'यूपी गौ सेवा' अयोग में पैसा जमा कराएं ': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोमांस बेचने के आरोपी को ज़मानत देते समय शर्त रखी

Update: 2020-11-09 05:15 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार (05 अक्टूबर) को गोमांस बेचने के आरोपी एक व्यक्ति को ज़मानत दे दी। ज़मानत इस शर्त पर स्वीकार की गई कि वह अपनी रिहाई की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर उत्तर प्रदेश गौ सेवा अयोग के खाते में रू 3,5,000 / - जमा करेगा।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दायर एक ज़मानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। आईपीसी की धारा 379 आईपीसी और उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम की धारा 3/5/8 के तहत दर्ज एफआईआर नंबर -286 में ज़मानत देने की प्रार्थना की गई थी।

कोर्ट के सामने रखी गई दलीलें

यह आरोप लगाया गया कि आरोपी-आवेदक और उसके भाई आमिर के कब्जे से गोवंश के शरीर के अंगों के साथ 400 किलोग्राम गोमांस बरामद किया गया था।

आरोपी-आवेदक के लिए वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि वह और उसका भाई मांस बेचने के व्यवसाय में नहीं हैं और यह बरामदगी का कोई सार्वजनिक गवाह नहीं है और यह भी कि ऑर्चर्ड के मालिक का बयान दर्ज नहीं किया गया है, जहां कथित रूप से आरोपी-आवेदक के कब्जे से वसूली की गई थी।

दूसरी ओर, AGA ने ज़मानत आवेदन का विरोध किया और कहा कि आरोपी-आवेदक के कब्जे से 400 किलोग्राम गोमांस की बरामदगी को झूठी वसूली नहीं कहा जा सकता।

उन्होंने तर्क दिया कि आरोपी-आवेदक के कब्जे से गोवंश के शरीर के अंग भी बरामद किए गए थे।

कोर्ट का आदेश

अदालत ने कहा कि आरोपी-आवेदक 1.9.2020 के बाद से जेल में है और माना जाता है कि उस पर इस मामले को छोड़कर कोई आपराधिक मामला नहीं है।

न्यायालय ने यह भी देखा कि उसका भाई जिसे नाबालिग होने के कारण पहले ही सत्र अदालत ने जमानत दे दी है।

मामले के उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, दोनों पक्षों के वकीलों की दलील के बाद और मामले की योग्यता में जाए बिना कोर्ट ने कहा,

"आवेदक जमानत पर रिहा होने का हकदार है। आवेदक आसिफ़ को उपरोक्त मामले में ज़मानत पर रिहा किया जाना चाहिए। उसे एक निजी बॉन्ड प्रस्तुत करने पर तथा संबंधित न्यायालय की संतुष्टि के अनुसार इतनी ही राशि के दो ज़मानतदार पेश करने पर रिहा किया जाए। "

इसके अलावा, अदालत ने निर्देश दिया कि आरोपी-आवेदक को यूपी गौ सेवा अयोग के खाते में रुपए 3,5,000 / - जमा करने होंगे। उसे अपनी रिहाई की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर यह राशि जमा करके ट्रायल कोर्ट के समक्ष 35,000 / रुपए जमा करने की रसीद प्रस्तुत करनी होगी।

अंत में अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के पास जमा की रसीद प्रस्तुत करने में विफलता के कारण उसकी जमानत को स्वत: रूप से रद्द कर दिया जाएगा और उसे हिरासत में ले लिया जाएगा।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में निर्दोष व्यक्तियों को फंसाने के लिए उत्तर प्रदेश गोहत्या निरोधक कानून, 1955 के प्रावधानों के लगातार दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की।

उक्त अधिनियम की धारा 3, 5 और 8 के तहत गोहत्या और गोमांस की बिक्री के आरोपी एक रहमुद्दीन की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने देखा,

"अधिनियम का निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ दुरुपयोग किया जा रहा है। जब भी कोई मांस बरामद किया जाता है तो बिना इसकी जांच या फॉरेंसिक प्रयोगशाला के विश्लेषण के इसे सामान्य रूप से गोमांस के रूप में दिखाया जाता है। अधिकांश मामलों में मांस को विश्लेषण के लिए नहीं भेजा जाता है। व्यक्तियों को ऐसे अपराध के लिए जेल में रखा गया है जो शायद कमिट नहीं किया गया है। "

आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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