दिल्ली हाईकोर्ट ने दोषी के ज़मानत देने में विफल रहने पर सज़ा निलंबित करने की शर्तों में संशोधन किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला दोषी के ज़मानत देने में विफल रहने पर सज़ा निलंबित करने की शर्तों में संशोधन किया। उक्त दोषी ज़मानत जमा करने में असमर्थ थी।
जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता का हर दिन मायने रखता है। जस्टिस सिंह का विचार था कि आरोपी को इसलिए जेल में नहीं रखा जा सकता कि वह जमानत नहीं दे सकती।
शहनाज नाम की महिला को 2013 में एक मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी और अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया गया था। उसे सात साल के कठोर कारावास और चालीस हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है। जुर्माना नहीं जमा करने की सूरत में एक वर्ष का साधारण कारावास भुगतना पड़ेगा।
जनवरी 2022 तक दी गई सात साल की सजा में से उसकी दो साल की सजा बाकी थी। इसलिए, 19 जनवरी, 2022 के आदेश के तहत हाईकोर्ट ने 25,000 रुपये की राशि में व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करने और समान राशि के दो जमानती बांडों के साथ उसकी अपील की सुनवाई लंबित रहने तक उसकी सजा को निलंबित कर दिया।
इसके बाद मार्च में शहनाज़ ने जनवरी के आदेश में संशोधन की मांग करते हुए आवेदन दायर करके फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाया। उसने बताया कि उक्त आदेश पारित होने के बावजूद अपील के लंबित रहने के दौरान उसकी सजा को निलंबित करने के कारण वह उसका लाभ नहीं उठा सकती। तथ्य यह है कि न तो 25,000 रुपये की जमानत की व्यवस्था की जा सकी और न ही परिवार का कोई सदस्य समान राशि के जमानतदार के रूप में आगे आया।
तदनुसार, कोर्ट ने निर्देश दिया कि दो जमानतदारों की शर्त को एक जमानतदार की सीमा तक संशोधित किया जाए, जो परिवार का सदस्य नहीं हो सकता। इसके साथ ही व्यक्तिगत बांड और जमानत की राशि को भी घटाकर 15,000 रुपये कर दिया गया।
हालांकि, हाल ही में एक जून को हुई सुनवाई में शहनाज की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि मार्च के आदेश की शर्त में और संशोधन की जरूरत है, क्योंकि वह जमानत देने में असमर्थ हैं। इसलिए अनुरोध किया गया कि उसे बिना किसी जमानत के केवल निजी मुचलके पर रिहा किया जाए।
अदालत ने इस प्रकार देखा,
"मेरा विचार है कि एक बार निलंबन का आदेश पारित हो जाने के बाद आवेदक को अपने वास्तविक अक्षर, भावना और इरादे में इसके लाभ का हकदार होना चाहिए। स्वतंत्रता का हर दिन मायने रखता है और आवेदक को केवल इसलिए जेल में नहीं रखा जा सकता कि वह जमानत राशि देने में असमर्थ है।"
तदनुसार, आदेश को और संशोधित किया गया और आवेदक को दस हजार रुपये के निजी मुचलके पर रिहा करने का निर्देश दिया गया।
अदालत ने कहा,
"आवेदक, सप्ताह में दो बार यानी सोमवार और गुरुवार को गाजियाबाद के निकटतम स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करेगी।"
यह भी निर्देश दिया गया कि शहनाज अपना मोबाइल नंबर जांच अधिकारी के साथ साझा करेगी और यह हर समय चालू रहेगा।
तद्नुसार आवेदन का निस्तारण किया गया।
टाइटल: शहनाज बनाम राज्य
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 596
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