मृत व्यक्ति की मानहानि के खिलाफ शिकायत केवल 'परिवार के सदस्यों' या 'निकट संबंधियों' द्वारा दायर की जा सकती हैः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2020-12-07 09:07 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि मृत व्यक्ति की मानहानि (जिसके खिलाफ आरोप लगाया गया है)के मामले में केवल 'परिवार के सदस्य' या ' निकट के संबंधी' ही भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत मानहानि की शिकायत दर्ज करने के लिए 'पीड़ित' होने का दावा कर सकते हैं।

आर्य समाजवादी व स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय चौधरी मट्टू राम हुड्डा (पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के दादा) के अनुयायी संत कंवर ने पूर्व सांसद राज कुमार सैनी के खिलाफ मानहानि की शिकायत दायर की थी और आरोप लगाया था कि सैनी ने स्वर्गीय हुड्डा के खिलाफ कई अपमानजनक बयान दिए थे। सैनी ने इस मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन के आदेश और शिकायत को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रूख किया था।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 199 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि मानहानि की शिकायत 'एक पीड़ित व्यक्ति' द्वारा की जा सकती है। न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि आईपीसी की धारा 499 के स्पष्टीकरण 1 में कहा गया है कि किसी मृत व्यक्ति पर कोई भी आरोप लगाना मानहानि के समान होगा,यदि उस आरोप से उस व्यक्ति (जीवित रहने के दौरान) की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है और इस तरह के आरोप लगाने का इरादा उसके परिवार के सदस्यों या निकट के रिश्तेदारों की भावनाओं को आहत करने का था। अदालत ने कहा किः

'' इसलिए वैधानिक योजना इंगित करती है कि 'व्यथित व्यक्ति' में व्यक्तिगत हित का एक तत्व होना चाहिए या तो उस व्यक्ति की खुद की बदनामी हुई हो या मृत व्यक्ति के मामले में उसके परिवार के सदस्य या निकट के रिश्तेदारों की। यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि सीआरपीसी की धारा 320 मानहानि के अपराध को कंपाउडिंग करने की अनुमति देती है लेकिन ऐसा तभी हो सकता है,जब वह व्यक्ति इसके लिए सहमत हो,जिनकी बदनामी की गई थी।''

अदालत ने कहा कि इस मामले में, शिकायतकर्ता ने स्वंय को स्वर्गीय चौधरी मट्टू राम हुड्डा के परिवार का सदस्य या उनके निकट संबंधी होने का दावा नहीं किया है। कोर्ट ने कहा कि शिकायत बनाए रखने योग्य नहीं है,इसलिए इसे खारिज किया जा रहा है। अदालत ने कहा किः

''सम्मन आदेश यह प्रकट करता है कि उन्होंने मजिस्ट्रेट के सामने दलील दी थी कि वह एक 'व्यथित व्यक्ति' की परिभाषा के अंदर आता है क्योंकि उनके परिवार का स्वर्गीय चौधरी मट्टू राम हुड्डा से निकट का संबंध था, लेकिन यह दावा किसी वास्तविक 'संबंध' की बजाय वैचारिक विचार पर अधिक आधारित है। शिकायत में किसी भी तरह के पारिवारिक संबंध का संकेत नहीं दिया गया था। आईपीसी की धारा 499 के स्पष्टीकरण 1 में कहा गया है कि मृतक व्यक्ति (जिस पर आरोप लगाए गए हो) के 'परिवार के सदस्य' या 'निकट के रिश्तेदार' ही ''व्यथित व्यक्ति' होने का दावा कर सकते हैं।

इसलिए, प्रतिवादी-शिकायतकर्ता, जो स्वर्गीय चौधरी मट्टू राम हुड्डा के 'परिवार के सदस्य' या 'निकट के रिश्तेदार' नहीं है, वह एकतरफा रूप से सीआरपीसी की धारा 199 के तहत खुद को 'पीड़ित व्यक्ति' का दर्जा नहीं दे सकता है ताकि वह यह कह सके कि उसकी भावनाएं आहत हुईं है और मानहानि के कथित अपराध के लिए मजिस्ट्रेट के सामने याचिकाकर्ता के खिलाफ दायर शिकायत को बनाए रखा जाए।''

वास्तव में, शिकायत में शुरूआत में ही कई कमियां थी, इसलिए यह शिकायत सुनवाई योग्य नहीं थी।''

केस-राज कुमार सैनी बनाम संत कंवर,सीआरएम-एम-30950/2019

कोरम-जस्टिस संजय कुमार

परामर्शदाता-वरिष्ठ वकील विनोद घई, अधिवक्ता कनिका आहूजा

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