दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एक व्यक्ति की हत्या के मामले (Murder Case) में दोषी को राहत देने से इनकार कर दिया। जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस पूनम ए बंबा की डिवीजन बेंच ने आरोपी व्यक्ति की दोषसिद्धि और उम्रकैद की सजा को रद्द करने से इनकार कर दिया है।
दरअसल, निचली अदालत ने एक व्यक्ति को उसकी लाइसेंसी बंदूक से एक पवन नाम के व्यक्ति की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी। मामले में अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, शिकायतकर्ता यानी मृतक के पिता भगत सिंह और अपीलकर्ता यानी ओम प्रकाश के बीच पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा था। विवाद को निपटाने के उद्देश्य से 25 सितम्बर, 2013 को शिकायतकर्ता अपने बेटे और एक रिश्तेदार नवीन के साथ अपीलकर्ता के घर गया था। उस समय अपीलकर्ता समेत अन्य आरोपी छत पर मौजूद थे। छत से आरोपी चिल्लाने लगे कि “सबको खत्म कर दो, गोली मार दो।“ इतने में अपीलकर्ता ने अपनी पिस्तौल तानी और गोली चला दी जो शिकायतकर्ता के बेटे-पवन को लगी और उसकी मौत हो गई।
मृतक के पिता ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 307, 34 और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत केस दर्ज कराया था। पुलिस ने मौके पर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था।
पुलिस ने मामले में जांच पूरी कर अपीलकर्ता और अन्य आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर किया। 27 फरवरी, 2014 को अभियुक्त ओम प्रकाश, जो अग्रिम जमानत पर था, को औपचारिक रूप से गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की। अपीलकर्ता सहित सभी आरोपियों पर आईपीसी की धारा 302, 34 के तहत आरोप लगाया गया था और अपीलकर्ता पर आर्म्स एक्ट की धारा 30 के तहत अपराध का भी आरोप लगाया था।
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मृतक 20-25 लोगों के साथ उसके घर आया और उनके साथ झगड़ा करने लगा। तभी मृतक के साथ के व्यक्तियों में से एक ने गोली चलाई जो बिजली के खंभे से टकराई और पवन को लग गई। इसलिए आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला नहीं बनता है। निचली अदालत के सजा के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए। शिकायतकर्ता अपीलकर्ता के खिलाफ पहले भी कई झूठे मुकदमे दर्ज करा चुका है।
आगे तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष बंदूक और अपीलकर्ता के बीच एक स्पष्ट संबंध स्थापित करने में विफल रहा है। साथ ही किसी भी सार्वजनिक गवाह का कोई बयान दर्ज नहीं किया गया था। केवल शिकायतकर्ता की गवाही पर भरोसा किया गया था। शिकायतकर्ता और चश्मदीद गवाह के बयानों के बीच विसंगतियां और विरोधाभास हैं, जिसके कारण उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
अपीलकर्ता ने ये भी तर्क दिया कि घटना के वक्त अपीलकर्ता घर पर नहीं था।
दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता के खिलाफ हत्या करने का पर्याप्त सबूत रिकॉर्ड पर मौजूद है। ट्रायल कोर्ट का दोषसिद्धि का फैसला सही है। इसे बरकरार रखा जाए और अपील खारिज की जाए।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और कहा कि ये स्पष्ट है कि दोनों के बीच पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा था। विवाद पर चर्चा के लिए शिकायतकर्ता अपने बेटे के साथ अपीलकर्ता के घर गया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि चश्मदीद गवाहों ने अपनी गवाही में कहा है कि अपीलकर्ता ने ही गोली चलाई थी।
आगे कहा,
"चश्मदीदों की गवाही को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वे मृतक को तुरंत पास के अस्पताल में नहीं ले गए बल्कि मेदांता अस्पताल ले गए जो दूर था और इलाज में देरी को देखते हुए पवन की मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक इलाज में देरी की वजह से मौत नहीं हुई थी।"
कोर्ट ने ये भी कहा कि अभियोजन पक्ष के मुताबिक आपसी विवाद पर चर्चा के लिए भगत सिंह अपने बेटे पवन यानी मृतक और नवीन के साथ अपीलकर्ता के घर गए थे। छत से अपीलकर्ता की लाइसेंसी बंदूक से गोली चली थी। उस वक्त अपीलकर्ता छत पर मौजूद था। इसलिए, ये नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता का कृत्य पवन की मौत का कारण नहीं था।
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को बरकरार रखा और आरोपी की अपील खारिज कर दी।