COVID-19: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया, कमजोर वर्ग को खाद्यान्न वितरण के मुद्दे पर विचार करे
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार (24 मई) को सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह कमजोर वर्ग को खाद्यान्न वितरण के मुद्दे पर विचार करे और शासन की जवाबदेही सुनिश्चित करे।
जस्टिस अताउरहमान मसूदी की बेंच ने कहा, "यह कोर्ट विनम्रतापूर्वक सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करती है कि वह कमजोर वर्ग को खाद्यान्न वितरण के मुद्दे पर विचार करे और मात्रा और गुणवत्ता से संबंधित प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करने संबंधित स्वत: संज्ञान याचिकाओं पर विचार करे..."
वंचितों की दुर्दशा
कोर्ट ने कहा कि अगर मौजूदा महामारी की अवधि में, सामूहिक विनाश के वर्तमान परिदृश्य में वंचित आबादी की दुर्दशा पर ध्यान नहीं जाता है तो कोर्ट अपने कर्तव्य में विफल हो जाएगी।
कोर्ट ने कहा कि बेरोजगारी की वर्तमान स्थिति में खाद्यान्न वितरण से संबंधित मुद्दे आकार में बड़े हैं, विशेषकर उत्त्तर प्रदेश में, जबकि चुनावों के बाद ग्राम पंचायतों ने महामारी के निस्तारण के लिए अभी तक कार्यात्मक भूमिका ग्रहण नहीं की है।
कोर्ट ने टिप्पणी की, "कुप्रबंधित स्वास्थ्य सेवाओं जैसे ही अप्रबंधित भूख भी अप्राकृतिक मौतों में समान रूप से योगदान दे सकती है। यह अदालत तंत्र की कमी को नजरअंदाज नहीं कर सकती है, जिसके तहत वंचितों को आपूर्तित खाद्यान्न की गुणवत्ता की जांच कर्तव्यपूर्वक सुनिश्चित की जाती है और यह बिल्कुल संभव है कि भूख और कुपोषण हो सकता है कि जानहानि का कारण भी बनें।"
कोर्ट ने आगे कहा कि न्यायपालिका का वंचित नागरिकों के प्रति एक कानूनी दायित्व है, जिसके तहत संवैधानिक अदालतें संकट के स्थति में गुणवत्तापूण्र खाद्यान्न की आपूर्ति से संबंधित राज्य के दायित्व की जांच के लिए बाध्य हैं, जिसमें विफल रहने पर स्वास्थ्य के लिए खतरा अभूतपूर्व आयाम ग्रहण कर लेगा और राष्ट्र को असहाय बना सकता है।
अंत में, कोर्ट ने निर्देश दिया कि आदेश की प्रति मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार और नागरिक आपूर्ति मंत्रालय, भारत सरकार को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी जाए।
आदेश की एक प्रति को रजिस्ट्रार जनरल, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, नई दिल्ली को भेजने का भी निर्देश दिया गया।
पृष्ठभूमि
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 7 जुलाई, 2020 को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी एक आदेश को रद्द करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें उचित मूल्य की दुकानों के आवंटन में, अन्य सभी श्रेणियों के व्यक्तियों को छोड़कर स्वयं सहायता समूहों को वरीयता दी गई थी।
जस्टिस अताउ रहमान मसूदी की खंडपीठ ने कहा कि विवादित सरकारी आदेश स्वयं सहायता समूहों के पक्ष में "एकाधिकार" बनाने का प्रयास करता है, जो आम तौर पर जवाबदेही तय करने के उद्देश्यों के लिए "कमजोर कानूनी पहचान" रखते हैं और इस प्रकार, ऐसा कोई भी निकाय किसी प्रकार का सुधार लाने के बजाय सार्वजनिक वितरण प्रणाली के उद्देश्यों को "बिगड़ने" का आशंका रखता है।
अन्य महत्वपूर्ण आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देश भर में फंसे प्रवासी कामगारों को आत्मनिर्भर योजना या राज्यों / केंद्र सरकार की उपयुक्त किसी अन्य योजना के तहत सूखा राशन वितरित करने का निर्देश दिया।
राज्यों को निर्देश दिया गया था कि वे उस तंत्र का उल्लेख करते हुए हलफनामा दाखिल करें जिसके द्वारा राशन कार्ड नहीं रखने वालों को सूखा राशन वितरित किया जाएगा, और यह राज्यों को तय करना है कि इसके लिए किस योजना का उपयोग किया जाएगा।
13 मई को, बेंच ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में फंसे प्रवासियों के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों को सूखा राशन उपलब्ध कराने और और सामुदायिक रसोई चलाने का निर्देश दिया था।
जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की बेंच एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर, अंजलि भारद्वाज और जगदीप छोकर ने स्वत: संज्ञान मामले में दायर की थी, जिसमें COVID-19 महामारी की दूसरी लहर के मद्देनजर विभिन्न राज्यों द्वारा घोषित लॉकडाउन के कारण प्रवासी कामगार को पेश आ रही मुश्किलों को उठाया गया था।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में राज्य सरकार को पीएचएच कार्ड आवेदकों को 10 किलो अनाज मुफ्त और एनपीएचएच कार्ड आवेदकों के लिए 15 किलो अनाज मुफ्त तुरंत वितरित करने के प्रस्ताव पर विचार करने का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने कहा, "राज्य सरकार को उसके द्वारा प्रस्तावित योजना के कार्यान्वयन पर फैसला करना होगा। हम राज्य सरकार को उक्त प्रस्ताव पर तत्काल निर्णय लेने का निर्देश देते हैं।"
उड़ीसा हाईकोर्ट ने इस सप्ताह राज्य सरकार के इस प्रस्तुति पर कि उसने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत पहले ही 80% आबादी को कवर कर लिया है, पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा, "उड़ीसा में कमजोर श्रेणियों से संबंधित कोई भी व्यक्ति नहीं हो सकता है जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम या राज्य खाद्य सुरक्षा योजना से बाहर है। हर गुजरते महीने के साथ कवरेज बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किया जाना चाहिए।"
चीफ जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस बीपी राउतरे की खंडपीठ ने कहा,"यह कहना पर्याप्त नहीं है कि सरकार पहले ही पीडीएस के तहत 80 प्रतिशत आबादी को कवर कर चुकी है।"
दिल्ली रोजी-रोटी अधिकार अभियान ने पिछले महीने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाकर दिल्ली सरकार को मुख्यमंत्री कोरोना सहायता योजना (एमएमसीएसवाई )या गरीबों और जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए बनाई गई किसी अन्य योजना के तहत सूखा राशन प्रदान करने की योजना को फिर से शुरू करने के निर्देश देने की मांग की थी।
केस टाइटिल: हरिपाल बनाम यूपी राज्य और अन्य।
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