'शिक्षा पूरी करने पर ध्यान दें': धर्म से बाहर शादी करने की इच्छुक बालिग लड़की को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की सलाह
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को नारी निकेतन में कैद एक बालिग महिला को रिहा करने का निर्देश दिया। महिला ने अपने धर्म से बाहर एक व्यक्ति से विवाह किया था, जिसके बाद परिवार के सदस्य उसके खिलाफ हो गए थे।
जस्टिस शील नागू और जस्टिस मनिंदर सिंह भट्टी की खंडपीठ ने उसे अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह देते हुए कहा कि शादी हालांकि महत्वपूर्ण है, मगर शिक्षा के खिलाफ खड़ी होने की स्थिति में स्थगित की जा सकती है।
पीठ दरअसल नारी निकेतन में गैरकानूनी रूप से से रखी गई कॉर्पस को मुक्त करने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करने के लिए दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी।
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता और कॉर्पस एक-दूसरे को वर्षों से जानते थे और उन्हें एक दूसरे के प्रति प्यार हो गया था और शादी करने के इच्छुक थे।
हालांकि, यह आरोप लगाया गया कि कॉर्पस के माता-पिता ने याचिकाकर्ता के साथ विवाह के लिए मंजूरी नहीं दी थी, क्योंकि याचिकाकर्ता अलग धर्म का था। माता-पिता की एक और चिंता यह थी कि कॉर्पस वयस्क यानी 19 साल की थी, जब उसे विवाह के बजाय अपने अकादमिक करियर को प्राथमिकता देनी चाहिए थी।
कार्यवाही के दरमियान, कॉर्पस ने स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता के साथ विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। उसने यह भी खुलासा किया कि याचिकाकर्ता ने उसे अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए भौतिक और वित्तीय सहायता का आश्वासन दिया है (वह नर्सिंग कोर्स कर रही है)। हालांकि, उसने अदालत के साथ अपनी आशंका साझा की कि याचिकाकर्ता उससे शादी करने के बाद दूसरी शादी कर सकता है। जिसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कॉर्पस की चिंता को समाप्त करने लिए एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।
अदालत के निर्देशों का पालन करते हुए, याचिकाकर्ता ने एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया था कि वह विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के तहत कॉर्पस से शादी करना चाहता है। उसने यह भी कहा कि वह अपनी क्षमता के अनुसार उसकी जरूरतों का ध्यान रखेगा और सुनिश्चित करेगा कि कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करे। उसने आगे कहा कि उसने उसे अपना धर्म बदलने के लिए कभी नहीं कहा और चूंकि वह एक वयस्क है, इसलिए उसे यह तय करना है कि वह किस धर्म का पालन करना चाहेगी।
कोर्ट ने पिता और भाई की ओर से कॉर्पस के सुरक्षा को लेकर उठाई गई आशंकाओं पर भी ध्यान दिया। उसके परिवार ने दावा किया कि उसकी रुचि अपनी पढ़ाई पूरी करने में थी ताकि वह आत्मनिर्भर हो। याचिकाकर्ता पर निर्भर न हो, जिसके पास आय का कम स्रोत है।
कोर्ट ने स्वीकार किया कि कॉर्पस 19 साल से ऊपर की है, और विवाह के संबंध में निर्णय लेने में कानूनी रूप से सक्षम है। हालांकि, यह नोट किया गया कि उसके बारे में परिवार के सदस्यों की चिंताओं को उसकी अपनी इच्छा की तुलना में कमतर नहीं किया जा सकता है।
कॉर्पस 19 वर्ष से अधिक आयु की है (जन्मतिथि 19.10.2002) और इसलिए, कानून के अनुसार का विवाह का निर्णय लेने का उसे अधिकार है। न्यायालय ने माना कि चूंकि कॉर्पस बालिग हो चुकी है, इसलिए उसे नारी निकेतन में नहीं रखा जा सकता है और इसलिए, उसे रिहा करने का आदेश दिया।
कोर्ट ने कहा, " चूंकि कॉर्पस पहले ही बालिग हो चुकी है और इसलिए उसे नारी निकेतन में रखा नहीं जा सकता है, जहां पिछले कुछ दिनों से याचिकाकर्ता, कॉर्पस और उसके माता-पिता के बीच पैदा हुए विवाद के समाधान की प्रतीक्षा में रह रही है। इसलिए यह न्यायालय बंदी प्रत्यक्षीकरण का एक रिट जारी करता है, जिसमें पाथर खेड़ा जिला बैतूल (एमपी) में नारी निकेतन को निर्देश दिया गया है कि वह कॉर्पस को तुरंत रिहा करे और उसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति दे।"
कोर्ट ने फैसले में कॉर्पस को अपनी शिक्षा पूरी करने और आत्मनिर्भर होने पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह भी दी।
कोर्ट ने कहा,
"यह कोर्ट कॉर्पस को भी जीवन की प्राथमिकताओं को समझने की सलाह देता है। जीवन में शुरुआती दौर में शिक्षाविदों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कॉर्पस को पहले अपनी शिक्षा को इस हद तक पूरा करने पर ध्यान देना चाहिए कि पति सहित किसी पर निर्भर हुए बिना उसकी आवश्यकताओं और सुख-सुविधाओं के लिए आजीविका के स्रोत सुनिश्चित रहे। विवाह एक ऐसी अवधारणा है, जो जीवन में महत्वपूर्ण है, लेकिन शिक्षा में रुकावट बनने पर इसे स्थगित किया जा सकता है। सही और गलत के बीच अंतर को समझने के लिए जीवन में पर्याप्त परिपक्वता प्राप्त करने के लिए उपरोक्त सलाह पर ध्यान देने की अपेक्षा की जाती है।"
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण के रिट के माध्यम से नारी निकेतन को निर्देश दिया कि वह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम बनाने के लिए कॉर्पस को रिहा करने।
केस शीर्षक: फैसल खान बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य