बेटियां अपनी वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकती हैं: सहकारी सोसायटी विनियमों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा

Update: 2023-07-18 12:25 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने यूपी रेगुलेशन 104 से जुड़े नोट में 'बेटी' से पहले आने वाले 'अविवाहित' शब्द को हटा दिया। सहकारी समितियां कर्मचारी सेवा विनियम, 1975 जो अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्रता को नियंत्रित करता है।

जस्टिस देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि राज्य ने उत्तर प्रदेश में मरने वाले सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियम, 1974 में संशोधन करते हुए बेटियों की वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना उनके अधिकार को मान्यता दी है। 1975 के विनियमों के तहत बेटियों को वही मान्यता प्रदान की जानी चाहिए।

याचिकाकर्ता के पिता, प्रतिवादी-बैंक में सहायक शाखा लेखाकार के रूप में कार्यरत थे, उनकी मृत्यु हो गई। यूपी के विनियम 104 के आधार पर सहकारी समिति कर्मचारी सेवा विनियम, 1975, याचिकाकर्ता को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित कर दिया गया क्योंकि उक्त प्रावधान के तहत केवल अविवाहित या विधवा बेटी ही अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र है।

याचिकाकर्ता ने अस्वीकृति आदेश के साथ-साथ 1975 विनियमों के विनियम 104 में आने वाले 'अविवाहित' शब्द को भी चुनौती दी।

धारा 122 उ.प्र. सहकारी समिति अधिनियम, 1965 यू.पी. को सशक्त बनाता है। सहकारी संस्थागत सेवा बोर्ड उत्तर प्रदेश में सहकारी समितियों के कर्मचारियों की सेवा शर्तों के संबंध में नियम बनाएगा। ऐसे नियम राज्य सरकार की मंजूरी के अधीन हैं।

कोर्ट ने कहा कि याचिका के लंबित रहने के दौरान, बोर्ड ने 1975 के विनियम 104 में संशोधन करने और विवाहित, अविवाहित और विधवा बेटी को शामिल करने के लिए 'अविवाहित या विधवा बेटी' के स्थान पर 'बेटी' शब्द जोड़ने की सिफारिश की थी। हालांकि, राज्य सरकार ने इसे ठुकरा दिया था।

विमला श्रीवास्तव बनाम. उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य तथा नेहा श्रीवास्तव बनाम यूपी राज्य और अन्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णयों पर भरोसा करते हुए। जिसकी सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की है, कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश में हार्नेस में मरने वाले सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियम, 1974 में राज्य सरकार द्वारा 'बेटियों' को उनकी वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना शामिल करने के लिए 'परिवार' के दायरे में संशोधन किया गया है।

न्यायालय ने माना कि सेवा के दौरान मरने वाले कर्मचारी के 'परिवार' के रूप में विवाहित बेटियों को शामिल करने से इनकार करते समय राज्य द्वारा कोई औचित्य नहीं दिया गया था। अनुकंपा नियुक्ति के उद्देश्य से राज्य सरकार के कर्मचारियों और राज्य की सहकारी समिति में काम करने वाले कर्मचारियों के बीच कोई वैध अंतर नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा,

"हमारे सामने प्रस्तुत इस मामले के तथ्य यह दर्शाते हैं कि अनुकंपा नियुक्ति के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कानून की स्पष्ट घोषणा के बावजूद राज्य अभी भी लैंगिक न्याय के प्रति उदासीन कैसे हो सकता है।"

साथ ही प्रतिवादी-बैंक को अनुकंपा नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया गया था।

केस टाइटल: नीलम देवी बनाम यूपी राज्य [रिट ए नंबर 18566 ऑफ़ 2021]

दिनांक: 17.07.2023

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