समझौते के तहत आपसी सुलह से विवाद का समाधान नहीं हुआ: राजस्थान हाईकोर्ट ने आर्बिट्रेटर नियुक्त किया
राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के लिए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 के तहत आवेदन की अनुमति दी। कोर्ट ने यह अनुमति इस आधार पर दी कि पक्षकारों के बीच हुआ पट्टा समझौता 'आपसी सुलह' द्वारा विवाद को हल करने के लिए सिस्टम प्रदान करता है। लेकिन प्रतिवादी ने इसमें भाग नहीं लिया और 'आपसी सुलह' के माध्यम से विवाद को हल करने का कोई प्रयास नहीं किया।
जस्टिस अशोक कुमार गौड़ की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,
“इस न्यायालय को आवेदकों के विद्वान वकील की दलील में दम नजर आया कि आवेदकों द्वारा उठाई गई शिकायत का प्रतिवादी द्वारा कभी भी निवारण नहीं किया गया। ऐसे में 1996 के अधिनियम की धारा 11 को लागू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।”
24 सितंबर, 2018 को आवेदकों और प्रतिवादी के बीच लीज समझौता निष्पादित किया गया, जिसके द्वारा प्रतिवादी ने पट्टे का पट्टेदार होने के नाते जयपुर में स्थित आवेदकों के परिसर को 1 दिसंबर, 2018 से शुरू होने वाली 108 महीने की अवधि के लिए 30 नवंबर, 2027 लीज समझौते में उल्लिखित नियमों और शर्तों पर पट्टे पर लिया।
आवेदकों ने आरोप लगाया कि संपत्ति का उपयोग करते समय प्रतिवादी ने लीज समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया, जो कि प्रतिवादी को किराए पर दिए गए परिसर के संबंध में किए गए महत्वपूर्ण परिवर्तनों के कारण है।
आगे यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी ने अक्टूबर, 2019 से नवंबर, 2019 तक किराया नहीं दिया। इसके अलावा कई अन्य बकाया है, जिनका भुगतान प्रतिवादी ने नहीं किया।
आवेदकों ने शुरुआत में वर्ष 2020 में आर्बिट्रेशन आवेदन दायर करके हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हालांकि, उक्त आवेदन को हाईकोर्ट ने 2 दिसंबर, 2021 को खारिज कर दिया और लीज और लाइसेंस समझौते की धाराओं पर विचार करते हुए न्यायालय ने माना कि पक्षकारों को पहले आपसी सुलह द्वारा इस तरह के विवाद को हल करने का प्रयास करना आवश्यक है। यदि 60 दिनों के भीतर आपसी सुलह से विवाद का समाधान नहीं हुआ तो तभी विवाद के समाधान के लिए मामले को आर्बिट्रेशन के लिए भेजा जा सकता है।
आवेदकों की ओर से पेश वकील ने कहा कि प्रतिवादी को नोटिस दिए जाने के बावजूद, विवाद को सुलझाने के लिए प्रतिवादी द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई।
आगे यह प्रस्तुत किया गया कि विवाद को सुलझाने के लिए आवेदकों द्वारा किए गए सभी प्रयासों के बावजूद, प्रतिवादी ने अपेक्षित राशि का भुगतान नहीं किया। इसके विपरीत इमारत, जिसे प्रतिवादी-पट्टेदार को किराए पर दे दिया गया, उसमें काफी क्षति हुई है।
दूसरी ओर, प्रतिवादी की ओर से पेश वकील ने कहा कि रुपये का अग्रिम भुगतान किया जाना चाहिए। आवेदक को संपत्ति के स्पष्ट व्यय के लिए 2,50,000/- रुपये का प्रावधान किया गया। साथ ही आवेदक 6,42,000/- रुपये की राशि को समायोजित करने के लिए सहमत हुए हैं, वह राशि जो उत्तरदाताओं के साथ सुरक्षा के रूप में जमा की गई।
प्रतिवादी की ओर से पेश वकील ने सुरेश शाह बनाम हिपाड टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड 2021 (1) सिविल कोर्ट केस 749 (एस.सी.) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया। इस दौरान प्रस्तुत किया कि यदि पट्टा/किरायेदारी नहीं दी जाती है, विशेष क़ानून के तहत लेकिन संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम के तहत पक्षकारों के बीच इस तरह के विवाद को आर्बिट्रेशन के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी को आपसी सुलह के लिए नोटिस दिए जाने के बावजूद, उसने भाग नहीं लिया और आपसी सुलह के माध्यम से विवाद को सुलझाने का कोई प्रयास नहीं किया।
कोर्ट ने कहा,
"इस अदालत ने पाया कि पक्षकारों के बीच हुए लीज समझौते ने विवाद को हल करने के लिए तंत्र प्रदान किया और आपसी सुलह के बाद विवाद को आर्बिट्रेशन के माध्यम से हल करने की आवश्यकता है।"
कोर्ट ने विद्या ड्रोलिया और अन्य बनाम दुर्गा ट्रेडिंग 2021 (2) एससीसी 1 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि वैध आर्बिट्रेशन एग्रीमेंट के पक्षों को विवाद समाधान के सहमति और सहमत तरीके का पालन करना चाहिए। साथ ही न्यायालयों को विशेष रूप से वाणिज्यिक सेटिंग्स में मध्यस्थता समझौतों के प्रति उचित सम्मान दिखाना चाहिए।
इस प्रकार, न्यायालय ने आर्बिट्रेशन आवेदन की अनुमति दी और जस्टिस जी.आर. मूलचंदानी (पूर्व न्यायाधीश) पक्षकारों के बीच विवाद का फैसला करने वाले एकमात्र आर्बिट्रेटर नियुक्त किया।
केस टाइटल: कपिल जैन एवं अन्य बनाम खोसला इलेक्ट्रॉनिक्स प्रा. लिमिटेड
अपीयरेंस: आवेदकों के लिए एडवोकेट अभिषेक बी. शर्मा; एडवोकेट आर.एस. प्रतिवादी के लिए सिनसिनवार
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