दिल्ली हाईकोर्ट ने सैनिक अधिकारियों के सोशल मीडिया के प्रयोग पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ दायर याचिका ख़ारिज की
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को उस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें सैनिक अफ़सरों के सोशल मीडिया के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने के आदेश को चुनौती दी गई थी। भारतीय सेना ने एक नीतिगत निर्णय लेते हुए सभी सैनिक अधिकारियों को अपना सोशल मीडिया अकाउंट डिलीट करने को कहा था।
न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलाव और न्यायमूर्ति आशा मेनन की पीठ ने इस याचिका को उसके मेरिट के आधार पर ख़ारिज कर दिया।
यह आदेश लेफ़्टिनेंट कर्नल पीके चौधरी की याचिका पर दिया गया है। चौधरी ने मिलिटरी इंटेलिजेंस के महानिदेशक के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें सभी सैनिक अधिकारियों से कहा गया था कि वे अपने फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और 87 अन्य सोशल मीडिया ऐप्स को डिलीट कर दें।
चौधरी ने अपनी याचिका में कहा था कि सोशल मीडिया के अभाव में उन्हें भारत के बाहर रह रहे अपने परिवार के लोगों से सम्पर्क करने में मुश्किल पेश आ रही है।
उन्होंने कहा था कि वे पूरी ज़िम्मेदारी के साथ अपने फ़ेसबुक अकाउंट का प्रयोग करते हैं और इस बारे में समय समय पर जारी भारतीय सेना के दिशानिर्देशों का पालन करते हैं और सेना में अपनी भूमिका और कामकाज के बारे में उन्होंने कोई भी संवेदनशील सूचना फ़ेसबुक या अन्य किसी सोशल मीडिया पर साझा नहीं किया है।
याचिका में कहा गया कि
"सैनिक अपने परिवार में उठने वाले कई तरह के मुद्दों को सुलझाने के लिए फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म का प्रयोग करते हैं, जबकि वे खुद देश के दूर दराज के इलाक़े में तैनात होते हैं। वे अपने और अपने परिवार के सदस्यों के बीच इस भौतिक दूरी को दूर करने के लिए ऑनलाइन संपर्क का सहारा लेते हैं।"
याचिका में यह कहा गया कि सोशल नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाना और उन खातों को डिलीट करने का प्रावधान सैनिक अधिनियम 1950 की धारा 21 में नहीं है और न ही केंद्र सरकार ने जो नियम बनाए हैं, उसमें इसका कोई प्रावधान है।
याचिकाकर्ता ने कहा था कि एक ओर तो सैनिकों को कहा जा रहा है कि वे हर बड़े सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म का प्रयोग बंद कर दें और उन पर अपने यूज़र प्रोफ़ाइल को डिलीट कर दें, जबकि दूसरी ओर प्रतिवादी सैनिकों को सोशल नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म के प्रयोग के बारे में सावधानी बरतने और इनके सुरक्षित और उचित प्रयोग को लेकर उन्हें प्रशिक्षण देने की योजना बनायी जा रही है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि नीति में इस तरह का विरोधाभास इसके बारे में नीति निर्धारण को लेकर दिमाग़ नहीं लगाने का उदाहरण है।
यह भी कहा गया कि यह नीति संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, क्योंकि नागरिक प्रशासन और राजनीतिक वर्ग के लोग जिनके पास एक आम सैनिक की तुलना में काफ़ी उच्च स्तर की संवेदनशील सूचनाएं होती हैं, लेकिन उन पर सोशल मीडिया के प्रयोग को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है
याचिकाकर्ता ने इसीलिए हाईकोर्ट से कहा था कि वह प्रतिवादी को 6 जून 2020 को जारी इस आदेश को वापस लेने का निर्देश दे।
उसने इस आदेश की भी मांग की थी कि कोर्ट यह घोषित करे कि डायरेक्टर जनरल ऑफ़ मिलिटरी इंटेलिजेंस को सैनिकों के मौलिक अधिकारों को संशोधित करने का अधिकार नहीं है।