नाबालिग बच्चों की कस्टडी के मामले घर के बड़ों द्वारा नहीं निपटाए जाने चाहिए : तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि बच्चों की कस्टडी के विवादों को घर के बुजुर्गों द्वारा नहीं सुलझाया जा सकता। कोर्ट ने साथ ही दोहराया कि ऐसे मामलों में नाबालिग बच्चों का कल्याण सर्वोपरि है।
जस्टिस के. लक्ष्मण और जस्टिस के. सुजाना की खंडपीठ 7 वर्षीय बेटी की मां द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसके पति ने उनकी बेटी का अवैध रूप से अपहरण कर लिया है और उसे अपनी कस्टडी में रखा है।
“बुज़ुर्ग यह तय नहीं कर सकते कि नाबालिग लडका मां के साथ रहे और लड़की पिता के पास रहे। कस्टडी के मामलों में नाबालिग बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है।''
याचिकाकर्ता-मां ने प्रस्तुत किया कि उसने 2014 में प्रतिवादी से शादी की और उनके दो बच्चे हैं। 2015 में एक बेटी और उसके बाद एक बेटा। हालांकि पक्षकारों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया और ट्रायल कोर्ट के समक्ष विवाह विच्छेद याचिका दायर की गई।
विवाह विच्छेद याचिका के लंबित रहने के दौरान एक पंचायत आयोजित की गई और उनके रिश्तेदारों सहित बुजुर्गों ने फैसला किया कि बड़ी बेटी अपने पिता के साथ रहेगी और बच्चा केवल 9 महीने का होने के कारण मां की कस्टडी में रहेगा।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी दिन भर काम करता है और नाबालिग बेटी की देखभाल के लिए घर पर कोई नहीं रहता। याचिकाकर्ता ने यह भी आशंका व्यक्त की कि प्रतिवादी उनकी बेटी की कस्टडी अपने भाई को देने की कोशिश कर रहा है।
दूसरी ओर प्रतिवादी ने दावा किया कि याचिकाकर्ता हिंसक है और उनकी बेटी को अपनी मां के साथ रहने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
पीठ ने कहा कि बच्चे के कल्याण का निर्धारण करते समय कई कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है।
“बंदी प्रत्यक्षीकरण कार्यवाही कस्टडी की वैधता को उचित ठहराने या उसकी जांच करने के लिए नहीं है। बंदी प्रत्यक्षीकरण कार्यवाही एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से बच्चे की कस्टडी को न्यायालय के विवेक पर निर्भर किया जाता है।''
अदालत ने नाबालिग लड़की को उसकी मां के साथ भेजना उचित समझा, जो एक गृहिणी है। कोर्ट ने देखा कि बच्ची 7 साल की थी और प्रतिवादी कामकाजी है।
कोर्ट ने याचिका की अनुमति देते हुए कहा,
“ बेशक, बच्ची की उम्र 7 साल है। यह एक कोमल उम्र है। वह एक बच्ची है... पूरे काउंटर में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि अगर 9वें प्रतिवादी को संरक्षण दिया जाता है तो नाबालिग बच्चे की देखभाल कौन करेगा, जबकि याचिकाकर्ता, गृहिणी होने के नाते, बच्ची की देखभाल कर रही है, इसलिए हमारा मानना है कि नाबालिग बच्चे की कस्टडी उसकी मां (याचिकाकर्ता) को देना उचित और आवश्यक है।”
न्यायालय ने प्रतिवादी को कानूनी सहारा के माध्यम से अपने बच्चों की कस्टडी लेने की स्वतंत्रता भी दी।