चीनी वीजा घोटाला : मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने कार्ति चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका में आदेश सुरक्षित रखा
दिल्ली हाईकोर्टने कथित चीनी वीज़ा घोटाले के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज धन शोधन (Money Laundering Case) मामले में कांग्रेस सांसद कार्ति पी चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका पर बुधवार को आदेश सुरक्षित रख लिया।
जस्टिस पूनम ए. बंबा ने कार्ति चिदंबरम की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया, जबकि ईडी की ओर से एएसजी एसवी राजू पेश हुए।
कार्ति चिदंबरम ने 3 जून को शहर की राउज एवेन्यू कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत से इनकार करने के बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
ट्रायल कोर्ट ने दो अन्य लोगों के साथ उनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि कथित अपराध बहुत गंभीर प्रकृति का है। अदालत ने कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान गिरफ्तारी से मिली अंतरिम सुरक्षा को भी रद्द कर दिया।
प्रवर्तन निदेशालय ने वर्ष 2011 में 263 चीनी नागरिकों को वीजा जारी करने से संबंधित कथित घोटाले में कार्ति चिदंबरम, एस. भास्कररमन और विकास मखरिया के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया था, जब उनके पिता पी चिदंबरम गृह मंत्री थे।
ईडी ने सीबीआई द्वारा दर्ज एक एफआईआर का संज्ञान लेते हुए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया था।
मेसर्स तलवंडी साबो पावर लिमिटेड, वेदांत समूह की एक सहायक कंपनी द्वारा 50 लाख रुपये की रिश्वत के भुगतान के आरोपों के संबंध में सीबीआई ने मामला दर्ज किया गया था। मेसर्स तलवंडी साबो पावर लिमिटेड को पंजाब राज्य बिजली बोर्ड (पीएसईबी) द्वारा पंजाब के जिला मानसा में 1980 मेगावाट के थर्मल पावर प्लांट की स्थापना के लिए एक अनुबंध दिया गया था और मैसर्स टीएसपीएल, मेसर्स शेडोंग इलेक्ट्रिक पावर कंस्ट्रक्शन कॉर्प (मैसर्स एसईपीसीओ) नामक एक चीनी कंपनी की मदद से उक्त बिजली संयंत्र की स्थापना की प्रक्रिया में था।
यह आरोप लगाया गया था कि मैसर्स टीएसपीएल को मैसर्स एसईपीसीओ के चीनी विशेषज्ञों के लिए कुछ और प्रोजेक्ट वीज़ा की आवश्यकता थी क्योंकि यह उक्त प्रोजेक्ट की स्थापना के लिए अपने समय से पीछे चल रहा था और इसके कारण इसे बैंक ऋण आदि पर जुर्माने और ब्याज के संदर्भ में भारी वित्तीय नुकसान होने की संभावना थी। ।
प्रोजेक्ट वीज़ा अक्टूबर, 2010 में केवल बिजली और इस्पात क्षेत्रों के लिए एक नए प्रकार के वीज़ा के रूप में पेश किए गए थे और ऐसे वीज़ा जारी करने को नियंत्रित करने वाले विस्तृत दिशानिर्देश भी पी. चिदंबरम, तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री, भारत सरकार के अनुमोदन से जारी किए गए थे।
यह भी आरोप लगाया गया कि उक्त दिशानिर्देशों में प्रोजेक्ट वीजा के पुन: उपयोग का कोई प्रावधान नहीं था और उक्त दिशानिर्देशों से किसी भी विचलन की अनुमति केवल दुर्लभ और असाधारण परिस्थितियों में केंद्रीय गृह सचिव और केंद्रीय गृह मंत्री के अनुमोदन से ही दी गई थी।
सीबीआई द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि आरोपी विकास मखरिया ने मेसर्स टीएसपीएल की ओर से आरोपी एस भास्कररमन से संपर्क किया था, जो आरोपी कार्ति पी चिदंबरम का करीबी सहयोगी था और मामले में अपनी कंपनी के लिए प्रोजेक्ट वीजा फिर से उपयोग करने के लिए उसकी मदद मांगी थी।