गवाह की विश्वसनीयता आरोपी द्वारा उसके क्रॉस एक्ज़ामिनेशन से ही स्थापित हो सकती है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2020-02-11 04:00 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी भी गवाह की विश्वसनीयता लगाए गए आरोपों के पर आरोपी द्वारा किए गए उसके प्रति परीक्षण (क्रॉस इग्ज़ामिनेशन) से ही स्थापित हो सकती है।

न्यायमूर्ति अजित सिंह ने कहा कि आवेदनकर्ता सह आरोपी के ख़िलाफ़ तय आरोप को बदलने के बाद उसे अभियोजन पक्ष के गवाहों के प्रति परीक्षण का मौक़ा नहीं देकर निचली अदालत ने ग़लती की है।

अदालत ने कहा,

"प्राकृतिक क़ानून का यह सिद्धांत है कि किसी को भी बिना उसकी सुने उसे दोषी क़रार नहीं दिया जा सकता और उसे आरोपी को पूरा मौक़ा देना चाहिए और क्रॉस इग्ज़ामिनेशन का मौक़ा सभी आरोपी को दिया जाना चाहिए ताकि अपने ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों से वह अपना बचाव कर सके।"

इस मामले में याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ पहले आईपीसी की धारा 120B के तहत आपराधिक षड्यंत्र का आरोप लगाया गया। बाद में इस आरोप में संशोधन करते हुए उस पर हत्या का आरोप लगाया गया और आरोपी ख़ुद का क़ानूनी तौर पर बचाव नहीं कर पाए क्योंकि नए आरोपों पर उन्हें गवाहों का प्रति परीक्षण करने का मौक़ा नहीं दिया गया।

अदालत ने कहा कि इस तरह का अप्रोच न केवल प्राकृतिक न्याय के ख़िलाफ़ है बल्कि सीआरपीसी की धारा 216 और 217 के प्रावधानों के ख़िलाफ़ भी है। इन प्रावधानों में कहा गया है कि अगर आरोपों में किसी तरह का बदलाव किया जाता है तो इसकी बारे में आरोपी को पूरी तरह बताया जाना चाहिए और उसे इन बदले हुए आरोपों के संदर्भ में गवाहों से पूछताछ की अनुमति होनी चाहिए।

अदालत ने कहा,

"वर्तमान मामले में, वैकल्पिक आरोप लगाए जाने के साथ ही उन गवाहों के उस तिथि से पहले दिए गए बयानों पर ग़ौर किया जा सकता है और अदालत की राय है कि धारा 216 और 217 के प्रावधान बाध्यकारी हैं क्योंकि ये न केवल प्राकृतिक न्याय के लिए ज़रूरी हैं बल्कि यह आरोपी को गवाहों से पूछताछ का मौक़ा देकर उसे ख़ुद के बचाव का पूरा मौक़ा देता है।"

अदालत ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह अभियोजन पक्ष के गवाहों प्रतिदिन बुलाए और आरोपी को उससे पूछताछ का मौक़ा दें और इस प्रक्रिया में मामले को अनावश्यक रूप से स्थगित न करें। 




Similar News