स्कूल के प्रमाण पत्र के आधार पर पहले ही प्रवेश प्राप्त कर चुके छात्रों के खिलाफ उस स्कूल की गैर-मान्यता का उपयोग नहीं किया जा सकता है : इलाहाबाद हाईकोर्ट
एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय (एकेटीयू) में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने वाले झारखंड स्टेट ओपन स्कूल के पूर्व छात्रों को एक बड़ी राहत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि विश्वविद्यालय केवल इस आधार पर कॉलेज की नामांकन सूची से इन छात्रों के नाम नहीं हटा सकता, क्योंकि दाखिला दिए जाने के बाद उनके स्कूल को गैर-मान्यता प्राप्त पाया गया था।
कुछ उदाहरणों या फैसलों का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति विवेक चैधरी ने कहा,
''इस प्रकार मुझे न तो कानून में या न ही स्वभाविक न्याय में, यह लगता है कि याचिकाकर्ताओं को इस स्तर पर अब अपनी शिक्षा पूरी करने से मना किया जा सकता है। बल्कि यह याचिकाकर्ताओं के लिए बहुत कठोर होगा, जो अब 19 से 23 साल की आयु के हो चुके हैं, उनको अब दसवीं पास उत्तीर्ण घोषित कर दिया जाए और उन्हें फिर से अपनी बारहवीं की परीक्षा देने के लिए कहा जाए।
वे सभी विभिन्न तकनीकी पाठ्यक्रमों के छात्र हैं और सफलतापूर्वक अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। यहां तक कि जब याचिकाकर्ताओं ने प्रवेश लिया था तो विश्वविद्यालय ने झारखंड स्टेट ओपन स्कूल के प्रमाणपत्र को मान्यता दे दी थी।''
वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता छात्रों ने झारखंड स्टेट ओपन स्कूल से अपनी इंटरमीडिएट पूरी की थी और जेएसओएस से मिले कक्षा-बारहवीं के प्रमाण पत्र के आधार पर एकेटीयू में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश लिया था। इसके बाद, यह पता लगने पर कि जेएसओएस मान्यता प्राप्त निकाय नहीं है, विश्वविद्यालय ने उनके नाम नामांकन सूची से हटा दिए।
न्यायालय ने यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ताओं को नियमित छात्रों के रूप में अपनी पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दे। इसी के साथ अदालत ने कहा,
''वर्तमान मामले में भी, छात्र गलती पर नहीं हैं। उन्हें भी जेएसओएस द्वारा वैसा ही धोखा दिया गया था, जैसा एकेटीयू को धोखा दिया गया था। एकेटीयू ने भी उनको प्रवेश दिया है और काफी सारे याचिकाकर्ता अपनी पहले वर्ष की परीक्षा पास कर चुके हैं और वह दूसरे वर्ष में प्रवेश पा चुके हैं या दूसरे वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं।''
सुरेश पाल व अन्य बनाम हरियाणा राज्य व अन्य में, (1987) 2 एससीसी 445, मामले में शारीरिक प्रशिक्षण प्रशिक्षकों या अनुदेशकों के योग्यता प्रमाण पत्र को हरियाणा राज्य सरकार द्वारा गैर-मान्य घोषित कर दिया गया था।
यह निर्देश देते हुए कि इस तरह की गैर-मान्यता को प्रशिक्षकों की निंदा या निवारण या डिटरन्स के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, शीर्ष अदालत ने कहा था,
''अब याचिकाकर्ताओं को यह बताना अन्याय होगा किःउनके पाठ्यक्रम में शामिल होने या ज्वाइन करने के समय इसे मान्यता दी गई थी, फिर भी उन्हें ऐसी मान्यता का लाभ नहीं दिया जा सकता है और उनके द्वारा प्राप्त प्रमाण पत्र निरर्थक होंगे, क्योंकि उनके कोर्स के दौरान या कोर्स पूरा होने से पहले ही इसे राज्य सरकार द्वारा गैर-मान्य घोषित कर दिया गया था या इसकी मान्यता खत्म कर दी गई थी।''
अशोक चंद सिंघवी बनाम यूनिवर्सिटी ऑफ जोधपुर एंड अन्य, (1989) 1 एससीसी 399 के मामले में दिए गए इसी तरह के एक निर्णय का संदर्भ भी दिया गया था।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व एडवोकेट अनिलेश तिवारी और देश दीपक सिंह ने किया और प्रतिवादी की तरफ से मुख्य स्थायी वकील अतुल कुमार द्विवेदी पेश हुए।
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