दिल्ली हाईकोर्ट ने बाल यौन शोषण पीड़ितों के लिए मुआवजे की राशि 7 लाख रुपये से बढ़ाकर 10.5 लाख की

Update: 2022-10-21 06:00 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने 2018 दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना के तहत बाल यौन शोषण के पीड़ितों के लिए मुआवजे की राशि को 7 लाख रुपये से बढ़ाकर कम से कम 10.5 लाख रुपये करने का आदेश देते हुए गुरुवार को कहा कि पीड़ितों को दिए जाने वाले अंतिम मुआवजे की राशि अधिकतम होनी चाहिए,जैसा कि योजना की अनुसूची में प्रदान किया गया है।

2018 योजना की अनुसूची में पीड़ितों को दिए जाने वाले मुआवजे की न्यूनतम और ऊपरी सीमा दोनों का उल्लेख किया गया है।

जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि विशेष अदालतें 10.5 लाख से अधिक के मुआवजे के फैसले और अनुदान देने के लिए अपने अधिकारों के भीतर ही होंगी और अंतिम के साथ-साथ अंतरिम मुआवजा दिए जाने का भी फैसला करेंगी।

अदालत ने कहा कि मुआवजे की राशि विशेष अदालत द्वारा प्रदान की जाती है और दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) द्वारा वितरित की जानी है।

कोर्ट ने कहा,

''डीवीसी योजना के अनुसार मुआवजा अधिकतम और न्यूनतम प्रदान किया गया है। योजना को अधिकतम तय नहीं करना चाहिए। अदालत के पास इसे बढ़ाने और कम करने की शक्ति है। इन प्रावधानों को घटाने का मतलब पीड़ितों के साथ अन्याय होगा। ये ऐसी स्थितियां हैं जिन्हें बढ़ाने की आवश्यकता है।''

जबकि योजना के अनुसार बलात्कार के मामलों में मुआवजे की अधिकतम राशि 7 लाख है, अदालत ने कहा कि एक उद्देश्यपूर्ण व्याख्या के लिए आवश्यक है कि पॉक्सो मामलों में मुआवजे का फैसला करते समय उक्त राशि को न्यूनतम आधार माना जाए।

हाईकोर्ट ने कहा,

''इसलिए 'बलात्कार' के पॉक्सो पीड़ितों के लिए, यह 7 +3.5 = 10.5 लाख ( योजना के अनुसार 7 लाख का 50 प्रतिशत पॉक्सो मामलों में जोड़ा जाए) होना चाहिए। इस प्रकार अंतिम मुआवजा 10.5 लाख से कम नहीं होना चाहिए।''

अपने 45 पृष्ठों के फैसले में, अदालत ने बाल यौन शोषण के पीड़ितों के ''अत्याचार'' का उल्लेख किया और कहा कि यह ''पीड़ितों को उनके बचाव से वंचित कर देता है और पीड़ित को यौन हमले की भयावहता के साथ पुनःजीने के लिए छोड़ने के साथ समाप्त होता हैै।''

यह मानते हुए कि मौद्रिक मुआवजे की कोई भी राशि पीड़ित द्वारा झेले गए आघात को खत्म नहीं कर सकती है, अदालत ने कहा कि पीड़ित और परिवार के हाथों में पैसा देना आवश्यक है क्योंकि धन न केवल सुरक्षा की भावना प्रदान करेगा बल्कि उनकी तत्काल जरूरतों को भी पूरा करेगा।

यह भी कहा गया कि मुआवजे की अधिकतम मात्रा का आकलन करने के लिए, विशेष अदालतों को प्रत्येक मामले के तथ्यों, अपराध की प्रकृति, दावे की न्यायसंगतता और मुआवजे का भुगतान करने की आरोपी की क्षमता पर विचार करना चाहिए।

