DHJS Exam: हाईकोर्ट ने एक अंक से असफल उम्मीदवारों की आंसर शीट का पुनर्मूल्यांकन करने से इनकार किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दुर्लभ और असाधारण मामलों में जहां यह स्थापित हो जाता है कि आंसर शीट के मूल्यांकन में स्पष्ट त्रुटि है, अदालत उचित राहत प्रदान करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकती है।
जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस अमित महाजन की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां यह स्थापित हो जाता है कि निर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार निष्पक्ष मूल्यांकन के लिए उम्मीदवारों का अधिकार बाधित हो गया है, वहां अदालतों के लिए उक्त शक्ति का प्रयोग करना आवश्यक हो सकता है ताकि परीक्षार्थियों के अधिकार सुरक्षित रहे।
अदालत ने उस उम्मीदवार (वकील) द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने दिल्ली हाईकोर्ट को दिल्ली उच्च न्यायपालिका सेवाओं (DHJS Exam) के संबंध में परीक्षा पत्र, कानून- III के संबंध में अपनी आंसर शीट की पुन: जांच करने का निर्देश देने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने उक्त पेपर में अधिकतम 200 अंकों में से 89 अंक प्राप्त किए, जो 45% की योग्यता सीमा से एक अंक कम है।
याचिकाकर्ता के सभी पेपरों के कुल अंक अधिकतम 750 अंकों में से 437 अंक आए। याचिकाकर्ता को केवल एग्जाम पेपर, कानून- III में 45% अंक हासिल नहीं करने के कारण दिल्ली उच्च न्यायपालिका सेवाओं (DHJS Exam) में नियुक्ति के लिए प्रतियोगी परीक्षा से हटा दिया गया।
याचिकाकर्ता ने सामान्य ज्ञान और भाषा, कानून- I और कानून- II के परीक्षा प्रश्नपत्रों में अर्हक अंकों से काफी अधिक अंक प्राप्त किए, वह कानून- III में योग्यता सीमा को पूरा करने में विफल रहा।
अदालत के समक्ष सवाल यह था कि क्या याचिकाकर्ता परीक्षा पत्र, कानून-III के संबंध में अपनी आंसर शीट के पुनर्मूल्यांकन का हकदार है।
न्यायालय का विचार उन मामलों में था जहां अदालत को पता चलता है कि अंकन प्रणाली में स्पष्ट त्रुटि है या प्रक्रिया का पालन करने में विफलता या परीक्षा या चयन योजना की प्रणालीगत विफलता है, अदालत संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग कर सकती है।
कोर्ट ने कहा,
"निस्संदेह, यह कठिन मामला है, जहां मेधावी उम्मीदवार आवश्यक कट-ऑफ को पूरा नहीं करता। हालांकि, यह न्यायालय यह स्वीकार करने में असमर्थ है कि अंकन प्रणाली में कोई स्पष्ट त्रुटि है या कोई व्यवस्थित विफलता है।"
कोर्ट ने आगे कहा,
"यह ध्यान रखना प्रासंगिक है कि कानून- III के प्रश्नपत्र में निर्धारित प्रश्नों के उत्तर निबंध प्रकार के प्रश्न है और उनका मूल्यांकन विषयगत रूप से किया गया है। इस न्यायालय को सूचित किया जाता है कि एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए आंसर शीट का मूल्यांकन एक ही परीक्षक द्वारा किया गया है।"
कोर्ट ने इसके बाद कहा,
"यह संभव है कि पुनर्मूल्यांकन पर याचिकाकर्ता उच्च अंक प्राप्त कर सकता है। हालांकि, अनुपस्थित परिस्थितियां जो अंकन प्रणाली या आंसर शीट के मूल्यांकन के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया में किसी भी दोष का संकेत देती हैं, यह न्यायालय याचिकाकर्ता को कोई सहायता करने में असमर्थ है।"
तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: मयंक गर्ग बनाम दिल्ली हाईकोर्ट अपने रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से
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