प्रोफेशनल कार्य के लिए वकीलों को स्थानीय ट्रेनों में यात्रा करने की अनुमति देने पर विचार किया जाए : बाॅम्बे हाईकोर्ट ने राज्य से कहा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार से कहा है कि वह वकीलों को उन प्रोफेशनल कार्य के लिए स्थानीय ट्रेनों में यात्रा करने की अनुमति देने पर विचार करे, जो कोर्ट की कार्यवाही से संबंधित नहीं हैं।
न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा है कि वह पंजीकृत अधिवक्ता क्लर्कों के मामले पर भी विचार करे, जिन्हें कोर्ट फाइलिंग के अलावा अन्य कामों के लिए यात्रा करनी पड़ती है। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह वकीलों के मामले में सोमवार को ही निर्णय लेने की कोशिश करें।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने आदेश देते हुए कहा किः
'' वकीलों को काफी सारे ऐसे प्रोफेशनल काम होते हैं,जो कोर्ट की कार्यवाही से संबंधित नहीं होते हैं। वहीं पंजीकृत क्लर्कों को भी मामलों की फिजिकल फाइलिंग के अलावा अन्य कार्य करने होते हैं। इसलिए यह अदालत सरकार से अनुरोध करती है कि वह कल तक यानी मंगलवार तक इस मामले में निर्णय लेने को तरजीह दें और उस निर्णय के संबंध में याचिककर्ताओं के वकीलों को सूचित किया जाए।''
न्यायालय ने राज्य से यह भी कहा है कि वह दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों और इसी तरह के जरूरतमंद व्यक्तियों को भी नाॅन-पीक टाइम के दौरान स्थानीय ट्रेन सेवाओं का लाभ देने पर विचार करें।
पीठ ने आदेश देते हुए कहा किः
''इस तथ्य को भी ध्यान में रखा जा रहा है कि सरकार ''मिशन बिगिन अगेन'' कार्यक्रम के तहत विभिन्न क्षेत्रों की गतिविधियाँ खोल रही है। लेकिन सेवा प्रदाताओं की श्रेणी में ऐसी कोई वृद्धि नहीं हुई है ताकि आम जनता बढ़ी हुई ट्रेन सेवाओं का लाभ उठा सके,सिवाय महिला यात्रियों के। इसलिए सरकार दैनिक यात्रियों, विक्रेताओं, दुकान के कर्मचारियों, होटल और रेस्तरां के कर्मचारियों, सिनेमा हॉल, मल्टीप्लेक्स और अन्य जरूरतमंद लोगों को भी नाॅन-पीक टाइम के दौरान स्थानीय ट्रेन सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति देने की वांछनीयता पर विचार कर सकती है। यह न्यायालय आशा व विश्वास व्यक्त करता है कि राज्य द्वारा उपरोक्त के आलोक में लिया गया निर्णय उनकी चिंताओं को दूर करने की उचित दिशा में एक उचित कदम होगा।''
चीफ जस्टिस दत्ता ने कहा है कि वकील केवल प्रोफेशनल उद्देश्यों के लिए यात्रा करेंगे, यहां तक कि वे जो अदालती कार्यवाही से संबंधित नहीं हैं, और आशा व्यक्त की है कि इसका कोई दुरुपयोग नहीं किया जाएगा क्योंकि यह एक महान पेशा है। बेंच ने एडवोकेट जनरल से कहा कि वह वकीलों के मामले में आज ही निर्देश लेकर कोर्ट को सूचित करें। नाॅन-पीक टाइम के दौरान कानूनी कार्यालयों में काम करने वाले क्लर्कों को अनुमति देने पर विचार करने के लिए भी बेंच (कानूनी क्षेत्र के वकील द्वारा) से अनुरोध किया गया था।
बेंच ने राज्य सरकार को 29 अक्टूबर तक समय दिया है ताकि वह COVID19 सोशल डिस्टेंसिंग प्रोटोकॉल को बनाए रखते हुए विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को लोकल ट्रेनों में यात्रा करने की अनुमति देने पर विचार कर सकें।
COVID19 के प्रकोप के मद्देनजर वर्तमान में केवल आवश्यक सेवाओं के कर्मचारियों और सरकारी कर्मचारियों के लिए ही स्थानीय ट्रेनों का संचालन किया जा रहा है।
पिछले महीने, हाईकोर्ट ने राज्य से कहा था कि उन वकीलों को ''प्रायोगिक आधार''पर लोकल ट्रेनों से यात्रा करने की अनुमति दी जाए,जिनको बॉम्बे हाईकोर्ट व एमएमआर क्षेत्र में स्थित अधीनस्थ अदालतों में फिजिकल हियरिंग के लिए जाना पड़ता है। हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि यह व्यवस्था अगले आदेश तक जारी रखी जाए।
महाधिवक्ता द्वारा तैयार किए गए एक नोट में, यह प्रस्तुत किया गया था कि लोकल ट्रेनों में अपनी क्षमता की तुलना में पीक आवर्स के दौरान कम यात्रियों का आवागमन होता है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग बिना पहचान और टिकट के यात्रा करते हैं, जिससे भारी नुकसान हो रहा है। उन्होंने संकेत दिया कि संबंधित हितधारकों के साथ चर्चा के बाद, कार्यालयों के समय पर विचार किया जाएगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ट्रेनों अपनी पूरी क्षमता के साथ चल सकें और सोशल डिस्टेसिंग के मानदंडों का भी पालन हो सकें,वहीं राज्य व रेलवे को कोई राजस्व का नुकसान न हो पाए। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य के मुख्य सचिव ने निजी क्षेत्र के लिए स्थानीय ट्रेन सेवाओं की सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए एक समिति का गठन किया है। इसके अलावा, सभी महिलाओं, भले ही वह आवश्यक सेवाओं में कार्यरत हो या अन्य सेवाओं में,उनको स्थानीय लोकल ट्रेनों में सुबह 11 बजे से और दोपहर 3 बजे और फिर शाम को सात बजे से आखिरी स्थानीय ट्रेन की सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति दी जाएगी। वर्दी में आने वाले निजी और महिला विशेष ट्रेन के लिए भी अनुरोध किया गया है।
