COVID-19- 'स्वास्थ्य एक बुनियादी मानव अधिकार है, जिसे कोई भी लोकप्रिय सरकार नकार नहीं सकती': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कई दिशा-निर्देश जारी किए

Update: 2021-04-19 12:34 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में शामिल स्वास्थ्य का अधिकार की व्याख्या करने वाले सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों का उल्लेख करते हुए राज्य सरकार को कई दिशा-निर्देश जारी किए।

मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक और न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि,

"नागरिकों के स्वास्थ्य का अधिकार तभी सुरक्षित हो सकता है जब राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य देखभाल के लिए पर्याप्त उपचार सुविधाएं उपलब्ध कराएं और कोरोनावायरस जैसी आपदाओं से बचाकर नागारिकों की देखभाल करें।"

बेंच ने महत्वपूर्ण रूप से यह भी टिप्पणी की कि,

" भारत के संविधान के भाग- IV के अनुच्छेद 38, अनुच्छेद 39 (ई), अनुच्छेद 41 और अनुच्छेद 47 और इसके साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में गारंटी दी गई है। इसमें अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है।"

कोर्ट अन्य लिखित याचिकाओं के साथ-साथ और स्वत: संज्ञान लेने की मांगी वाली रिट याचिका और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अश्विनी कुमार द्वारा दिनांक 08.06.2020 को भारत के मुख्य न्यायाधीश को लिखित पत्र के आधार पर सुनवाई कर रही थी।

08.06.2020 को दिए गए उक्त पत्र में भोपाल के एक निजी अस्पताल में COVID-19 संक्रमित बिस्तर पर पड़े बुजुर्ग की दुखद स्थिति को उजागर किया गया था।

कोर्ट ने इसके बाद यह सुनिश्चित करने के लिए कई आदेश पारित किए कि राज्य में COVID-19 रोगियों को समय पर उपचार उपलब्ध कराया जाए क्योंकि उनका उत्पीड़न और शोषण किया जा रहा है।

COVID-19 से निपटने के लिए राज्य की तैयारी

कोर्ट ने शुरुआत में देखा कि राज्य ने COVID-19 महामारी से लोगों को बचाने के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं जैसे 30 अप्रैल, 2021 तक 651 मीट्रिक टन की अपेक्षित मांग को पूरा करने के लिए ऑक्सीजन की खरीद की, रेमडेसिविर का इंजेक्शन उपलब्ध कराया, सरकारी अस्पतालों में बिस्तर की क्षमता बढ़ाया और 52 जिलों में कोविड कमान और नियंत्रण केंद्र स्थापित किए।

कोर्ट ने पिछले एक महीने के भीतर राज्य सरकार द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की और न्यायालय ने यह भी माना कि भविष्य के लिए इसकी तैयारी काफी प्रभावशाली है।

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि राज्य के प्रयासों को भी जमीनी स्तर पर लाया जाना चाहिए और इसके लाभ आम आदमी तक पहुंचना चाहिए और इसलिए न्यायालय ने कहा कि राज्य को उद्देश्य और लक्ष्य के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है।

कोर्ट ने आगे कहा कि समय की आवश्यकता है कि निजी क्षेत्र में अस्पतालों और नर्सिंग होम को एक-दूसरे का सहयोग और अच्छा समन्वय स्थापित होना चाहिए और COVID-19 रोगियों के उपचार के लिए समर्थन प्राप्त करना चाहिए ताकि लोगों के जीवन को बचाया जा सके।

कोर्ट ने इसके लिए राज्य सरकार को महामारी रोग अधिनियम, 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 को लागू करने की सलाह दी।

कोर्ट ने कहा कि,

"पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा के लिए नागरिक का अधिकार मानव जीवन की गरिमा और पवित्रता से है जो उन सभी से संबंधित है। स्वास्थ्य एक मौलिक अधिकार होने के अलावा एक बुनियादी मानव अधिकार है, जिसे कोई भी लोकप्रिय सरकार नकार नहीं सकती है। स्वास्थ्य का सामाजिक न्याय और समानता का आधार है और यह सभी के लिए सुलभ होना चाहिए। "

कोर्ट ने आगे कहा कि,

"इसमें रोकथाम, निदान, उपचार और रोगों के प्रबंधन, स्वास्थ्य विकारों के प्रबंधन, और बीमारी के साथ-साथ अन्य स्वास्थ्य प्रभाव स्थितियों के प्रबंधन सहित सभी प्रकार की स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त करने की क्षमता शामिल है। ऐसी स्वास्थ्य देखभाल न केवल सुलभ होनी चाहिए, बल्कि सभी नागरिकों के लिए सुविधाजनक रूप से सस्ती भी होनी चाहिए। अपने सभी नागरिकों के जीवन के अधिकार को सुरक्षित रखना राज्य का मुख्य दायित्व है।"

बेंच ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पिछले सप्ताह से राज्य के समाचार पत्रों में उन घटनाओं की रिपोर्टों को देखा जा रहा है जिनमें COVID-19 रोगियों को कथित रूप से भर्ती नहीं किया जा रहा है या निजी अस्पतालों द्वारा कथित रूप से शोषण किया जा रहा है।

बेंच ने इस प्रकार ने कहा कि राज्य अपने अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के बारे में जानकारी के बावजूद वर्तमान जैसी असाधारण स्थिति में केवल एक मूक दर्शक नहीं बन सकता है।

