दिल्ली हाईकोर्ट ने 2008 के एम्ब्रेयर रिश्वत मामले में वकील गौतम खेतान को जमानत दी

Update: 2022-10-16 04:45 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक वकील गौतम खेतान को वर्ष 2008 के एम्ब्रेयर रिश्वत मामले में जमानत दे दी है। इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की जा रही है।

यह मामला भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत किए गए विभिन्न अपराधों के लिए वर्ष 2016 में दर्ज किया गया था, लेकिन खेतान को हाल ही में 25 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था। उसकी जमानत याचिका को एक निचली अदालत ने 3 सितंबर को खारिज कर दिया था।

जस्टिस जसमीत सिंह ने खेतान को यह कहते हुए जमानत दे दी कि एफआईआर में उनका नाम नहीं था और उनके खिलाफ लगाए गए आरोप केवल विभिन्न गवाहों के बयानों और आधिकारिक संचार पर आधारित हैं।

ब्राजील की विमान निर्माता कंपनी एम्ब्रेयर और डीआरडीओ के सेंटर फॉर एयर बॉर्न सिस्टम के निदेशक के बीच 3 जुलाई, 2008 को 210 मिलियन अमेरिकी डॉलर के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। डीआरडीओ द्वारा तीन पूरी तरह से माडिफाइड एम्ब्रेयर विमान खरीदे गए थे।

एफआईआर केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय, एम्ब्रेयर, सिंगापुर स्थित कंपनी मेसर्स इंटरदेव पीटीई लिमिटेड के अधिकारियों और यूके स्थित हथियार डीलर विपिन खन्ना के खिलाफ दर्ज की गई थी।

यह आरोप लगाया गया है कि रक्षा मंत्रालय और डीआरडीओ के अधिकारियों को कथित रूप से प्रभावित करने के लिए वर्ष 2009 में सिंगापुर स्थित कंपनी के माध्यम से खन्ना को 5.76 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया गया था।

सीबीआई की ओर से पेश वकील ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि सिंगापुर स्थित कंपनी के निदेशक ने कहा था कि 5.76 मिलियन अमेरिकी डॉलर का कमीशन प्राप्त करने के लिए 2009 के समझौते की खेतान द्वारा समीक्षा की गई थी।

इसके अलावा, यह भी तर्क दिया गया कि खेतान कथित तौर कुल 5.76 मिलियन यूएस डॉलर में से 3.27 मिलियन यूएस डॉलर के फंड को रूट करने के लिए कंपनी और मेसर्स केआरबीएल डीएमसीसी दुबई के बीच समझौते के निष्पादन के लिए निदेशक के साथ समन्वय कर रहे थे।

एजेंसी ने यह भी आरोप लगाया कि मामले में खेतान की भूमिका का संकेत देने वाला जांच अधिकारी को एम्ब्रेयर की ओर से एक आधिकारिक संचार भी मिला है।

निचली अदालत ने 3 सितंबर को खेतान को इस आधार पर जमानत देने से इनकार कर दिया था कि उस पर 5.76 मिलियन अमेरिकी डॉलर का कमीशन या रिश्वत के मामले में शामिल होने का आरोप है और विदेशी सरकारों के सहयोग की कमी के कारण जांच प्रारंभिक अवस्था में है। यह भी कहा गया कि अपराध का परिमाण बहुत बड़ा है।

उक्त टिप्पणियों से असहमत होते हुए, हाईकोर्ट ने खेतान को यह कहते हुए जमानत दे दी कि यह राशि का परिमाण नहीं, बल्कि अपराध की भयावहता और अभियुक्त की प्रथम दृष्टया संलिप्तता है ''जो जमानत याचिका को अनुमति देने या अस्वीकार करने के लिए एक विचार योग्य तथ्य है''।

कोर्ट ने कहा,''मौजूदा मामले में, मामला वर्ष 2016 का है। लगभग 6 साल से अधिक समय बीत चुका है और कल्पना के किसी भी एंगल से यह नहीं माना जा सकता है कि जांच प्रारंभिक चरण में है। छह साल का लंबा समय होता है।''

शामिल राशि की परिमाण के पहलू पर, जस्टिस सिंह ने कहा कि यह किसी व्यक्ति को स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित करने का विचार नहीं हो सकता है।

जस्टिस सिंह ने कहा,

''मौजूदा मामले में, आवेदक का नाम एफआईआर में नहीं था। आवेदक के खिलाफ लगाए गए आरोप केवल विभिन्न गवाहों के बयान और आधिकारिक संचार पर आधारित हैं। प्रतिवादी को इसे सत्यापित करना चाहिए था और यदि ऐसा पाया गया है तो पर्याप्त, चार्जशीट दायर की जानी चाहिए थी।''

अदालत ने कहा कि जमानत देने के लिए ट्रिपल टेस्ट खेतान द्वारा संतुष्ट किया गया है क्योंकि उसने एफआईआर दर्ज होने के बाद 42 बार विदेश यात्रा की है और हर मौके पर वह वापस लौट आया था और ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जो यह दर्शाता हो कि उसने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की या गवाहों को प्रभावित किया है।

अदालत ने जमानत देते हुए कहा, ''इस प्रकार, आवेदक ट्रिपल टेस्ट को संतुष्ट करता है।''

गौतम खेतान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीवी कपूर और सिद्धार्थ लूथरा पेश हुए। एसपीपी रिपु दमन भारद्वाज ने सीबीआई का प्रतिनिधित्व किया।

केस टाइटल-गौतम खेतान बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो

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