'पुलिस अधिकारियों के आचरण से संदेह हो रहा', बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रेड के सदस्य को COVID-19 के कारण नहीं बल्कि पुलिस के साथ दुश्मनी के कारण अवैध क्वारंटाइन करने की याचिका पर कहा

Update: 2020-05-11 04:00 GMT

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू) के अध्यक्ष को जानबूझकर और गलत तरीके से एक क्वारंटाइन सेंटर में भेज दिया गया है क्योंकि उसकी पुलिस के एक वरिष्ठ निरीक्षक के साथ दुश्मनी थी, न कि इसलिए कि वह COVID-19 पाॅजिटिव था। जबकि पुलिस ने यही दावा किया है कि उसे कोरोना पाॅजिटिव होने के कारण क्वारंटाइन किया गया है।

जस्टिस रेवती मोहिते डेरे इस मामले में के.नारायणन की तरफ से महेंद्र सिंह द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पिछली सुनवाई पर इस मामले में कोर्ट ने राज्य से कहा था कि वह अपना जवाब दायर करें।

कोर्ट ने कहा कि-

''ऐसा प्रतीत होता है कि लाॅकडाउन के दौरान सीआईटीयू के अध्यक्ष के.नारायणन प्रवासी श्रमिकों और गरीबों को भोजन और अन्य आवश्यक सामान की आपूर्ति करने के काम में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। यह भी पता चला है कि सीआईटीयू ने एक राष्ट्रीय विरोध का आह्वान किया था। जो मूलरूप से भोजन, स्वास्थ्य, आदि सुविधाएं न मिलने के कारण प्रवासी श्रमिकों और गरीबों की हो रही दुर्दशा के खिलाफ था।''

याचिकाकर्ता के अनुसार, के.नारायणन और सीपीआई (एम), पश्चिमी उपनगरीय तालुका समिति के सदस्य महबूब पटेल और सीपीआई (एम), अंधेरी के सदस्य बदरुद्दीन शेख 21 अप्रैल 2020 को गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और अन्य आवश्यक सामान वितरित करने गए थे। इस काम के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग सहित अन्य नियमों का पालन किया जा रहा था। के.नारायणन और उनके सहयोगियों के पास वह झंडे/तख्तियां भी थी, जो विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वालों को वितरित की जानी थी।

हालांकि, नारायणन के पुलिस की ज्यादतियों से जुड़े कई मुद्दों के कारण डीएन नगर पुलिस स्टेशन के सीनियर पीआई परमेश्वर गनेम के साथ अच्छे संबंध नहीं थे। इसके अलावा यह भी आरोप लगाया गया कि जब वह सामान बांटना शुरू कर रहे थे तभी अभिषेक त्रिमुखे, डीसीपी, जोन- IX ,परमेश्वर गनेम और कुछ कांस्टेबल वहां आए और नारायणन व उनके सहयोगियों को थाने चलने के लिए कहा।

कुछ बातचीत के बाद, बदरुद्दीन और महबूब को गरीबों और प्रवासियों को भोजन और आवश्यक सामान वितरित करने की अनुमति दे दी गई थी। नारायणन को जोगेश्वरी (पश्चिम) में एक निजी प्रयोगशाला में ले जाया गया और उनको कोरोना का टेस्ट कराने के लिए कहा गया जबकि उसमें ऐसे कोई लक्षण नहीं थे।

इसके बाद नारायणन को निगम के एक क्वारंटाइन सेंटर , वेस्ट ब्लू होटल में भेज दिया गया। 21 अप्रैल 2020 को नारायणन का कोरोना का टेस्ट किया गया और उन्हें बताया कि एक दिन बाद इसकी रिपोर्ट आ जाएगी। हालांकि, 22 अप्रैल को नारायणन ने कई बार अनुरोध किया पंरतु उसे उसके टेस्ट की रिपोर्ट की काॅपी नहीं दी गई।

नारायणन के टेस्ट की रिपोर्ट 29 अप्रैल 2020 को लैब से सीधे उनके सहयोगियों ने प्राप्त की क्योंकि नारायणन को उसके टेस्ट का परिणाम नहीं बताया गया था। इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि के.नारायणन के कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आई थी।

कोर्ट ने कहा कि-

''15 अप्रैल 2020 को निगम की तरफ से जारी सर्कुलर या परिपत्र के अनुसार ( COVID-19 टेस्ट के लिए संशोधित दिशानिर्देश) अगर किसी मरीज का टेस्ट नेगेटिव आता है तो उसे ज्यादा से ज्यादा 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन में रखा जाएगा।''

