हाईकोर्ट ने भीख मांगने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों पर दिल्ली सरकार से विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट मांगी
दिल्ली हाईकोर्ट ने कानून का उल्लंघन करने वाले उन बच्चों के पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों पर दिल्ली सरकार से विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट मांगी है, जिन्हें बाल भिक्षावृत्ति से बचाया गया है और राष्ट्रीय राजधानी के विभिन्न पुनर्वास केंद्रों में रखा गया है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार को उनकी देखरेख में रहने वाले बच्चों पर ऐसे पुनर्वास केंद्रों के दीर्घकालिक प्रभाव के आकलन को स्टेटस रिपोर्ट में शामिल करने का भी निर्देश दिया।
कोर्ट ने यह देखते हुए कि बाल भिक्षावृत्ति के "गंभीर सामाजिक मुद्दे की निरंतरता" के आलोक में विभिन्न पुनर्वास उपायों के प्रभाव की जांच करना महत्वपूर्ण है, अदालत ने सरकार को विस्तृत जवाब दाखिल करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया।
पीठ अजय गौतम द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी और उसके आसपास बाल भिक्षावृत्ति और संबंधित समस्याओं को खत्म करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की मांग की गई थी। याचिका में बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 में निहित प्रावधानों को सख्ती से लागू करने की मांग की गई है।
पीठ ने 09 सितंबर को सुनवाई के दौरान दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा दायर स्टेटस रिपोर्ट पर गौर किया और कहा कि प्रस्तुत आंकड़ों में कुछ महत्वपूर्ण विवरण गायब हैं, खासकर बाल अधिकार निकाय द्वारा संचालित कार्यों की समयसीमा के संबंध में विवरण नहीं है।
अदालत ने मामले को 13 अक्टूबर को सूचीबद्ध करते हुए कहा, “ इसलिए, डीसीपीसीआर को 10 मई 2023 के आदेश का सख्ती से पालन करने और 2016 से आज तक इसके द्वारा किए गए कार्यों का वर्ष-वार विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है।”
अपनी याचिका में गौतम ने संबंधित अधिकारियों को भीख मांगने वाले बेसहारा बच्चों की पहचान करने और उनके पुनर्वास के लिए निर्देश देने की मांग की है।
याचिका में कहा गया है,
“ बच्चों द्वारा भीख मांगने की इस समस्या के पीछे भीख मांगने वाले माफिया सक्रिय हैं और वे वास्तव में भीख मांगने के लिए मासूम बच्चों का अपहरण करते हैं, उन्हें प्रशिक्षित करते हैं, उन्हें मजबूर करते हैं और उन पर अत्याचार करते हैं। हालांकि जो विभाग इस खतरे को रोकने के लिए ज़िम्मेदार है, वह कोई उपचारात्मक कदम उठाने में विफल रहा है।”
दिल्ली के सभी पुलिस स्टेशनों के स्टेशन हाउस अधिकारियों (एसएचओ) को अपने अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले क्षेत्रों में बाल भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए उचित कदम उठाने और इस संबंध में एक बीट अधिकारी या डिवीजन अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है,
“ कोई भी बच्चा अपने लिए भीख नहीं मांगता। उन्हें संगठित अपराधों के एक हिस्से के रूप में इसमें शामिल होने के लिए मजबूर किया जाता है... इन बच्चों को प्रतिदिन के टारगेट दिए जाते हैं। उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, हिंसा की जाती है।''
केस टाइटल : अजय गौतम बनाम दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग एवं अन्य।
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