दिल्ली दंगे: अफवाह के आधार पर 39 शिकायतों को दो एफआईआर में जोड़ने पर कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई, अलग से जांच के आदेश दिए
दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को दिल्ली दंगों के दो मामलों में तीन आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ 39 शिकायतों को "सुने-सुनाए सबूतों" के आधार पर जोड़ने के लिए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई। इसके साथ ही अदालत ने पुलिस शिकायतों में अलग से आगे की जांच करने का आदेश दिया।
एडिशनल सेशन जज पुलस्त्य प्रमाचला ने पाया कि अतिरिक्त 39 शिकायतकर्ताओं में उल्लिखित कथित घटनाओं की तारीख और समय की पुष्टि करने के लिए भी रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है।
अदालत ने यह भी कहा कि दोनों मामलों में तीन आरोपी व्यक्तियों की पहचान के लिए अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाहों ने अतिरिक्त शिकायतकर्ताओं द्वारा रिपोर्ट की गई घटना को देखने के बारे में कुछ नहीं कहा।
अदालत ने कहा,
“इस प्रकार, इस मामले में दर्ज एफआईआर के साथ उपरोक्त सभी अतिरिक्त शिकायतों पर मुकदमा चलाने का अभियोजन पक्ष का रुख गलत पाया गया। प्रासंगिक सबूतों के आधार पर ऐसी घटनाओं की तारीख और समय की पुष्टि करने के लिए अतिरिक्त शिकायतों की पूरी तरह से जांच नहीं की गई। आईओ (जांच अधिकारी) ने बस अतिरिक्त शिकायतकर्ताओं के सुने सुनाए तथ्यों पर भरोसा किया और इन शिकायतों को इस मामले में जोड़ दिया।”
यह घटनाक्रम जावेद, गुलफाम और पप्पू उर्फ मुस्तकीम नाम के आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज दो अलग-अलग एफआईआर में हुआ।
एफआईआर 100/2020 आफताब नामक व्यक्ति की शिकायत के आधार पर दयालपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी। इसमें आरोप लगाया गया कि दंगाइयों ने उसकी दुकान को लूट लिया और वहां पड़े कुछ सामान में आग लगा दी। जांच के दौरान 17 अन्य शिकायतों को भी जांच के लिए एफआईआर के साथ जोड़ दिया गया।
इसी तरह, ज़मीर अहमद की दुकान में लूटपाट का आरोप लगाने वाली शिकायत के आधार पर दयालपुर पुलिस स्टेशन में एफआईआर 116/2020 दर्ज की गई थी। इस मामले में 22 अतिरिक्त शिकायतों को जांच के लिए जोड़ा गया।
दो अलग-अलग आदेशों में इसी तरह की टिप्पणियां करते हुए अदालत ने कहा कि भले ही जांच अधिकारी ने विभिन्न स्थानों की निकटता दिखाने के लिए कई साइट योजनाओं को रिकॉर्ड में रखा हो, हालांकि, उसने यह भी कहा कि ऐसी निकटता यह मानने का आधार नहीं हो सकती है कि अतिरिक्त शिकायतकर्ताओं द्वारा बताई गई सभी घटनाएं एक ही समय और एक ही भीड़ द्वारा घटित हुआ।
अदालत ने इस संबंध में कहा,
“अतिरिक्त शिकायतकर्ताओं द्वारा दिए गए बयान से पता चलता है कि घटना के समय और तारीख के बारे में उनकी जानकारी कुछ अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा उन्हें दी गई जानकारी पर आधारित है। दुर्भाग्य से जांच की प्रारंभिक अवधि के दौरान आईओ ने उनका विवरण जानने और उनकी जांच करने की कोशिश नहीं की, जिससे संबंधित घटना के वास्तविक समय और तारीख का पता लगाया जा सके।”
इसमें कहा गया कि आईओ ने अतिरिक्त शिकायतकर्ताओं से शिकायतकर्ता के विवरण के बारे में बहुत देर से पूछा, जिससे उन्होंने ऐसे शिकायतकर्ता के वर्तमान ठिकाने का विवरण देने में असमर्थता दिखाई।
अदालत ने आगे कहा,
“दिनांक 09.02.2023 के बयान अतिरिक्त शिकायतकर्ताओं के उनके संबंधित स्थानों पर घटनाओं के समय और तारीख के बारे में सुनी-सुनाई बातों को ऐसी घटनाओं के समय और तारीख को स्थापित करने के लिए प्रासंगिक साक्ष्य बनाने का आधार नहीं हो सकते हैं।”
इसमें कहा गया,
“मेरी राय में अतिरिक्त शिकायतों पर जांच का निष्कर्ष अधूरा है और उन्हें इस एफआईआर में अभियोजन के लिए शामिल नहीं किया जा सकता। इन अतिरिक्त शिकायतों के लिए किसी विशेष निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए आगे और गहन जांच की आवश्यकता होती है। इसलिए एसएचओ को उपरोक्त सभी अतिरिक्त शिकायतों को तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के लिए कानून के अनुसार अलग से आगे की जांच करने का निर्देश दिया गया।
हालांकि, अदालत ने पाया कि दोनों मामलों में दोनों प्राथमिक शिकायतकर्ताओं की दुकानों में भीड़ ने तोड़फोड़ की थी, जिसमें आरोपी व्यक्ति भी शामिल थे।
अदालत ने दोनों आदेशों में कहा,
“तदनुसार, आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ दंडनीय अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की 148/380/427/435/452 सपठित धारा 149 और 188 के दोषी ठहराया जाता है। साथ ही आरोपी व्यक्तियों को आईपीसी की धारा 436 के तहत अपराध से मुक्त किया जाता है।
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