एमसीजीएम की तरफ से कार्यकारी अभियंता उमेश बापट ने एक हलफनामा दायर किया था। उक्त हलफनामे में यह कहा गया है कि नारायणन को डीएन नगर पुलिस स्टेशन की तरफ से टेलिफोन पर दिए गए निर्देश के अनुसार वेस्ट ब्लू होटल, मारुति चेम्बर्स, अंधेरी (पश्चिम) में बने क्वारंटाइन सेंटर में भर्ती किया गया था। वहीं केंद्र व राज्य सरकार की तरफ से जारी किए गए निर्देशों और गाइड-लाइन के अनुसार टेस्ट किए जाते हैं।

यह भी उल्लेख किया गया है कि नारायणन पर किए गए कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आई थी। हालांकि, केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए विभिन्न परिपत्रों के अनुसार, नारायणन को क्वारंटाइन किया गया था। ।

हलफनामे में कहा गया है कि के. नारायणन को ''डी एन नगर पुलिस स्टेशन के निर्देशानुसार निर्धारित समय में क्वारंटाइन सेंटर से छुट्टी दे दी जाएगी।

न्यायमूर्ति डेरे ने कहा कि नारायणन को जब क्वारंटाइन सेंटर भेजा गया था तो उसे उसका मोबाइल साथ ले जाने की अनुमति नहीं दी गई थी-

''यह भी पता चला है कि जब के. नारायणन को क्वारंटाइन सेंटर भेजा गया था,उस समय पुलिस ने उसको उसका मोबाइल साथ ले जाने की अनुमति नहीं दी थी। ए.पी.पी और निगम के वकील यह हाइलाइट करने या कोई ऐसा सर्कुलर दिखाने में असमर्थ रहे हैं,जिसमें यह कहा गया हो कि क्वारंटाइन की अवधि के दौरान एक व्यक्ति अपना मोबाइल साथ नहीं रख सकता है।

हालांकि ए.पी.पी ने कहा है कि के. नारायणन ने स्वयं अपना मोबाइल फोन पुलिस को सौंप दिया था। परंतु इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि के.नारायणन ने स्वयं अपना मोबाइल फोन को पुलिस को सौंपा होगा। मामले की पिछली सुनवाई पर याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने के बाद ही क्वारंटाइन सेंटर में के.नारायणन को उनका मोबाइल फोन सौंपा गया था।''

कोर्ट ने निगम पर दबाव ड़ालते हुए पूछा कि जब नारायणन के टेस्ट की रिपोर्ट नेगेटिव आ चुकी है और वह क्वारंटाइन में रहने की अनिवार्य 14 दिन की अवधि भी पूरी कर चुका है। उसके बावजूद भी उसे क्वारंटाइन सेंटर में क्यों रखा गया है। कोर्ट ने पूछा कि वह क्यों डीएन नगर पुलिस स्टेशन से मिलने वाले निर्देशों का इंतजार कर रहे है? परंतु उनके ''पास इसका कोई जवाब नहीं था।''

नारायणन के खिलाफ आईपीसी की धारा 188, 269, 270 रिड विद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम धारा 51 (बी) और COVID-19 Regulations, 2020 की धारा 11 के तहत डीएन नगर पुलिस स्टेशन में एक मुकदमा भी दर्ज किया गया है।

ए.पी.पी एस आर शिंदे ने बताया कि जिन धाराओं के तहत नारायणन के खिलाफ केस दर्ज किया गया है,वह सभी जमानतीय हैं।

याचिकाकर्ता की वकील क्रांति एल.सी ने दलील दी कि नारायणन को COVID-19 का रोगी होने के संदेह में नहीं बल्कि जानबूझकर और गलत तरीके से एक क्वारंटाइन सेंटर भेज दिया था। इसके पीछे कई कारण है,जिनमें एक कारण डी एन नगर पुलिस स्टेशन के संबंधित सीनियर पीआई के साथ दुश्मनी भी है।

कोर्ट ने कहा कि-

''प्रथम दृष्टया मामले के इन अजीबोगरीब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उक्त दलीलों में कुछ दम नजर आ रहा है। नारायणन के मोबाइल को रोकना, उनकी COVID-19 रिपोर्ट का खुलासा न करना, अधिकारियों का आचरण और वह परिस्थितियां जिनमें उसे क्वारंटाइन सेंटर भेजा गया था, सभी मिलकर कुछ संदेह पैदा कर रही हैं और कुछ सवाल भी उठा रही हैं। पुलिस उन लोगों को रखने के लिए क्वारंटाइन सेंटर का उपयोग नहीं कर सकती है,जो उनकी नजर में उपद्रवी जैसे हैं। संगरोध सुविधाओं या क्वारंटाइन सेंटरों का उपयोग निवारक निरोध के रूप में या एक दंडात्मक उपाय के रूप में नहीं किया जा सकता है।'' 

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