दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़मानत पर छोड़े गए आरोपियों को जीपीएस से ट्रैक करने को कहा
दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़मानत पर छोड़े गए आरोपियों पर जीपीएस के माध्यम से नज़र रखने की बात कही है।
न्यायमूर्ति आशा मेनन की एकल पीठ ने क्रिकेट बुकी संजीव चावला को ज़मानत देने के ख़िलाफ़ दिल्ली सरकार की याचिका को ख़ारिज करते हुए यह कहा। चावला पर सन 2000 में क्रिकेट मैच फ़िक्स कारने का आरोप है।
न्यायमूर्ति आशा मेनन ने कहा,
"अमेरिका में जिस तरह डिजिटल और इलेट्रॉनिक उपकरणों का प्रयोग हो रहा है, उसे भारत में भी शुरू किया जाना चाहिए ताकि ज़मानत पर छोड़े गए आरोपियों की जीपीएस जैसे ट्रैकिंग सिस्टम से निगरानी की जा सके और …आरोपी को ज़मानत के दौरान सामानय जीवन जीने की अनुमति दी जा सके।"
वर्तमान माले में चावला को ज़मानत देते हुए अतिरिक्त सत्र जज, पटियाला हाउस कोर्ट ने उसे कहा कि वह अपना मोबाइल फ़ोन हमेशा चालू रखे और हर दिन एसएचओ को कॉल करने को कहा। चावला के ज़मानतदारों से भी अपने मोबाइल फ़ोन के डिटेल देने और इन्हें हमेशा चालू रखने को कहा गया।
चावला की ज़मानत का विरोध कर रहे सरकार की अपील को ख़ारिज करते हुए अदालत ने कहा, "....राज्य प्रतिवादी/आरोपी की ज़मानत को रद्द कर देने के बारे में अपनी दलील को मज़बूती से नहीं रख पाया है।"
हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने जेलों में भीड़भाड़ को कम करने के लिए COVID 19 के बारे में जारी दिशा निर्देशों को इस पर लागू करके एक कदम उठाया है और इस आरोपी को भी इसका लाभ पाने का हक़ है।
पुलिस की पैरवी इस मामले में एएसजी संजय जैन और एपीपी केवल सिंह आहूजा ने की। इन लोगों ने इस आधार पर चावला की ज़मानत ख़ारिज करने को कहा क्योंकि चावला ब्रिटिश नागरिक है और उसे भारत लाने में 20 साल लग गए हैं और हो सकता है कि वह न्याय की गिरफ़्त से भाग जाए।
चावला के वक़ील विकास पाहवा ने कहा कि उनके मुवक्किल ने पिछले 60 दिनों में कभी भी ज़मानत की अपील नहीं की जिससे यह पता चलता है कि वह अभियोजन के साथ सहयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह मामला पिछले सात साल से लंबित था, अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं और सुनवाई पूरी होने में काफ़ी वक़्त लगेगा।
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