एजी ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजस्व संसाधनों का अपव्यय न हो, सभी आवश्यक सेवाओं के कर्मचारियों को क्यूआर कोड जारी करने का काम समयबद्ध तरीके से किया जाएगा। अपाहिज और कैंसर रोगियों को विशेष डिब्बों में यात्रा करने की अनुमति देने के लिए पहले ही कदम उठाए जा चुके हैं। इसके अलावा, अब लगभग सभी स्टेशनों पर ट्रेनों को रोकना शुरू कर दिया गया है। मोनो रेल को दो दिन पहले ही शुरू कर दिया गया है, और कल से ही मेट्रो रेल सेवा भी शुरू कर दी गई है।
इस बात पर कोई प्रतिबंध नहीं है कि कौन ट्रेन में चढ़ सकता है, बस लोगों की कुल संख्या पर प्रतिबंध है। उन्होंने आगे कहा कि न्यायालय के आदेश के केवल 3 पहलुओं का अभी तक अनुपालन नहीं किया गया है। संबंधित मंत्रियों को शामिल करके ठोस प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं, दूसरा,विभिन्न हितधारकों के साथ बैठक होनी बाकी है, और अंत में जहां तकवकीलों के लिए परिवहन सुविधाएं खोलने का संबंध है तो उसके लिए बार काउंसिल व उच्च अधिकार प्राप्त समिति के साथ एक बैठक निर्धारित की जानी है।
उन्होंने यह भी कहा कि वे वर्तमान में वकीलों को पेशेवर सेवाओं के लिए स्थानीय ट्रेनों का उपयोग करने की अनुमति देने के लिए इच्छुक हैं। जबकि कलर कोडिंग और ऑफिस के घंटों के संबंध में एक बैठक हुई है और उसके कार्यान्वयन पर विचार हो रहा है।
इस पर, न्यायमूर्ति दत्ता ने पूछा कि महामारी से पहले कार्यालय का समय क्या था और कहा कि समय में बदलाव करने से पहले परामर्श किया जाना चाहिए। जज ने दैनिक मजदूरों और दुकान के कर्मचारियों के बारे में भी पूछा,जिन्हें वर्तमान में लोकल ट्रेनों की सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति नहीं है। पीठ ने कहा कि वह सबसे अधिक जरूरतमंद है और सरकार को इस श्रेणी पर भी विचार करना चाहिए। महाधिवक्ता ने दो श्रेणियों का सुझाव दिया जो नाॅन-पीक टाइम के दौरान यात्रा कर सकती हैं - सैलून और जिम- क्योंकि वे अपना काम जल्दी शुरू कर देते हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न संगठनों के साथ बैठकें आयोजित करने की योजना बन गई है ताकि उन सभी सेक्टरों को भी खोलने का अनुरोध किया जा सकें।
न्यायमूर्ति कुलकर्णी ने यह कहते हुए हस्तक्षेप किया कि जिन क्षेत्रों को खोला गया है और जिनमें लोग वास्तविक रूप से अपने कर्तव्यों के प्रति झुकाव रखते हैं, उन्हें स्थानीय ट्रेनों में यात्री करने की अनुमति देना उनके बुनियादी अस्तित्व के लिए जरूरी है। न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि नाॅन-पीक टाइम में ट्रेनों का खाली रहना कोई नई बात नहीं है। कार्यालयों के समय में बदलाव करके अधिक से अधिक लोगों को यात्रा करने की अनुमति देकर राजस्व हानि को कम किया जाना चाहिए।
बेंच ने इस बात पर सहमति जताई कि यह एक चुनौतीपूर्ण अभ्यास होने जा रहा है,जिसके लिए एक बहुत प्रभावी मशीनरी की जरूरत है- जैसे कि ग्रीन चैनल, बहार जाने व अंदर आने के रास्तों को अलग करना आदि।
महाधिवक्ता ने बताया कि सबसे ज्यादा कठिनाई प्रवेश और निकास बिंदुओं की निगरानी में है और पूरे कार्य के लिए 2 सप्ताह के समय की आवश्यकता है ताकि कार्यालयों के समय में बदलाव व क्यूआर कोड जारी करने का काम किया जा सके।
उन्होंने बताया कि मांग के अनुसार ट्रेनों को बढ़ाया जा रहा है, लेकिन पीक आवर्स के दौरान सोशल डिस्टर्बिंग नॉर्म्स के रखरखाव पर विचार करने और ऐसे लोगों की पहचान करने के लिए समय की आवश्यकता है, जिन्हें एक विशिष्ट समय पर यात्रा करने की अनुमति दी जाए। बेंच ने वकीलों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों पर अधिक स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए इस मामले की सुनवाई अब 29 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध की है।
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