COVID 19 : इमरजेंसी पैरोल और स्पेशल फर्लो को जेल नियमों में शामिल करने की योजना, दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार ने कहा 

Update: 2020-03-23 11:17 GMT

दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया है कि वह कोरोना वायरस की बढ़ती चिंता से निपटने के लिए दिल्ली जेल नियमों में बदलाव लाने का प्रस्ताव ला रही है।

यह जवाब दिल्ली की प्रमुख जेलों जैसे तिहाड़ और रोहिणी की जेलों में बंद कुछ श्रेणी के कैदियो को छोड़ने की दलील के संबंध में दिया गया है, ताकि जेल परिसर में COVID 19 वायरस के फैलने पर अंकुश लगाया जा सके।

दिल्ली सरकार की तरफ से पेश होते हुए, अतिरिक्त स्थायी वकील अनुज अग्रवाल ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार दिल्ली जेल के नियमों के नियम 1219ए और 1243ए को जोड़ने के लिए दिल्ली जेल अधिनियम की धारा 71 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए एक अधिसूचना जारी करने का प्रस्ताव ला रही है।

इन नए नियम के तहत एक वर्ष में एक ही बार में 60 दिन की पैरोल दी जा सकेेगी,अभी 30-30 दिनों की साल में दो बार पैरोल दी जा सकती है।  

इसके अलावा, आदेश में निर्दिष्ट किए जाने वाले कैदियों की श्रेणी और उनके लिए बताए गए दिनों की संख्या के लिए भी विशेष फर्लो की एक अस्थायी सुविधा शुरू की जाएगी।

सरकार ने विशेष परिस्थितियों को आपातकालीन स्थिति जैसे महामारी की आशंका, प्राकृतिक आपदा या किसी अन्य स्थिति या ऐसी परिस्थितियों के रूप में पहचाना है,जिसके चलते कैदियों के हित और बड़े पैमाने पर समाज के हित को देखते हुए उनकी संख्या  को तत्काल कम करना जरूरी है।

अदालत को यह भी बताया गया कि दिल्ली सरकार वाक्यांश ''आपातकालीन पैरोल'' को शामिल करने के लिए दिल्ली जेल नियमों के नियम 1202 में संशोधन करने का प्रस्ताव भी लाई है, जो सरकार द्वारा निर्धारित शर्तों के अधीन  सरकार को नियमित पैरोल के अलावा एक बार में ही  8 सप्ताह तक  की पैरोल देने के लिए अधिकृत करेगा। 

राज्य सरकार ने यह भी बताया कि अंडरट्रायल कैदियों (यूटीपी) के संबंध में, जिन पर केवल एक केस दर्ज है और जिसमें अधिकतम सजा 7 साल या उससे कम कारावास की है, और जिन्होंने जेल में न्यूनतम 3 महीने पूरे कर लिए हैं, सरकार ने  प्रस्तावित किया है कि ऐसे यूटीपी की तरफ से अनुरोध किए जाने पर उनको प्राथमिकता के साथ व्यक्तिगत बांड पर ही 45 दिनों के लिए अंतरिम जमानत दे दी जाएगी।

इन दलीलों को ध्यान में रखते हुए, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की डिवीजन बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस तरह के विषय के बारे में स्वत संज्ञान ले चुका है।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि हल्के या कम गंभीर अपराधों में शामिल कैदियों को पैरोल देने पर विचार करने के लिए पैनल गठित करें।

जेलों में भीड़भाड़ और बड़ी उम्र के कैदियों के आंकड़ों का हवाला देते हुए, याचिका में उन सभी कैदियों को रिहा करने की मांग की गई थी,जो 50 साल और उससे अधिक उम्र के हैं या जो मेडिकली फिट नहीं है और छोटे-मोटे अपराधों में जेल में बंद है। ताकि कोरोना वायरस से संक्रमित होने से इनकी सुरक्षा की जा सकें। 

याचिकाकर्ता की तरफ से यह भी कहा गया था कि वह कैदियों की बिना शर्त रिहाई की मांग नहीं कर रही है। उसने तर्क दिया है कि ऐसी रिहाई के लिए जमानत बांड, जमानती लाना और अंडरटेकिंग को शर्तों के रूप में लगाया जा सकता है। 

यह भी दलील दी गई है कि इस प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए अलग-अलग मजिस्ट्रेट को संबंधित जेलों में तैनात किया जा सकता है  ताकि कैदियों को अदालतों में न लाना पड़े और अदालत परिसर में भीड़भाड़ न हो सकें।

इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता खुशबू साहू और पीयूष सांघी ने किया था।

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