शिकायतकर्ता को शिकायत में घरेलू हिंसा के हर एक कृत्य के विस्तृत विवरण का उल्लेख करने की आवश्यकता नहींः उड़ीसा हाईकोर्ट ने ससुराल वालों के खिलाफ मामला खारिज करने से इनकार किया
उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि शिकायतकर्ता को शिकायत में भी घरेलू हिंसा के हर एक कृत्य के विस्तृत विवरण का उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार, घरेलू हिंसा से महिलओं का संरक्षण अधिनियम 2005(पीडब्ल्यूडीवी एक्ट) के तहत शिकायत बनाए रखने के लिए हिंसा के कृत्यों का प्रथम दृष्टया खुलासा भी पर्याप्त होगा।
कार्यवाही खत्म करने की प्रार्थना करने वाली एक रिविजन याचिका को खारिज करते हुए, जस्टिस शशिकांत मिश्रा की पीठ ने कहा,
‘‘शिकायत याचिका पर विचार करने के बाद इस न्यायालय का मानना है कि कुछ आरोप निस्संदेह सामान्य शब्दों में लगाए गए हैं, लेकिन शिकायतकर्ता से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वह ऐसे हर एक कृत्य के विस्तृत विवरण का हवाला दे, जिसे घरेलू हिंसा के कृत्य के रूप में माना जा सकता है।’’
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता प्रतिवादी पक्ष (शिकायतकर्ता) के सास-ससुर हैं, जिन्होंने अपने बेटे की शादी 13.12.2015 को की थी। यह आरोप लगाया गया था कि अतिरिक्त दहेज सहित विभिन्न आधारों पर उसके पति और ससुराल वालों ने उसके साथ घरेलू हिंसा की। नियमित रूप से प्रताड़ित किए जाने के कारण प्रतिवादी पक्ष इतना विवश हो गई कि उसने एसडीजेएम, बेरहामपुर की अदालत में पीडब्ल्यूडीवी एक्ट की धारा 12 के तहत शिकायत दायर कर दी।
याचिकाकर्ता पेश हुए और उनके खिलाफ कार्यवाही बंद करने के लिए एक आवेदन दायर किया क्योंकि उनके खिलाफ कार्यवाही जारी रखने के लिए शायद ही कोई सामग्री थी। हालांकि, एसडीजेएम ने उनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आवेदन में स्पष्ट रूप से उनके खिलाफ मामला बनता है। इसके बाद उन्होंने सत्र न्यायालय के समक्ष अपील की और अपीलीय अदालत ने भी यह कहा कि शिकायत याचिका प्रथम दृष्टया घरेलू हिंसा के मामले का खुलासा करती है। इसलिए, अपील खारिज कर दी गई।
उक्त आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में वर्तमान रिविजन याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ वकील सूर्य प्रसाद मिश्रा ने तर्क दिया कि यदि शिकायत याचिका में लगाए गए आरोपों को निष्पक्ष रूप से देखा जाए, तो यह पता चलेगा कि आरोप मुख्य रूप से पति के खिलाफ निर्देशित हैं। उन्होंने तर्क दिया कि सबसे पहले घरेलू हिंसा के तहत किए गए अपराध को दिखाने के लिए कोई आरोप नहीं हैं और दूसरी बात यह है कि ये न्यायिक रूप से नोट किए जाने के लिए बहुत सामान्य प्रकृति के हैं।
उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि सभी ससुराल वालों और परिवार के अन्य सदस्यों को केवल उन्हें परेशान करने के लिए फंसाने की प्रवृत्ति चल रही है और इसलिए, उन्होंने न्यायालय से ‘‘अनाज को फूस से अलग’’ करने की प्रार्थना की। अपने तर्कों को पुष्ट करने के लिए उन्होंने श्यामलाल देवड़ा व अन्य बनाम परिमाला मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया।
प्रतिवादी पक्ष की दलीलें
