दिल्ली हाईकोर्ट ने NCLAT के तकनीकी सदस्य के रूप में श्रीशा मेरला की नियुक्ति को बरकरार रखा

Update: 2021-11-09 12:51 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के सदस्य (तकनीकी) के रूप में श्रीशा मेरला की नियुक्ति को बरकरार रखा।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने कहा,

"प्रतिवादी नंबर दो (मेरला) की योग्यता को देखते हुए वह NCLAT के तकनीकी सदस्य के रूप में नियुक्त होने के लिए पूरी तरह से योग्य हैं ... उन्होंने कई वर्षों तक राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के सदस्य के रूप में भी काम किया है।"

पीठ ने कहा कि मेरला का चयन भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विधिवत गठित खोज-सह-चयन समिति द्वारा किया गया था और चयन की प्रक्रिया भी कानून के अनुसार थी।

पीठ ने कहा,

"इसलिए हमें इस याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं दिखता।"

कोर्ट ने आगे देखा कि कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा आठ के तहत एक सक्रिय कंपनी होने का दावा करने वाले याचिकाकर्ता, इंडिया अवेक फॉर ट्रांसपेरेंसी का लाइसेंस रद्द कर दिया गया था। दरअसल, याचिकाकर्ता ने एक सक्रिय कंपनी होने का दावा करते हुए एक झूठा हलफनामा दायर किया था।

अदालत को आगे बताया गया कि याचिकाकर्ता को इस तरह के मुकदमे बार-बार दायर करने की आदत थी और जुर्माना लगाने के साथ उसे खारिज करने पर वह जुर्माना जमा नहीं कर रहा था।

कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की ओर से पेश हुए एएसजी चेतन शर्मा और मेरला की ओर से पेश अधिवक्ता पीबी सुरेश ने अदालत के सामने कहा कि जब किसी न्यायिक अधिकारी द्वारा याचिकाकर्ता के पक्ष में कोई आदेश पारित नहीं किया जाता है तो बाद वाले संबंधित न्यायिक अधिकारी के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाते हैं।

सुरेश ने तर्क दिया,

"याचिकाकर्ता एक पुराना वादी है। यह परोक्ष रूप से भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली एक समिति द्वारा की गई नियुक्ति को चुनौती दे रहा है। न्यायिक अधिकारी हमेशा अपने सिर पर लटकी तलवार के साथ कैसे काम करेंगे?"

इसके अलावा, एएसजी शर्मा ने तर्क दिया कि एक जनहित याचिका सेवा मामलों में चलने योग्य नहीं है। उन्होंने आगे रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जहां NCLAT सदस्यों के लिए एक अनूठी चयन पद्धति को मंजूरी दी गई।

उक्त परिस्थितियों को देखते हुए न्यायालय ने 25,000 रुपये की कीमत वाली याचिका खारिज कर दी। इस राशि को दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास चार सप्ताह के भीतर जमा किया जाना है।

केस टाइटल: इंडिया अवेक फॉर ट्रांसपेरेंसी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

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