पितृत्व का निर्धारण विवादास्पद मुद्दा नहीं है जब विवाह का तथ्य ही विवादित हो: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भरण-पोषण की याचिका में डीएनए टेस्ट कराने का आदेश रद्द किया

Update: 2022-06-14 11:01 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भरण-पोषण की मांग करने वाले एक मामले में फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर रिविजन याचिका पर विचार करते हुए कहा है कि चूंकि प्रतिवादी द्वारा विवाह को ही विवादित बताया गया है तो ऐसे में पितृत्व निर्धारित करने के लिए डीएनए टेस्ट कराने के आदेश की आवश्यकता नहीं है। फैमिली कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता ने एक याचिका दायर भरण-पोषण दिलाए जाने की मांग की थी, इसी याचिका के जवाब में प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता के बच्चे के पितृत्व का निर्धारण कराने के लिए डीएनए टेस्ट कराने की मांग की थी,जिसे फैमिली कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था।

जस्टिस सुवीर सहगल की पीठ ने आगे कहा कि बच्चे के पितृत्व का निर्धारण करना इस मामले में विवादास्पद प्रश्न नहीं है जहां प्रतिवादी ने स्वयं विवाह के तथ्य को ही विवादित बताया है।

याचिकाकर्ता जिन साक्ष्य को पेश करने का निर्णय लेगी,उनके आधार पर उसे अपने विवाह को स्थापित करना होगा क्योंकि प्रतिवादी द्वारा उसी पर विवाद किया जा रहा है। इसलिए, इस न्यायालय की राय है कि बच्चे के पितृत्व का निर्धारण करना विवादास्पद मुद्दा नहीं है।

वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी से भरण-पोषण दिलाए जाने की मांग करते हुए आरोप लगाया है कि वह उसकी कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है और इस विवाह से एक बच्चा पैदा हुआ है। नाबालिग की ओर से कोई दावा पेश नहीं किया गया है। इसलिए, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को पहले अपना विवाह स्थापित करना चाहिए क्योंकि प्रतिवादी द्वारा उसी पर विवाद किया जा रहा है।

कोर्ट ने आगे दीपनविता रॉय बनाम रोनोब्रोतो रॉय 2014 (4) आरसीआर (सिविल) 724 के फैसले पर विचार किया, जिसमें यह माना गया था कि यदि बच्चे के पितृत्व को निर्धारित करने के लिए डीएनए टेस्ट कराने का निर्देश देने से बचा जा सकता है, तो इसे टाल दिया जाना चाहिए ताकि एक बच्चे की असलियत/वैधता खतरे में न पड़े।

जहां तक नंदलाल वासुदेव बडवाइक बनाम लता नंदलाल बडवाइक व एक अन्य (2014) 2 एससीसी 576 के मामले में दिए गए फैसले का संबंध है,तो अदालत ने माना है कि दोनों मामलों में तथ्य पूरी तरह से अलग हैं। इसलिए, प्रतिवादी के वकील द्वारा इस निर्णय पर रखी गई निर्भरता को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

उपरोक्त चर्चा को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर लिया और निष्कर्ष निकाला कि फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश (याचिकाकर्ता को ब्लड टेस्ट करवाने का निर्देश देने वाला) वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में उचित या न्यायसंगत नहीं है। फलस्वरूप आक्षेपित आदेश को कायम नहीं रखा जा सकता है।

केस टाइटल- श्रीमती सत्य रूपा सिन्हा बनाम सरवन कुमार महतो

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