देखते हुए कि ''माता-पिता एक बच्चे को अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं और प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को अपने जीवन को जीने का अधिकार है जैसा कि वह उचित समझता है'',हाईकोर्ट ने एक जोड़े के लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के अधिकार बरकरार रखा था।
''निश्चित रूप से, वह एक बालिग है। केवल इस तथ्य के कारण कि याचिकाकर्ता नंबर 2 विवाह योग्य आयु का नहीं है, याचिकाकर्ताओं को संभवतः उनके मौलिक अधिकारों का उपयोग करने से रोका नहीं जा सकता है जैसा कि भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत परिकल्पित है।''
गौरतलब है कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले साल टिप्पणी की थी कि घर से भागने वाले कपल की तरफ से दायर एक संरक्षण याचिका पर सुनवाई करने वाली अदालत को नैतिकता या मानवीय व्यवहार पर उपदेश देने की जरूरत नहीं है।
न्यायमूर्ति राजीव नारायण रैना की पीठ ने यह स्पष्ट किया था कि ऐसे मामलों में, अदालत को नैतिकता के बारे में अपने व्यक्तिगत विचार प्रस्तुत नहीं करने चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आर्टिकल 21 के तहत कपल के अधिकारों की रक्षा की जाए।
''इस अदालत को एक संरक्षण की याचिका पर सुनवाई करते समय सामाजिक कार्य, मानदंडों और मानव व्यवहार में संलग्न होने या नैतिकता पर व्यक्तिगत विचारों को पेश करने की जरूरत नहीं है।''
जनवरी 2020 में भी, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि माता-पिता अपनी शर्तों पर एक बच्चे को जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति अलका सरीन की खंडपीठ ने आगे दोहराया था कि केवल इसलिए कि लड़का विवाह योग्य उम्र का नहीं है (हालांकि बालिग है) याचिकाकर्ताओं के साथ रहने के अधिकार को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा, यह देखते हुए कि ''माता-पिता एक बच्चे को अपनी शर्तों पर जीवन जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं और प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को अपने जीवन को जीने का अधिकार है जैसा कि वह उचित समझता है'',हाईकोर्ट ने एक जोड़े के लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के अधिकार बरकरार रखा था।
केस का शीर्षक -उज्ज्वल व अन्य बनाम हरियाणा राज्य व अन्य, सीआरडब्ल्यूपी-4268-2021(ओ एंड एम)
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