दिल्ली दंगा: हाईकोर्ट ने अमन मर्डर केस में 21 महीने से अधिक समय तक हिरासत में रहे दो आरोपी-व्यक्तियों को जमानत दी

Update: 2022-01-20 10:00 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने दो व्यक्तियों को जमानत दी, जिन्होंने उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों (Delhi Riots) से संबंधित अमन मर्डर केस में 21 महीने से अधिक समय तक हिरासत में थे। (एफआईआर नंबर 50/2020 पी.एस. जाफराबाद)

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने आदेश दिया,

"याचिकाकर्ता 28.03.2020 से हिरासत में है। याचिकाकर्ता जिस सामाजिक स्तर से आता है, यह संभावना नहीं है कि याचिकाकर्ता अन्य गवाहों को प्रभावित करने की स्थिति में होगा। 15 आरोपियों में से 12 को पहले ही जमानत दी जा चुकी है।"

अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, अमन की 25 फरवरी, 2020 को दंगाइयों की गोली लगने की वजह से मौत हो गई थी। वर्तमान प्राथमिकी आईपीसी की धारा 149, 186, 353, 283, 332, 323, 307, 427, 120बी, 34, 188, आर्म्स एक्ट, 1959 की धारा 25 और 27 और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की रोकथाम अधिनियम, 1984 की धारा 3 और 4 के तहत दर्ज की गई थी।

हालांकि शुरू में उपरोक्त अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी, बाद में चार्जशीट दायर की गई और आईपीसी की धारा 302, 333 और 109 के तहत अपराध जोड़े गए।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, जाफराबाद क्षेत्र और पूर्वोत्तर जिले के अन्य क्षेत्रों में विभिन्न स्थानों पर दंगा भड़काने के लिए दंगाइयों एक सामान्य इरादे से एकत्र हुए थे।

पथराव, फायरिंग, एसिड अटैक और आगजनी की सूचना लगातार मिल रही थी। पुलिस ने जब हिंसक भीड़ को रोकने की कोशिश की तो पुलिस कर्मियों पर भारी पथराव और फायरिंग हुई, जिससे 19 पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को हवा में फायरिंग करनी पड़ी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से यह प्रस्तुत किया गया कि वे 28.03.2020 से हिरासत में हैं और मामले में आरोप पत्र भी दायर किया जा चुका है। इसलिए उन्हें आगे हिरासत में रखने की कोई आवश्यकता नहीं है।

आगे यह भी कहा गया कि 15 आरोपियों में से 12 को जमानत दे दी गई और याचिकाकर्ताओं का मामला अन्य सह-आरोपियों की तरह ही है और इसलिए, उन्हें जमानत दी जानी चाहिए।

दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने स्पष्ट रूप से कहा कि 15 में से 12 लोगों को जमानत दे दी गई। हालांकि, यह जोड़ा गया कि याचिकाकर्ता उस भीड़ का हिस्सा था जो दंगा कर रही थी। एक व्यक्ति ने अपनी मूल्यवान जीवन खो दिया, इसलिए आरोपी आईपीसी की धारा 302 के तहत इस अपराध के लिए उत्तरदायी होंगे।

हालांकि, अदालत ने 20,000 रुपए का निजी बॉन्ड भरने और इतनी ही राशि का एक जमानतदार पेश करने की शर्त के साथ ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि पर दोनों को जमानत देने का निर्देश दिया।

केस का शीर्षक: RIFAQAT अली, अकील @ बोना बनाम राज्य

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:



Tags:    

Similar News