समाज लोक सेवकों के भ्रष्ट आचरण का शिकार हुआ; भ्रष्टाचार सभ्य समाज का सबसे बड़ा दुश्मन: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2021-07-12 05:52 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि समाज बड़े पैमाने पर लोक सेवकों के भ्रष्ट आचरण का शिकार हो गया है और इस बात पर जोर दिया कि भ्रष्टाचार हर स्वतंत्र सभ्य समाज का सबसे बड़ा दुश्मन है।

न्यायमूर्ति गीता गोपी की खंडपीठ ने आगे टिप्पणी की कि नागरिक द्वारा एक लोक सेवक के खिलाफ शिकायत दर्ज करने और लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने का अधिकार शासन के नियम के तहत आता है।

कोर्ट ने कहा कि,

"किसी भी स्तर पर किसी भी व्यक्ति द्वारा किया गया भ्रष्टाचार निंदनीय है जिसे न्यायिक अधिकारी द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।"

संक्षेप में मामला

न्यायालय भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें एक जांच अधिकारी और डीएसपी स्कॉड के एक अधिकारी (उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के संबंध में) द्वारा याचिकाकर्ता को दी गई धमकियों के संबंध में उचित कार्रवाई की मांग की गई थी,

याचिकाकर्ता ने आवेदक से अवैध रिश्वत के मद्देनज़र पैसे की मांग करने पर उनके खिलाफ व्यक्तिगत सुरक्षा और जांच की मांग की थी। सारा आरोप रिश्वत के पैसे देने को लेकर है।

प्रतिवादियों ने जमानत पर रिहा करने के लिए आवेदक से 50000 रुपये की मांग की थी, हालांकि बातचीत के बाद 30000 रुपये की राशि को अंतिम रूप दिया गया था जिसे आवेदक को जमानत पर रिहा होने के बाद भुगतान किया जाना था।

यह प्रस्तुत किया गया कि आवेदक को पुलिस द्वारा 17 फरवरी, 2019 को जमानत दी गई थी। यह आरोप लगाया गया कि चूंकि 30,000 रुपये की मांग पूरी नहीं की गई तो प्रतिवादियों ने 30,000 रुपये का भुगतान न करना पर उसके वाहन - एक्सेंट कार को जब्त करने की धमकी दी थी।

इसलिए आवेदक ने तत्काल याचिका दायर कर प्रतिवादियों के खिलाफ सुरक्षा और आवश्यक कार्रवाई और जांच की मांग की।

कोर्ट का आदेश

कोर्ट ने शुरू में इस बात पर प्रकाश डाला कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 का उद्देश्य लोक सेवकों के बीच व्याप्त रिश्वत और भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए प्रभावी प्रावधान करना है। यह लोक सेवकों की अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए परिभाषित सामाजिक कानून है और इसे अपने उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए उदारतापूर्वक निर्मित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 ने लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार की शिकायत को उठाने के लिए तंत्र विकसित किया है।

कोर्ट ने कहा कि,

"राज्य में अधिनियम के तहत भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो स्थापित किया गया है, जहां पीड़ित आवेदन कर सकता है।"

कोर्ट ने कहा कि,

"मौजूदा मामले में आवेदक अभी भी एक लोक सेवक द्वारा रिश्वत की मांग के कथित कार्य से व्यथित है, उसके पास शिकायत दर्ज करके भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो या सक्षम विशेष न्यायालय के समक्ष जाने का सहारा उपलब्ध है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और कानून के तहत उसकी शिकायत का निवारण किया जाए।"

कोर्ट ने कहा कि आवेदक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के प्रावधानों के अनुसार शिकायत निवारण के लिए जा सकता है और इसलिए न्यायालय ने उसे उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष एक उपयुक्त आवेदन दाखिल करने का निर्देश दिया।

केस का शीर्षक - रजतकुमार कांतिभाई पटेल बनाम गुजरात राज्य

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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