राज्य द्वारा अपील करने के लिए अनुमति मांगने से पहले मामलों की उचित जांच की जाए: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि राज्य द्वारा अपील की अनुमति मांगने के लिए मामलों को भेजे जाने से पहले उनकी उचित जांच की जाए।
न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता 12 फरवरी, 2020 के एक फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए राज्य द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थीं। इसमें मामले के प्रतिवादियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 397 सपठित धारा 34 के तहत अपराध के लिए बरी कर दिया गया था।
अभियोजन पक्ष का यह मामला था कि शिकायतकर्ता राज कुमार ने वर्ष 2011 में एक टैक्सी किराए पर ली। टैक्सी में ड्राइवर के अलावा तीन व्यक्ति पहले से बैठे थे।
उनका मामला था कि कार के अंदर बैठने के बाद ड्राइवर सीट के पास बैठे व्यक्ति ने उनकी ओर छुरी से इशारा किया और अपना सामान उसे देने को कहा। हालांकि, उसके पास पैसे नहीं थे। इसलिए ड्राइवर की सीट के बगल में बैठे व्यक्ति ने उसकी नाक पर मुक्का मार दिया।
यह भी आरोप है कि बगल की सीट पर बैठे दो हमलावरों ने उनकी जांघों पर चाकुओं से हमला किया।
इस प्रकार यह राज्य का मामला है कि ट्रायल कोर्ट ने उन प्रतिवादियों को बरी करने में गलती की जो चालक की सीट और वाहन के चालक के बगल की सीट पर बैठे थे। उक्त आरोपियों को आईपीसी की धारा 397 सपठित धारा 34 के तहत दंडनीय अपराध के लिए भले ही उन्हें दोषी ठहराया गया हो, राज्य सरकार ने प्रार्थना की कि आईपीसी की धारा 393 के तहत दोनों लोगों को दोषी ठहराया जाए।
अदालत का विचार था कि प्रतिवादियों ने किसी घातक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया। फिर यह कानून के अनुसार सही भी है कि आईपीसी की धारा 397 सपठित धारा 34 के तहत इसे लागू नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने फूल कुमार बनाम दिल्ली प्रशासन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए याचिका को खारिज करते हुए कहा:
"चूंकि प्रतिवादी घातक हथियारों का इस्तेमाल करने वाले आरोपी नहीं हैं, इसलिए उन्हें आईपीसी की धारा 397 सपठित धारा 34 के तहत दंडनीय अपराध के लिए प्रतिवादी रूप से उत्तरदायी और दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।"
कोर्ट ने आगे जोड़ा:
"इस आदेश की प्रति सचिव, कानून और न्याय, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार को भेजी जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य द्वारा अपील की अनुमति मांगने के लिए मामलों को हाईकोर्ट में भेजे जाने से पहले उचित जांच की जाए।"
केस शीर्षक: राज्य बनाम राहुल @ शांक्य और अन्य।
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