एक विवाहित महिला को अपने माता-पिता के घर में रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता के समानः मध्यप्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि शादी के बाद एक विवाहित महिला को अपने पैतृक घर में रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता है और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि वह बिना उचित कारण के अलग रह रही थी।
इस मामले में न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की पीठ एक आपराधिक रिवीजन याचिका पर सुनवाई कर रही थी,जिसमें फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने दण्ड प्रक्रिया संहिता(सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत पति को निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी को प्रति माह 7,000 रुपये का भुगतान करे। इसी मामले में हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की है।
प्रतिवादी पत्नी द्वारा भरण-पोषण के लिए आवेदन इस आधार पर दायर किया गया था कि दहेज की मांग को लेकर उसके पति और ससुराल वालों ने उसे प्रताड़ित किया और उसके साथ मारपीट की। इसके बाद उसे ससुराल से भी निकाल दिया गया और उक्त आवेदन दाखिल करने से सात महीने पहले ही वह अपने पैतृक घर में आकर रहने लग गई थी।
पत्नी का यह भी आरोप था कि इस दौरान पति या ससुराल वालों ने उसे वापस लाने के लिए कोई कोशिश नहीं की।
दूसरी ओर, पति का कहना था कि शुरूआत में पत्नी अपने ससुराल में चार दिन रही थी और उसने कभी भी उसे विवाह को मुकम्मल करने की अनुमति नहीं दी और कथित तौर पर उसकी मर्दानगी पर भी सवाल उठाया था।
आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि उन्हें आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध के लिए बरी कर दिया गया है। इतना ही नहीं जब वह अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए उसके पैतृक घर गया था तो उसका अपमान किया गया था।
फैमिली कोर्ट ने तर्क दिया था कि यह नहीं कहा जा सकता है कि पत्नी बिना किसी उचित कारण के अलग रह रही थी और यह भी पाया कि वह खुद का खर्च उठाने में असमर्थ है क्योंकि वह कोई काम नहीं कर रही थी।
उक्त आदेश को चुनौती देते हुए पति द्वारा प्रस्तुत किया गया कि भरण-पोषण के तौर पर प्रति माह 7000 रुपये की राशि देना उसके लिए संभव नहीं है क्योंकि वह एक छात्र है और एक दुकान पर पार्ट टाइम काम करता है।
मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि,
''इन परिस्थितियों में, इस न्यायालय का विचार है कि प्रतिवादी और उसके माता-पिता के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए परंतु उनको साबित करने में विफल रहने के बाद, यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिवादी बिना किसी उचित कारण के अलग रह रही है।''
इसके अलावा, यह भी कहा किः
''इस प्रकार, यह भी स्पष्ट है कि आवेदक (पति) ने प्रतिवादी (पत्नी) को छोड़ दिया है और वह अपने स्वयं के गलत काम का लाभ नहीं उठा सकता है। इसके अलावा, एक विवाहित महिला को अपने पैतृक घर में रहने के लिए मजबूर करना भी एक क्रूरता है। तदनुसार, कोर्ट का मानना है कि यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिवादी बिना किसी उचित कारण के अलग रह रही है।''
फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश की पुष्टि करते हुए हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि,
''ऐसा प्रतीत होता है कि 06/02/2019 को दिए गए आदेश के तहत न्यायालय ने अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 3,000 रुपये देने का निर्देश दिया था। तदनुसार, यह निर्देश दिया जाता है कि अंतरिम भरण-पोषण के रूप में आवेदक द्वारा भुगतान की गई राशि को भरण-पोषण की राशि के बकाया में समायोजित कर दिया जाए।''
इस प्रकार याचिका खारिज कर दी गई।
केस का शीर्षक-अमर सिंह बनाम श्रीमती विमला
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