दिल्ली हाईकोर्ट ने अभिसाक्षी के उचित हस्ताक्षर के बिना, शपथ आयुक्त द्वारा अभिसाक्षी की उपस्थिति के बिना हलफनामे को अनुप्रमाणित करने की प्रथा की निंदा की

Update: 2021-10-08 09:02 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने अभिसाक्षी के उचित हस्ताक्षर के बिना और शपथ आयुक्त द्वारा अभिसाक्षी की उपस्थिति के बिना हलफनामे को अनुप्रमाणित करने की प्रथा की निंदा की।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा,

"अभिसाक्षी के वास्तविक/उचित हस्ताक्षरों के बिना हलफनामा दाखिल करने की प्रथा, अभिसाक्षी के सामने हस्ताक्षर न करने के बावजूद उसकी पहचान करने वाले एलडी वकील और शपथ आयुक्त द्वारा अभिसाक्षी की उपस्थिति के बिना हलफनामे को अनुप्रमाणित करने की प्रथा खत्म होनी चाहिए। "

मामले में प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि हलफनामे में हस्ताक्षर उसके हस्ताक्षर नहीं हैं जो मुकदमेबाजी खर्च के लिए आवेदन का समर्थन करते हैं।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि जिस समय आवेदन पर हस्ताक्षर किए जाने थे, उस समय उनके दाहिने हाथ में चोट लगी थी और इस प्रकार, उन्होंने अपने मित्र को अपनी ओर से हस्ताक्षर करने के लिए कहा था।

आदेश में कहा गया है,

"प्रतिवादी के वकील सुमित कुमार ने भी अभिसाक्षी के हस्ताक्षर की पहचान की है, यह विचार किए बिना कि हलफनामे पर किसने हस्ताक्षर किए हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि शपथ आयुक्त के सामने कौन पेश हुआ।"

न्यायालय ने कहा कि तथ्यों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हलफनामे के अभिसाक्षी ने मुकदमेबाजी खर्च की मांग करने वाले आवेदन के समर्थन में हस्ताक्षर नहीं किया है और प्रतिवादी के वकील ने हलफनामे पर हस्ताक्षर करने वाले अभिसाक्षी को भ्रामक रूप से पहचान लिया था क्योंकि उस पर उसकी उपस्थिति में हस्ताक्षर नहीं किया गया था।

अदालत ने कहा कि जब इसे अप्रिय स्थिति कर सामना करना पडेगा, तो वह अदालत से माफी मांग लेगा।

कोर्ट ने कहा कि इस तरह की प्रथाओं का पालन काउंसल, अदालत के क्लर्कों, साथ ही वादियों द्वारा भी किया जा रहा है। यह स्पष्ट रूप से अधिवक्ता अधिनियम 1961, शपथ अधिनियम, 1969 और विभिन्न अन्य विधियों के प्रावधानों के विपरीत है।

केस का शीर्षक: केबीटी प्लास्टिक प्राइवेट लिमिटेड बनाम राजेंद्र सिंह

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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