दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से सेना में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को लेकर अपनी नीति कोर्ट में पेश करने को कहा

Update: 2020-07-15 13:01 GMT

अदालत ने यह ले. कर्नल पीके चौधरी की याचिका पर दिया है जिन्होंने मिलिटरी इंटेलिजेंस के महानिदेशक के आदेश को चुनौती दी है जिसमें भारतीय सेना के सभी कर्मियों को फ़ेसबुक, इन्स्टाग्राम और 87 अन्य सोशल मीडिया एप्लिकेशन्स को हटा देने को कहा गया है। कर्नल चौधरी के परिवार के लोग भारत के बाहर रहते हैं और सोशल मीडिया तक पहुंच नहीं होने से उन्हें अपने परिवार के साथ संपर्क में असुविधा होगी।

न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलाव और न्यायमूर्ति आशा मेनन ने कहा कि इस नीति पर ग़ौर करने के बाद ही वे इसके मेरिट पर विचार कर सकते हैं।

कोर्ट ने कहा,

"हमारी राय में नीति को पढ़ने के बाद वकीलों की राय सुनी जाए…।"

कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि यह याचिका सेना में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को लेकर अख़बारों में छपी रिपोर्ट के आधार पर दायर की गई है और इसमें वास्तविक आदेश को पेश नहीं किया गया है।

अदालत ने हालांकि, अपीलकर्ता को कोई भी अंतरिम राहत देने से मना कर दिया जिसने अपने फ़ेसबुक अकाउंट को डिलीट किए जाने के बजाय उसको निष्क्रिय कर दिए जाने की अनुमति की मांग की थी, क्योंकि ऐसा करने से उसके महत्त्वपूर्ण डाटा हमेशा के लिए खो जाएंगे।

कोर्ट ने कहा,

"...चूंकि मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है इसलिए इसमें कोई अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती।"

याचिकाकर्ता ने कहा कि

"सैनिक देश के दूर दराज के इलाक़े में पोस्टिंग के दौरान फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म के माध्यम से अपने परिवार में उत्पन्न होनेवाले कई तरह के मसलों से निपटते हैं। इसके माध्यम से होने वाला जुड़ाव परिवार से दूर रहने की कमी को पूरा कर देता है।"

याचिका में कहा गया है कि प्रतिबंध याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और इसमें बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी और निजता की आज़ादी भी शामिल है और सिर्फ संसद ही सैनिकों के मौलिक अधिकारों में तब्दीली कर सकता है।

अनुच्छेद 33 संसद को यह अधिकार देता है पर प्रतिवादी नंबर 1 संसद नहीं है। सोशल नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म पर पाबंदी और अकाउंट डिलीट करने का आदेश देकर प्रतिवादी नंबर 1 ज़्यादा अधिकार हड़पना और हासिल करना चाहता है जबकि यह अधिकार सिर्फ़ संसद के पास है। इस बारे में भारत संघ बनाम जीएस बाजवा (2003) 9 SCC 630 मामले में आए फ़ैसले का हवाला दिया गया। है।

यह भी कहा गया है कि सोशल नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म पर प्रतिबंध की बात सेना अधिनियम, 1950 की धारा 21 में या केंद्र सरकार ने जो इस बारे में नियम बनाए हैं उसमें नहीं कही गई है।

याचिका में कहा गया है कि एक ओर तो सैनिकों को सोशल मीडिया का प्रयोग नहीं करने को कहा जा रहा है दूसरी ओर प्रतिवादी सैनिकों को सोशल नेटवर्किंग प्लैटफॉर्म पर उचित तरीक़े से व्यवहार करने के बारे में जानकारी देने की योजना बना रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह का प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है क्योंकि नागरिक प्रशासन और राजनीति में ऐसे कई लोग हैं जिनके पास नियमित सैनिकों की तुलना में कहीं ज़्यादा ऊँचे स्तर की संवेदनशील सूचनाएँ होती हैं। पर इन्हें सोशल मीडिया का प्रयोग नहीं करने को नहीं कहा जा रहा है।

इसलिए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया है कि वह प्रतिवादी को 6 जून 2020 को जारी नीति को वापस लेने को कहे जिसमें सैनिकों को अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स को बाज रखने या डिलीट करने को कहा गया है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि मिलिटरी इंटेलिजेंस के महानिदेशक को संविधान के तहत सशस्त्र सैनिकों के मौलिक अधिकारों को संशोधित करने या उन पर पाबंदी लगाने का अधिकार नहीं है।

यह याचिका वक़ील शिवांक प्रताप सिंह और सानंदिका प्रताप सिंह के माध्यम से दायर की गई है।

आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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