दिल्ली हाईकोर्ट ने एएसआई को कुतुब परिसर के अंदर 'मुगल मस्जिद' पर 109 साल पुराना रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया

Update: 2023-07-22 06:07 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को कुतुब मीनार परिसर के अंदर स्थित मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने वाली 1914 में जारी अधिसूचना के संबंध में उसके पास उपलब्ध रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया।

जस्टिस प्रतीक जालान दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा नियुक्त मस्जिद में कथित तौर पर नमाज़ बंद करने के खिलाफ मस्जिद की प्रबंध समिति की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।

विचाराधीन मस्जिद, जिसे 'मुगल मस्जिद' कहा जाता है, कुतुब परिसर में स्थित है। हालांकि, यह कुतुब बाड़े के बाहर है और प्रसिद्ध 'मस्जिद कुव्वतुल इस्लाम' नहीं है, जहां नमाज़ की अनुमति है। मुगल मस्जिद में नमाज़ पढ़ने पर प्रतिबंध पिछले साल मई में लगाया गया और तब से जारी है।

प्रबंध समिति की ओर से पेश हुए वकील एम. सुफियान सिद्दीकी ने कहा कि विचाराधीन मस्जिद 24 जनवरी, 1914 की अधिसूचना के तहत एएसआई द्वारा अधिसूचित संरक्षित स्मारक के अंतर्गत नहीं आती है।

उन्होंने यह भी दलील दी कि पिछले साल 13 मई तक मस्जिद में नमाज अदा की जा रही थी, लेकिन अधिकारियों ने इसे रोक दिया।

जस्टिस जालान ने सिद्दीकी की दलीलों और एएसआई का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील की प्रारंभिक दलीलों पर ध्यान देते हुए कहा,

"...ऐसा प्रतीत होता है कि जिन मुद्दों पर विचार किया जाना है, उनमें अन्य बातों के साथ-साथ यह भी शामिल है कि क्या उक्त मस्जिद दिनांक 24.01.1914 की अधिसूचना के तहत संरक्षित क्षेत्र में शामिल है। यदि हां, तो मस्जिद में नमाज़ की अनुमति के संबंध में इसका परिणाम क्या होगा।"

अदालत ने पक्षों को तीन सप्ताह के भीतर किसी भी निर्णय की प्रतियों के साथ, जिस पर वे भरोसा करना चाहते हैं, अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को 13 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

अदालत ने कहा,

"एएसआई को 24.01.1914 की अधिसूचना जारी करने के संबंध में उसके पास उपलब्ध कोई भी रिकॉर्ड पेश करने का भी निर्देश दिया गया।"

इससे पहले भारत संघ ने अदालत को सूचित किया कि मस्जिद संरक्षित स्मारक है और साकेत कोर्ट उसी मस्जिद से संबंधित मामले से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा है।

दूसरी ओर यह बोर्ड की प्रबंध समिति का मामला है कि भले ही मस्जिद संरक्षित स्मारक है, प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 की धारा 16, प्रासंगिक नियमों के साथ पढ़ी जाती है, यह प्रावधान करती है कि मस्जिद से जुड़ी धार्मिक प्रकृति, पवित्रता को बनाए रखना और नमाज़ियों के इकट्ठा होने और नमाज़ करने के अधिकार की रक्षा करना अधिकारियों का अनिवार्य कर्तव्य है।

याचिका में कहा गया,

"...मुसलमानों को तत्काल मस्जिद में नमाज अदा करने के अवसर से वंचित करना ताकतवर दृष्टिकोण का प्रकटीकरण है, जो संविधान में निहित उदार मूल्यों और आम लोगों के जीवन के हर पहलू में परिलक्षित उदारवाद के विपरीत है।"

इसमें आगे कहा गया,

"नतीजतन अधिकारी इस साधारण कारण से बेवजह और अकारण चुप्पी नहीं साध सकते हैं कि नागरिक को समय पर अपनी शिकायत का निवारण करने का अधिकार है। इस तरह की निष्क्रियता से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत विचार किए गए उसके अधिकार कम हो जाते हैं, दबा दिए जाते हैं और अपंग हो जाते हैं।"

केस टाइटल: दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति बनाम भारत संघ और अन्य।

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