देरी के लिए माफी मांगने के आधार के पूरक के लिए आवेदन में अदालतों को पांडित्यपूर्ण दृष्टिकोण से बचना चाहिए, जब तक कि पक्षकारों के अधिकारों का निर्धारण नहीं हो जाता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2023-09-05 09:18 GMT

जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि पांडित्यपूर्ण दृष्टिकोण (Pedantic Approach) की वजह से देरी की माफी की मांग करने वाले आवेदनों में अतिरिक्त आधारों को शामिल करने में बाधा नहीं आनी चाहिए।

जस्टिस पुनीत गुप्ता ने इस बात पर जोर दिया कि जब पक्ष उन आवेदनों में पूरक दलील पेश करना चाहते हैं, जो दलील अंततः चल रहे मुकदमे में पक्षकारों के अधिकारों का निर्धारण नहीं करेगी तो अदालत को अत्यधिक सख्त या पांडित्यपूर्ण जांच से बचना चाहिए।

अदालत ने कहा,

“जहां तक पक्ष आवेदन में शामिल करने का इरादा रखता है, मूल दलीलों को पूरक करने के मामले में अदालत द्वारा पांडित्यपूर्ण दृष्टिकोण लागू करने की आवश्यकता नहीं है, जब कि वह अंततः मुकदमे के परिणाम पर पक्षकार के आवेदन पत्र के अधिकारों का निर्धारण नहीं करता।"

यह मामला सिविल मुकदमे से संबंधित है, जहां निचली अदालत ने अंतरिम राहत के लिए आवेदन की अनुमति दी थी। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने देरी की माफी के लिए आवेदन के साथ प्रधान जिला न्यायाधीश, श्रीनगर की अदालत के समक्ष नागरिक प्रथम विविध अपील दायर की। उन्होंने माफ़ी आवेदन में अतिरिक्त आधार शामिल करने की अनुमति भी मांगी।

मूल मुकदमे में वादी होने वाले प्रतिवादी ने देरी के लिए माफी आवेदन का विरोध किया। अपीलीय अदालत ने अपने आक्षेपित आदेश में देरी की माफ़ी के लिए आवेदन खारिज कर दिया। इसके लिए अदालत ने मुख्य रूप से यह हवाला दिया कि प्रारंभिक आदेश की प्रमाणित प्रति परिसीमा अधिनियम द्वारा निर्दिष्ट 30-दिन की सीमा अवधि के बाद दायर की गई, जो अक्टूबर 2019 से प्रभावी है।

अपीलीय अदालत की बर्खास्तगी से व्यथित याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ताओं ने प्राथमिक तर्क दिया कि उन्होंने गलती से मान लिया था कि वर्तमान कानून के अनुसार अपील दायर करने की सीमा अवधि 90 दिन है, न कि 30 दिन। याचिकाकर्ताओं के इस तर्क से निपटते हुए अदालत ने कहा कि इस तर्क को यह निर्धारित करने के लिए साक्ष्य द्वारा समर्थित होने की आवश्यकता है कि क्या त्रुटि वास्तव में नेक नीयत से की गई थी।

अदालत ने कहा,

"चूंकि याचिकाकर्ताओं का दावा है कि पहली विविध अपील दायर करने की समय अवधि के कारण उन्हें गुमराह किया गया, इसे केवल रिकॉर्ड पर आने वाले साक्ष्य के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं को यह बताना होगा कि अवधि के आवेदन में त्रुटि हुई है, परिसीमा की सीमा प्रामाणिक है। याचिकाकर्ताओं को आवेदन में अपना तर्क साबित करने का अवसर दिए जाने के बाद ही देरी की माफी के लिए दायर आवेदन को उसके तार्किक अंत तक लाया जा सकता है।''

प्रतिवादी के तर्क पर टिप्पणी करते हुए कि आवेदन में उल्लिखित आधारों को पूरक करने के लिए दायर आवेदन को मूल रूप से देरी की माफी के लिए दायर किए गए आवेदन पर विचार नहीं किया जा सकता है। इसलिए आवेदन के निर्धारण के प्रयोजनों के लिए इस पर गौर नहीं किया जा सकता है। देरी माफ़ी के लिए दायर याचिका पर अदालत ने कहा कि देरी माफ़ी के आधार को पूरक करने के आवेदन को बाद में विचार के रूप में खारिज नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि यह मुकदमे में पक्षकार के अधिकारों के अंतिम निर्धारण को प्रभावित नहीं करता है।

अदालत ने परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के स्पष्टीकरण को आगे बढ़ाया, जो निर्धारित अवधि के विस्तार की अनुमति देता है। यह अनुमति तब दी जाती है जब आवेदक देरी के लिए "पर्याप्त कारण" प्रदर्शित कर सकता है।

उक्त टिप्पणियों के आधार पर पीठ ने याचिका स्वीकार कर ली और प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, श्रीनगर की अदालत द्वारा पारित दिनांक 22.05.2023 का आदेश रद्द कर दिया। अपीलीय अदालत को याचिकाकर्ताओं को आवेदन में उठाए गए अपने तर्क को साबित करने का अवसर देने का निर्देश दिया गया। साथ ही कहा कि दोनों पक्षकारों द्वारा दिए गए सबूतों और तर्कों पर विचार करने के बाद आवेदन पर निर्णय लिया जाएगा।

केस टाइटल: शाह मसूद अहमद और अन्य बनाम शाह शब्बीर अहमद

पक्षकारों के लिए वकील: एम. ए. मखदूमी, वकील और मनन, वकील और प्रतिवादी के वकील: फरहत ज़िया, वकील

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