कोर्ट ने कहा,

''जब अधिनियम दो स्पेक्ट्रम प्रदान करता है एक न्यूनतम एक अधिकतम, झुकाव अधिकतम की ओर होना चाहिए। चूंकि यौन हिंसा पीड़ित के जीवन को पटरी से उतार देती है, यह महत्वपूर्ण है कि मुआवजा पीड़ित के जीवन को पटरी पर लाने में सहायता करे। पीड़ित को पर्याप्त सहायता सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से उसे सशक्त बनाने में एक लंबा रास्ता तय कर सकती है।''

जल्द से जल्द दिया जाए अंतरिम मुआवजा

यह देखते हुए कि पीड़ितों को अंतरिम मुआवजे का भुगतान जल्द से जल्द किया जाना चाहिए, अदालत ने कहा कि हालांकि कोई समय सीमा नहीं दी गई है, लेकिन चार्जशीट दाखिल करने की दो महीने की अवधि के भीतर राशि का वितरण किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने तर्क दिया,''चूंकि आरोप पत्र एक आपराधिक अदालत में अपराध के आरोप को साबित करने के लिए जांच या कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा तैयार की गई एक अंतिम रिपोर्ट है, इसलिए अदालत चार्जशीट के आधार पर प्रारंभिक राय बनाए। एक आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दायर आरोप पत्र इस बात का संकेत देता है कि पुलिस द्वारा प्रारंभिक जांच पहले ही पूरी कर ली गई है। चार्जशीट दाखिल करना यह साबित करने के लिए संकेत है कि बच्चे को उस अपराध के परिणामस्वरूप नुकसान या चोट लगी है और वह बाल यौन शोषण का शिकार है।''

अदालत ने कहा कि अंतरिम मुआवजा देने पर विचार करते समय यह सवाल अप्रासंगिक है कि आरोपी अपराध का दोषी है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि अंतरिम मुआवजे की कार्यवाही आरोपी के आरोप पर नहीं बल्कि पीड़ित की जरूरतों के इर्द-गिर्द घूमती है।

विशेष अदालतों को तय करनी चाहिए मुआवजे की मात्रा

अदालत ने यह भी कहा कि केवल विशेष न्यायालयों के पास ही बाल पीड़ितों को दिए जाने वाले मुआवजे की मात्रा निर्धारित करने और राशि के वितरण के लिए डीएसएलएसए को अग्रेषित करने की शक्ति है। अदालत ने यह भी कहा कि डीएसएलएसए के पास केवल मुआवजे की राशि वितरित करने का अधिकार है।

कोर्ट ने कहा,''विशेष अदालतें न केवल क़ानून द्वारा सशक्त हैं बल्कि कानूनी ढांचे की आवश्यकताओं और साक्ष्य अधिनियम, सीआरपीसी, और आईपीसी की कठोरता,दोनों के संदर्भ में सुसज्जित हैं, जो सभी विशेष अदालतों पर लागू हैं। विशेष अदालतें शपथ दिलाने, सबूत मांगने, गवाहों और उसके सामने पेश किए गए तथ्यों की जांच और उसके बाद मुआवजे के आंकड़े पर आने के लिए पूरी न्यायिक प्रक्रिया शुरू करने के लिए अधिकृत हैं।''

फैसले में यह भी कहा गया है कि,''इसलिए, मुआवजे की मात्रा तय करने के लिए विशेष न्यायालय एकमात्र निर्णायक प्राधिकरण है। जब शिकायतकर्ता / पीड़ित मुआवजे की मांग करता है जो वास्तव में एक वित्तीय निवारण है जिसका उद्देश्य पीड़ित के खिलाफ यौन हिंसात्मक अपराध होने के बाद उसके जीवन के पुनर्निर्माण में सहायता करना है।''

कोर्ट के निर्देश

- डीएसएलएसए को चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिनों के भीतर अंतरिम मुआवजे के रूप में अधिकतम राशि का 25 फीसदी भुगतान करना होगा।

- विशेष अदालतें प्रतिपूरक कार्यवाही का न्यायनिर्णयन करेंगी, एक प्रारंभिक राय बनाएंगी और पुनर्वास के प्राथमिक उद्देश्य के साथ एक अंतरिम मुआवजा प्रदान करेंगी।

