दिल्ली हाईकोर्ट ने बहादुर शाह जफर द्वितीय की उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाली महिला की याचिका खारिज की

Update: 2021-12-21 06:39 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को सुल्ताना बेगम द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया। अपनी याचिका में सुल्ताना बेगम ने खुद के अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वितीय के परपोते की विधवा होने का दावा करते हुए लाल किले पर कब्जे की मांग की थी।

याचिका में आरोप लगाया गया कि 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जबरन उसका कब्जा छीन लिया गया था।

न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने अदालत का दरवाजा खटखटाने में अत्यधिक देरी होने के आधार पर याचिका खारिज कर दी।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से कहा,

"दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि आपने एक मामला बनाने की कोशिश किए बिना एक याचिका दायर की। आपकी याचिका में ही कहा गया कि 1857 यह हुआ, 1947 में यह हुआ। बस इतना ही। आप कुछ भी कहने की कोशिश नहीं कर रहे हैं कि आपको क्या शिकायत है?"

न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने याचिकाकर्ता के वकील से प्रतिकूल कब्जे के मामलों में सीमा अवधि के बारे में पूछताछ करते हुए कहा:

"हर कोई इसके बारे में जानता है। अदालत में मौजूद हर किसी ने यह इतिहास पढ़ा होगा कि अंतिम मुगल बादशाह को वह निर्वासित कर दिया गया था। यह दुनिया को पता है। उसी समय आपने मुकदमा दायर क्यों नहीं किया था? अगर उसके पूर्वज ऐसा नहीं कर सके तो क्या वह अब ऐसा कर सकती है?"

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाकर्ता के वकील के सामने यह रखा गया कि भले ही बेगम के मामले को स्वीकार कर लिया जाए कि स्वर्गीय बहादुर शाह जफर को ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अवैध रूप से संपत्ति से वंचित किया गया था। मगर अब इसका कोई औचित्य नहीं है। फिर क्यों नहीं याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिए? इस मामले में कुछ भी करने के लिए बहुत देरी हो चुकी है। बेगम के पूर्वजों ने उसे इस बारे में बताने में बहुत लापरवाही की है।

कोर्ट ने कहा,

"मेरे विचार में केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता एक अनपढ़ महिला है, इसका कोई कारण नहीं है कि यदि याचिकाकर्ता के पूर्ववर्ती ईस्ट इंडिया कंपनी की किसी कार्रवाई से व्यथित थे तो इस संबंध में प्रासंगिक समय पर या उसके तुरंत बाद कोई कदम नहीं उठाया गया था।"

कोर्ट ने आगे कहा,

"याचिकाकर्ता देरी के लिए कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दे पाया। यह अदालत याचिका के गुणों की जांच नहीं कर रही है।"

अधिवक्ता विवेक मोरे द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया कि बेगम अपने पूर्वज बहादुर शाह जफर द्वितीय से संपत्ति विरासत में लेने के कारण लाल किले की असली मालिक हैं। इसने यह भी आरोप लगाया कि किले पर भारत सरकार का अवैध रूप से कब्जा है।

याचिका में प्रतिवादी अधिकारियों को भारत सरकार द्वारा कथित अवैध कब्जे के लिए वर्ष 1857 से अब तक का मुआवजा देने का निर्देश देने की भी मांग की गई।

केस शीर्षक: सुल्ताना बेगम बनाम भारत संघ और अन्य

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