कोर्ट ने अंत में राज्य को उनके कर्तव्यों को याद दिलाकर एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाने और लोगों का सिस्टम के प्रति विश्वास जीतने और लोगों के आत्मविश्वास को पुनर्जीवित करने के लिए निम्नलिखित निर्देश जारी किए;

1. राज्य सरकार सभी सरकारी अस्पतालों, शहर के अस्पतालों, जिला अस्पतालों के साथ-साथ निजी अस्पतालों / नर्सिंग होमों को भी ऑक्सीजन और रेमडेसिवियर की निरंतर और नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करेगी। इसके साथ ही निजी अस्पताल और नर्सिंग ऑक्सीजन की आवश्यकता के साथ-साथ रेमडेसिविर दला जरूरत के अनुसार मरीजों को दे सकता हैं।

2. अगर राज्य सरकार ने अब तक ऐसा नहीं किया है तो राज्य सरकार इस न्यायालय द्वारा प्रस्तुत विवरण के अनुसार 262 कोविड केयर सेंटर (CCC), 62 समर्पित कोविड स्वास्थ्य केंद्र (DCHC) और 16 समर्पित कोविड अस्पताल (DCH) को पुन: सक्रिय करने पर विचार करें।

3. राज्य सरकार सभी जिला अस्पतालों और शहर के अस्पतालों को मजबूत बनाने / विस्तार करने पर विचार करेगी, जो आम तौर पर मध्यम वर्ग / निम्न मध्यम वर्ग और गरीब / गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इसके साथ यह अस्पताल आवश्यक उपकरण, ऑक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन मरीजों को दे सकता है।

4. यदि राज्य सरकार ने पहले शुल्क की अधिसूचित नहीं जारी की है तो राज्य सरकार को तुरंत निजी अस्पतालों / नर्सिंग होम और निजी पैथोलॉजिकल लैब्स / डायग्नोस्टिक सेंटर द्वारा इलाज / टेस्ट के लिए के लिए शुल्क की अधिसूचना जारी करनी चाहिए।

5. राज्य सरकार सभी सरकारी अस्पतालों और निजी अस्पतालों / नर्सिंग होम में अपने सार्थक पोर्टल (https://sarthak.nhmmp.gov.in) पर सामान्य बेड, आईसीयू बेड और वेंटीलेटर की उपलब्धता के संबंध में डेटा प्रदर्शित करना चाहिए।

6. राज्य सरकार को सभी निजी अस्पतालों / नर्सिंग होम, केमिस्ट / मेडिकल शॉप्स को रेमडेसिविर इंजेक्शन और अलग-अलग जेनेरिक और ब्रांडेड इंजेक्शनों का रेट डिसप्ले करना चाहिए और यह ध्यान देना आवश्यक है कि इन सभी दवाओं की कीमत आदेश से अधिक न हो।

7. राज्य सरकार को अपने कोविड कमान और नियंत्रण केंद्रों के टोल-फ्री नंबर 1075 (संबंधित जिलों के एसटीडी कोड नंबर के साथ) का व्यापक प्रचार करना चाहिए ताकि कोविड रोगियों और उनके परिवार के सदस्यों किसी भी सरकारी या निजी अस्पताल के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकें।

8. RT-PCR और रैपिड एंटीजन टेस्ट सरकारी प्रयोगशालाओं के साथ-साथ विधिवत रूप से अनुमोदित निजी पैथोलॉजिकल लैब्स / डायग्नोस्टिक सेंटर द्वारा आयोजित किए जाएंगे।

9. राज्य को प्रति दिन कोरोना टेस्ट को बढ़ाने पर विचार करना चाहिए ताकि कोरोनावायरस के प्रसार को रोका जा सके।

10. सैंपल इकट्ठा करने के समय से 36 घंटे के भीतर संबंधित व्यक्ति को टेस्ट रिपोर्ट प्रदान की जानी चाहिए।

कोर्ट ने अंत में कहा कि यह एक राष्ट्रीय आपदा और देश व्यापी समस्या है। आगे कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वह पहले स्टील प्लांट्स और अन्य उद्योगों से लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन के उपलब्ध स्टॉक को हटाकर देश के विभिन्न हिस्सों में ऑक्सीजन की व्यवस्था करने के लिए कदम उठाए और दूसरी बात, अगर यह भी पर्याप्त नहीं है तो ऑक्सीजन का आयात करके पूरा किया जाए।

कोर्ट ने आगे कहा कि रेमडेसिविर इंजेक्शन का काला बाजारी की जा रही है और कुछ गैर कानूनी रूप से बेचते हुए पकड़े भी गए हैं।

कोर्ट ने कहा कि,

"केंद्र सरकार को रेमडेसिवियर के उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कदम बढ़ाने पर विचार करना चाहिए और जब तक ऐसा नहीं किया जाता है, तब तक आयात के माध्यम से रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध कराने पर विचार करना चाहिए।"

कोर्ट ने अंत में याचिकाओं का निपटारा करते हुए निर्देश दिया कि स्वत: संज्ञान रिट याचिका नंबर 814/2020 में सुनवाई की अगली तारीख तक या उससे पहले राज्य द्वारा निर्देशों के आधार पर एक कार्रवाई रिपोर्ट / प्रगति रिपोर्ट दाखिल की जाए, जिसे 10 मई 2021 को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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