- विशेष अदालतें अंतरिम मुआवजा प्रदान करेंगी जो कि अधिकतम दिए जाने योग्य मुआवजे का 25 प्रतिशत हो। कारण बताते हुए अंतरिम मुआवजे के रूप में अधिकतम मुआवजे के 25 प्रतिशत से अधिक भी दिया जा सकता है।

- विशेष अदालत और डीएसएलएसए द्वारा दिए गए अंतरिम मुआवजे को अंतिम मुआवजे में समायोजित किया जाएगा।

- डीएसएलएसए, अधिकतम मुआवजे के 25 प्रतिशत के संवितरण की अपनी सीमित भूमिका में चार्जशीट की कॉपी मिलने के 60 दिनों की अवधि के भीतर, तुरंत धनराशि जारी कर दे।

- विशेष न्यायालय और डीएसएलएसए के अंतरिम स्तर पर मुआवजे के वितरण के प्रयास से अधिनियम और योजना के सार को समेट कर लाभ की अधिकतम पहुंच सुनिश्चित होगी।

- प्रत्येक पॉक्सो एफआईआर को एक साथ सदस्य सचिव डीएसएलएसए और विशेष न्यायालय दोनों को भेजा जाएगा।

- डीएसएलएसए को चार्जशीट की कॉपी भी दी जाएगी और चार्जशीट के आधार पर डीएसएलएसए तुरंत और 60 दिनों के भीतर पीड़ित को 25 प्रतिशत मुआवजे की राशि जारी करेगा। यह राशि पीड़ित या माता-पिता के माध्यम से बाल यौन शोषण के पीड़ित के लाभ, पुनर्वास, एकीकरण के लिए उपयोग की जा जाए।

निगरानी प्रक्रिया

यह देखते हुए कि 99 प्रतिशत पीड़ितों को अंतरिम मुआवजा नहीं मिलता है, अदालत ने डीएसएलएसए को उन मामलों पर एक त्रैमासिक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिनमें अंतरिम अंतिम मुआवजा दिया गया है और उक्त राशि को संवितरित करने में कितना समय लगा है।

अदालत ने विशेष अदालतों को उन मामलों की वार्षिक रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया है जिनमें अंतरिम और अंतिम मुआवजा दिया गया है।

अदालत ने निर्देश दिया है कि निगरानी उद्देश्यों के लिए रिपोर्ट रजिस्ट्रार-जनरल, दिल्ली हाईकोर्ट के पास दायर की जाएगी।

क्या था मामला

अदालत 50,000 रुपये के मुआवजे के अनुदान को चुनौती देने वाली एक अपील पर विचार कर रही थी। यह राशि यौन उत्पीड़न की शिकार 7 साल की नाबालिग को दिया गया था।

निचली अदालत ने 30 अगस्त 2019 को मुआवज़ा देते हुए आरोपी को आईपीसी की धारा 342 (गलत तरीके से कैद करने की सजा) और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 (गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमले के लिए सजा) के तहत दोषी ठहराया था। आरोपी को 12 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई और 20000 रुपये का जुर्माना भरने के लिए कहा गया था।

यह देखते हुए कि अपराधों के लिए आरोपी को दोषी पाए जाने के बावजूद ट्रायल कोर्ट सिर्फ 50000 रुपये का मुआवजा देने के लिए कोई तर्क देने में विफल रहा है, हाईकोर्ट ने डीएसएलएसए को निर्देश दिया है कि वह चार सप्ताह के भीतर 10 लाख (10.5 लाख रुपये,जिसमें से 50,000 रुपये कम कर दिए जाएं,यदि पहले ही दिए जा चुके हैं) रुपये का भुगतान करे।

अदालत ने कहा, ''उपरोक्त कारणों से मानसिक आघात और शारीरिक चोट के लिए 50,000 रुपये के मुआवजे की राशि अत्यधिक अपर्याप्त है और इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता है और इसलिए इसे रद्द किया जाता है।''

केस टाइटल- एक्स बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली (इसके सचिव के माध्यम से) व अन्य

साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 996

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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