प्रतिवादी पक्ष के वकील एस.के. प्रधान ने तर्क दिया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दायर शिकायत पर ‘अभिवचन के सख्त नियम’ लागू नहीं होते हैं। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के वैधानिक इरादे के संबंध में, यह पर्याप्त होगा यदि शिकायत में प्रथम दृष्टया ऐसे आरोप शामिल हैं जिन्हें बाद में साक्ष्य जोड़कर साबित किया जा सकता है।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि प्रतिवादी पक्ष को अलग-अलग समय पर याचिकाकर्ताओं द्वारा शारीरिक, मानसिक, मौखिक और भावनात्मक यातना के अधीन रखा गया था और इस प्रकार, दोनों निचली अदालतों ने उनके द्वारा दी गई दलीलों को खारिज करके सही किया है।
न्यायालय की टिप्पणियां
शिकायत को समग्र रूप से देखने के बाद, अदालत ने उसमें दिए गए इन कथनों को स्वीकार किया है कि शिकायतकर्ता का पति हिंसक व्यवहार करता था और याचिकाकर्ताओं ने कथित तौर पर उसे ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया और शिकायतकर्ता को यह बात अपने माता-पिता के सामने बताने से भी रोक दिया।
इसके अलावा बेंच ने माना कि हालांकि कुछ आरोप सामान्य शब्दों में लगाए गए हैं, लेकिन शिकायतकर्ता से घरेलू हिंसा के ऐसे हर एक कार्य के ‘विस्तृत विवरण’ की व्याख्या करने की उम्मीद नहीं की जाती है।
कोर्ट ने कहा कि,
‘‘इस प्रकार, जबकि मुख्य आरोप पति के खिलाफ निर्देशित प्रतीत होते हैं, वर्तमान याचिकाकर्ताओं की भूमिका अपने बेटे का समर्थन करने और शिकायतकर्ता के प्रति हिंसक व्यवहार करने से उसे रोकने में चूक करने तक ही सीमित प्रतीत होती है। कुल मिलाकर यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला नहीं बनता है। इसके विपरीत, इस न्यायालय का विचार है कि मामले में दी गई दलीलें प्रथम दृष्टया आचरण के साथ-साथ चूक के माध्यम से शिकायतकर्ता के खिलाफ याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए घरेलू हिंसा के कृत्यों को दर्शाती हैं।’’
हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं को दोषी ठहराने के लिए सक्षम अदालत के समक्ष एक उचित कार्यवाही में आरोपों को साबित करने की आवश्यकता है। लेकिन इस प्रारंभिक चरण में शिकायत में लगाए गए आरोप उनके खिलाफ कार्यवाही जारी रखने के लिए पर्याप्त होंगे।
न्यायालय ने यह भी कहा कि श्यामलाल देवड़ा (सुप्रा) को आसानी से तथ्यात्मक रूप से अलग किया जा सकता है क्योंकि उक्त मामले में पति और सास-ससुर के अलावा परिवार के कई अन्य सदस्यों को उनके खिलाफ घरेलू हिंसा के किसी विशेष आरोप के बिना पक्षकार के रूप में शामिल किया गया था। ऐसी परिस्थितियों में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विशिष्ट आरोपों के अभाव में घरेलू हिंसा का मामला रिश्तेदारों के खिलाफ रद्द करने योग्य है।
परिणामस्वरूप, रिविजन याचिका को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया गया।
केस टाइटल-गिरीश प्रसाद मिश्रा व अन्य बनाम श्रीमती लोपामुद्रा कर
केस नंबर-सीआरएलआरईवी नंबर 266/2020
निर्णय की तिथि- 5 जनवरी 2023
कोरम-जस्टिस शशिकांत मिश्रा
याचिकाकर्ताओं के वकील- श्री सूर्य प्रसाद मिश्रा, वरिष्ठ वकील, श्री सौम्या मिश्रा, श्री ए मोहंता, श्री एम मोहंती और श्री बी जेना,वकील
प्रतिवादी के वकील-श्री एस.के. प्रधान
साइटेशन-2023 लाइव लॉ (ओआरआई) 6
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