दिल्ली की अदालत ने दिल्ली पुलिस के एएसआई और 2 अन्य को नौकरी दिलाने के लिए जज को रिश्वत देने का दोषी ठहराया

Update: 2021-09-28 11:51 GMT

दिल्ली की एक अदालत (राउज़ एवेन्यू डिस्ट्रिक्ट कोर्ट) ने सोमवार को दिल्ली पुलिस के एएसआई तारा दत्त, मुकुल कुमार और रमेश कुमार को मुकुल कुमार को नौकरी दिलाने के लिए एक जज को रिश्वत देने का दोषी ठहराया।

विशेष न्यायाधीश किरण बंसल ने उन्हें चंद्रशेखर, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, तीस हजारी न्यायालय, दिल्ली को 50 हजार रुपए की रिश्वत की पेशकश करने का दोषी पाया। उन्होंने दोषियों में से एक मुकुल को दिल्ली जिला अदालत में चपरासी को नौकरी दिलाने के लिए रिश्वत की पेशकश की थी।

मामला

अभियोजन पक्ष के अनुसार, शिकायतकर्ता [चंद्र शेखर, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, तीस हजारी न्यायालय, दिल्ली ] को अभियुक्त संख्या दो मुकुल कुमार के पक्ष में दिखाने के लिए रिश्वत की पेशकश करना उनका उद्देश्य था, क्योंकि जज शेखर चपरासी की भर्ती के लिए बनी समिति के सदस्य थे।

एएसआई दत्त ने एक लिफाफा सौंपा, जिस पर "SECRET" लिखा हुआ था और जिसमें 50 हजार नकद और मुकुल के रोल नंबर की एक फोटोकॉपी थी, जिसे ऑर्डरली के पद के लिए साक्षात्कार के लिए पेश होना था।

उसने जज से मिलने की भी कोशिश की लेकिन उन्होंने से मिलने से इनकार कर दिया और उसने अदालत के नायब के पास लिफाफा जज शेखर को देने के लिए यह कहते हुए छोड़ दिया कि वह लिफाफे को देखकर समझ जाएंगे।

विचाराधीन लिफाफा (उम्मीदवार के रोल नंबर के साथ राशि सहित) जज शेखर को दिया जाना था जो भर्ती समिति (साक्षात्कार आयोजित) के बोर्ड सदस्य थे। इरादा था कि पैसा मिलने के बाद जज मुकुल को दिल्ली जिला अदालतों में चपरासी के पद के लिए तरजीह देंगे।

जांच के दौरान यह भी पता चला कि दत्त ने दयानंद शर्मा (विशेष मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट) से संपर्क किया था ताकि वह चंद्रशेखर से बात कर सकें, जो सिफारिश के लिए साक्षात्कार बोर्ड के सदस्य थे। इसके बाद आरोपी एएसआई तारा दत्त और मुकुल कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 12 सहपठित आईपीसी की धारा 120 बी के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

जांच के दौरान पता चला कि दयानंद शर्मा, विशेष मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, एसडीएमसी नजफगढ़ जोन, नई दिल्ली आरोपी एएसआई तारा दत्त का रिश्तेदार (चाचा ससुर) हैं। मुकदमे की कार्यवाही के दौरान 17.04.2019 आरोपी दयानंद शर्मा की मृत्यु को हो गई और उसके बाद, उसके खिलाफ कार्यवाही दिनांक 07.05.2019 के आदेश के तहत समाप्त हो गई।

न्यायालय की टिप्पणियां

शुरुआत में, अदालत ने कहा कि सीडीआर ने साबित कर दिया कि आरोपी व्यक्ति प्रासंगिक अवधि के दौरान एक-दूसरे के लगातार संपर्क में थे और वास्तव में, कुछ कॉल देर रात की थीं, जिससे स्पष्ट निष्कर्ष निकला कि आरोपी व्यक्ति एक दूसरे को जानते थे।

आपराधिक साजिश के आरोप के संबंध में, कोर्ट ने कहा कि साजिश के लिए किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए, अभियोजन पक्ष को यह दिखाना होगा कि सभी आरोपी साजिश के गैरकानूनी उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहमत थे।

इसके अलावा, कोर्ट ने माना कि वह संतुष्ट है कि साजिश के अस्तित्व पर विश्वास करने के लिए एक उचित आधार था और यह साबित तथ्यों और परिस्थितियों से न्यायिक निष्कर्ष के लिए एक मामला है।

अंत में, उपरोक्त चर्चा को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने माना कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे साबित करने में सफल रहा है कि आरोपी व्यक्तियों तारा दत्त, मुकुल कुमार और रमेश कुमार ने एक लोक सेवक जज चंद्रशेखर को 50 हजार की राशि स्वीकार करने के लिए एक आपराधिक साजिश रची थी।

उपरोक्त आपराधिक साजिश के अनुसार, आरोपी तारा दत्त ने निम्नलिखित साक्ष्य के आधार पर भर्ती प्रक्रिया में मुकुल कुमार के पक्ष में उपरोक्त राशि से युक्त एक लिफाफा दिया था:

-नायब सुरेंद्र कुमार के विश्वसनीय, भरोसेमंद और सुसंगत होने की गवाही।

-आरोपी व्यक्तियों के सीडीआर से पता चलता है कि वे प्रासंगिक समय पर एक-दूसरे के नियमित संपर्क में थे।

-50,000/- रुपये की राशि के साथ लिफाफे में रखे आरोपी मुकुल कुमार के रोल नंबर की फोटोकॉपी।

-आरोपी नं. 1 तारा दत्त की प्रासंगिक समय पर तीस हजारी कोर्ट में की उपस्थिति स्पष्ट रूप से स्थापित की गई थी...

इसलिए आरोपी तारा दत्त, मुकुल कुमार और रमेश को तदनुसार धारा 120बी आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 12 के तहत धारा 120बी आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था।

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