जमानत देते समय आरोपी पर विवादित पैसा जमा करने की शर्त नहीं लगाई जा सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-10-13 03:47 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी के एक मामले में एक आरोपी को जमानत देते हुए कहा है कि जमानत देते समय किसी आरोपी पर विवादित पैसा जमा करने की शर्त नहीं लगाई जा सकती।

यह देखते हुए कि जमानत देते समय जो शर्तें लगाई जा सकती हैं, उनका उल्लेख सीआरपीसी की धारा 437 (3) के तहत किया गया है, जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने कहा कि प्रावधान कहीं नहीं बताता है कि नियमित जमानत देते समय विवादित धन जमा करने की शर्त भी लगाई जा सकती है।

अदालत ने 27 सितंबर को पारित एक आदेश में कहा,

"एक आरोपी किसी मुआवजे के जरिए विवाद को सुलझा रहा है या नहीं, इसे किसी आरोपी को जमानत स्वीकार करने या अस्वीकार करने का वैध कारण नहीं माना जा सकता है।"

अदालत ने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 420, 406 और 34 के तहत दर्ज मामले में एक व्यक्ति को नियमित जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। 23 मई को निचली अदालत ने उसे नियमित जमानत देने से इनकार कर दिया था।

शिकायत के अनुसार, याचिकाकर्ता आरोपी को एक ट्रैवल एजेंसी ने अपने ग्राहकों के लिए हवाई टिकट तैयार कराने के लिए नियुक्त किया था। कथित तौर पर उसे 12 लाख रुपये दिए गए। शिकायत के अनुसार, याचिकाकर्ता द्वारा एक सह-आरोपी के ईमेल के माध्यम से भेजे गए कुछ हवाई टिकट फर्जी पाए गए।

दिसंबर 2018 में अग्रिम जमानत मिलने के बाद, याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को 1 लाख रुपये का भुगतान किया था और बाद में 1.5 लाख रुपये का भुगतान भी किया गया था। शेष राशि का भुगतान न करने के कारण मई 2015 में अग्रिम जमानत रद्द कर दी गई थी।

याचिकाकर्ता को तब फरवरी 2020 में गिरफ्तार किया गया था और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

हालांकि, उसे उच्चाधिकार प्राप्त समिति के निर्देशों के अनुपालन में अप्रैल 2020 में अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था, जिसका गठन उच्चतम न्यायालय के आदेश पर COVID-19 संक्रमण के मद्देनजर जेलों में भीड़भाड़ कम करने के लिए किया गया था।

मार्च 2021 में उन्हें इस शर्त के साथ नियमित जमानत दी गई कि वह शिकायतकर्ता के साथ मामले का निपटारा करें। हालांकि, कोई समझौता नहीं होने के कारण उनकी जमानत रद्द कर दी गई थी।

दूसरी COVID-19 लहर के दौरान, याचिकाकर्ता को उच्चाधिकार प्राप्त समिति के निर्णय के अनुसार मई 2021 में फिर से अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया। अपनी दूसरी रिहाई के दौरान, याचिकाकर्ता निचली अदालत में पेश हुआ और नियमित जमानत मांगी। हालांकि, अदालत के इस सवाल का विशिष्ट जवाब देने में विफल रहने के बाद कि क्या वह शिकायतकर्ता को मुआवजा देने के इच्छुक हैं, उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।

याचिकाकर्ता की ओर से यह प्रस्तुत किया गया था कि वह तीन अवधि में 100 दिनों से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में था, यह कहते हुए कि उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया था। यह तर्क दिया गया कि चूंकि पुलिस ने जांच के बाद आरोपपत्र दायर किया था, इसलिए उसकी और हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं थी।

दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता असहयोगी रहा है और इस बात की संभावना है कि वह फरार हो सकता है। हालांकि यह प्रस्तुत किया गया था कि जांच समाप्त हो गई थी और याचिकाकर्ता की हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं थी।

अदालत ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि जमानत देने की प्रार्थना पर आरोपों और रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री के आधार पर विचार करना होगा।

कोर्ट ने कहा,

"सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत देते समय जो शर्तें लगाई जा सकती हैं, वे सीआरपीसी की धारा 437 की उप-धारा (3) में वर्णित हैं। सीआरपीसी की धारा 437 (3) का एक अवलोकन, कहीं नहीं यह सुझाव देता है कि सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत देते समय विवादित धन जमा करने की शर्त भी लगाई जा सकती है।"

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 15,000 रुपए का निजी बॉन्ड भरने और इतनी ही राशि का एक जमानतदार पेश करने की शर्त पर जमानत देने का आदेश दिया।

केस टाइटस: गगनदीप सिंह आदि बनाम राज्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली


Tags:    

Similar News