'भक्तों को किसी भी भाषा में जाप करने की स्वतंत्रता': मद्रास हाईकोर्ट ने मंदिरों में तमिल में मंत्रों के जाप पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका खारिज की
मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया, जिसमें तमिलनाडु सरकार को 'अन्नई तमिल अर्चनाई' योजना को वापस लेने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई थी, जो मंदिरों के अंदर भक्तों को पुजारियों द्वारा संस्कृत की जगह द्वारा तमिल में मंत्रों के जाप का विकल्प चुनने की अनुमति देती है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अधिकांश मंदिरों की स्थापना अगम सिद्धांतों के अनुसार की गई है और संस्कृत भाषा में मंत्रों का जाप करना सदियों पुरानी परंपरा रही है। इस प्रकार यदि संस्कृत में जाप नहीं किया जाता है तो मंत्रों की पवित्रता नष्ट हो जाएगी।
मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति पीडी ऑडिकेसवालु की पीठ ने कहा कि विचाराधीन मुद्दे को 2008 के उच्च न्यायालय के खंडपीठ द्वारा पहले ही सुलझा लिया गया था जिसमें वीएस शिवकुमार बनाम एम पिचाई बत्तर के मामले में जस्टिस एलीप धर्मा राव और के चंद्रू (दोनों सेवानिवृत्त) शामिल थे।
बेंच ने 2008 के फैसले का हवाला देते हुए कहा,
"अदालत ने माना था कि मंदिरों में तमिल में मंत्रों के जाप को प्रतिबंधित करने के लिए अगमों या अन्य धार्मिक लिपियों में कुछ भी नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि भक्तों के पास उनकी इच्छा पर उनके अर्चना करने के लिए या तो तमिल या संस्कृत में मंत्रों का जाप करने का विकल्प निहित है।"
बेंच ने आगे कहा,
"संस्कृत में ऐसे मंत्रों का जाप करने के मंदिरों में अभ्यास के अलावा भक्त के कहने पर तमिल में मंत्रों का जाप किया जा सकता है या नहीं, इस बड़े मुद्दे को वीएसएस शिवकुमार के बाद के फैसले में निपटाया गया है। याचिकाकर्ता कुछ भी नहीं बताता है इस अदालत को वी.एस. शिवकुमार में व्यक्त विचार से भिन्न विचार रखने की अनुमति दें। यदि याचिकाकर्ता को पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता होती है, तो यह पूरी तरह से अलग स्तर पर होना चाहिए।"
कोर्ट ने आगे कहा कि यह मुद्दा अब और एकीकृत नहीं है और परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है जो न्यायालय को अपने पहले के फैसले पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर करता हो।
कोर्ट ने कहा,
"न्यायिक अनुशासन आदेश देता है कि जब किसी मुद्दे पर निर्णय लिया गया है, जब तक कि परिस्थितियों में बदलाव नहीं हुआ है या इस मुद्दे पर निर्णय को लागू कानून को ध्यान में नहीं रखने के फैसले के कारण संदिग्ध बना दिया गया है या किसी वरिष्ठ मंच के किसी भी फैसले ने हस्तक्षेप नहीं किया है, ब तक मामला पर दोबारा गौर नहीं किया जा सकता है। परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है और वर्ष 2008 में समाप्त हुए मामले पर पुनर्विचार के लिए कोई मामला नहीं बनता है।"
याचिकाकर्ता ने एक अलग डिवीजन बेंच के एक अन्य फैसले पर भी भरोसा किया, जिसने 2008 में तमिल में मंत्र पढ़ने के लिए दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया था।
कोर्ट ने कहा कि 2008 की रिट याचिका को खारिज कर दिया गया था क्योंकि वादी ने तब जोर देकर कहा था कि मंत्रों का जाप केवल तमिल में किया जाना चाहिए और किसी अन्य भाषा में नहीं।
कोर्ट ने फैसला सुनाया कि वह धार्मिक संस्थानों में दूसरों के बहिष्कार के लिए एक विशेष भाषा के उपयोग की अनुमति नहीं दे सकता।
तद्नुसार, याचिका को निस्तारित कर दिया गया।
केस का शीर्षक: रंगराजन नरसिम्हन बनाम प्रधान सचिव एंड अन्य