'मंदिर को अपवित्र किया, जहां बच्चों को सुरक्षित होना चाहिए था': दिल्ली कोर्ट ने दो नाबालिगों से बलात्कार के दोषी पुजारी को उम्रकैद दी

Update: 2021-08-06 11:51 GMT

दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में 76 साल के एक पुजारी को 7 और 9 साल की दो नाबालिग लड़कियों से बलात्कार के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई। पीड़ितों को शारीरिक और भावनात्मक आघात के लिए 7,50, 000 रुपये का मुआवजा भी दिया गया ।

अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट विजेता सिंह रावत ने फैसले में कहा, " दोषी पेशे से पुजारी था और उसने मंदिर के पवित्र परिसर में बच्चों के साथ अपराध किया। उसने पीड़ितों और जनता के भरोसे और सम्मान को धोखा दिया। मुकदमे के किसी भी चरण में कोई पछतावा व्यक्त नहीं किया गया। इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, यदि उदारता दिखाई जाती है, तो यह न्यायालय उन बच्चों को निराश करेगी, जिन्होंने मामले को आगे बढ़ाने के लिए सभी बाधाओं का सामना किया। इन पीड़ितों को भविष्य के लिए भयभीत किया गया है। यदि ऐसे शिकारियों आजाद कर दिया गया और दूसरे बच्चों को खतरे में डालने के लिए उन्हें घूमने की अनुमति दी गई तो अदालत भी अपने कर्तव्य में विफल होगी।"

न्यायालय ने कहा कि यौन अपराधों से बच्चों की रोकथाम (POCSO) अधिनियम, 2012 को बाल यौन शोषण के अपराधियों को कठोर से कठोर तरीके से दंडित करने के लिए लागू किया गया था और तदनुसार कानून के 'परिचय ' को संदर्भित किया गया, जो यह निर्धारित करता है, " बच्चों के खिलाफ ऐसे अपराधों स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए और प्रभावी निवारक के रूप में पर्याप्त दंड से इसका मुकाबला किया जाए"।

कोर्ट ने आगे कहा, "इसे यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया गया है कि ऐसी भ्रष्टता और प्रवृत्ति अपराधी, जो कमजोर, रक्षाहीन, भरोसेमंद और सहज बच्चों को नहीं छोड़ते हैं, उन्हें सख्ती से निपटने की जरूरत है क्योंकि बचपन के ऐसे अंधेरे क्षण हमारे बच्चों को जीवन भर के लिए डरा सकते हैं"।

कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि दोषी के प‌िछले जीवन को एक शमनकारी परिस्थिति के रूप में माना जाए और पुरुषोत्तम दशरथ बोराटे और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें माना गया था कि आपराधिक पूर्ववृत्त को शमनकारी पर‌िस्थिति के रूप में नहीं माना जाएगा, जब बात जघन्य अपराधों की होगी। न्यायालय ने कहा कि ' एक बच्चे की गरिमा का उल्लंघन करने वाला प्रत्येक कार्य समान निंदा का पात्र है' ।

यह तर्क कि दोषी गरीब सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि से आता है, कोर्ट ने कर्नाटक राज्य बनाम राजू में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करके खारिज कर दिया, जिसमें यह कहा गया था कि एक दोषी को मिलने वाली सजा की माप उसकी सामाजिक स्थिति निर्भर नहीं कर सकता है, इस संबंध में अपराधी के आचरण और अपराध की गंभीरता जैसे कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

सुधार की गुंजाइश की संभावना ना पाते हुए कोर्ट ने कहा, " यह साबित नहीं हुआ है कि अपराध किसी मानसिक तनाव या भावनात्मक संकट के कारण किए गए थे और यह भी देखते हुए कि अत्यधिक कमजोर पीड़ितों का अपराधी की वृद्धावस्था के बावजूद शिकार किया गया और बार-बार, सुधार की कोई गुंजाइश नहीं लगती है। बल्कि, यह देखते हुए कि लगभग 7 और 9 वर्ष की आयु के नाबालिग बच्चों के साथ अपराधी द्वारा बार-बार बलात्कार किया गया, जो उस समय लगभग 69-70 वर्ष की आयु का था, अपराधी की मानसिकता की भ्रष्टता और प्रवृत्ति के बारे में अपरिवर्तनीय रूप से बोलता है जो एक गंभीर स्थिति है। "

‌कोर्ट ने आगे जोड़ा,"दोनों पीड़ितों पर बार-बार अपराध किए गए। यह केवल अपराधी की ओर से लालची और आदतन आचरण को दर्शाता है। जैसा कि पहले ही ऊपर कहा गया है, ऐसे अभ्यस्त यौन शिकारी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। उसने सम्मान और विश्वास की भी परवाह नहीं की है। एक पुजारी के रूप में अपने कार्यालय से जुड़ा हुआ है और उस मंदिर को भी अपवित्र किया है, जहां बच्चों को एक बेपरवाह और सुरक्षित समय देना चाहिए था।"

तदनुसार, अदालत ने दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और IPC की धारा 376 (बलात्कार) के तहत अपराध के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। आईपीसी की धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत अपराध के लिए, दोषी को 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ-साथ पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। सजा को एक साथ चलाने का निर्देश दिया गया और जुर्माने को पीड़ितों को मुआवजे के रूप में अदा करने का आदेश दिया गया।

मुआवजा

न्यायालय ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली का उद्देश्य न केवल अपराधियों को दंडित करना है, बल्कि पीड़ितों, विशेष रूप से ऐसे पीड़ित, जो नाबालिग हैं, का पर्याप्त पुनर्वास करना है, जिनका 'मनोवैज्ञानिक स्वास्थ प्रभावित हुआ है और इसके जीवन भर परिणाम हो सकते हैं'।

न्यायालय ने पीड़ित प्रभाव आकलन रिपोर्ट का अवलोकन किया, जिसमें यह सिफारिश की गई थी कि पीड़ितों को उनके भावनात्मक आघात के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए। यह भी नोट किया गया कि दोषी की मासिक आय 6000 रुपये है और राजस्थान के दौसा में उसकी पुश्तैनी संपत्ति है। दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना, 2015 के भाग II पर भी भरोसा रखा गया, जो महिला पीड़ितों और यौन उत्पीड़न से बचे लोगों के लिए मुआवजे का इंतजाम करती है।

अदालत ने आगे कहा कि नाबालिग पीड़ित यौन हमले के परिणामस्वरूप बार-बार पेट की समस्याओं से पीड़ित हैं। इसलिए अदालत ने प्रत्येक पीड़ित को मुआवजे दिया जो लगभग 7,50, 000 रुपये की राशि आसपास था।

केस टाइटिल: स्टेट बनाम विश्व बंधु

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