नाम बदलना भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 व अनुच्छेद 21 के तहत अभिव्यक्ति के अधिकार का एक हिस्सा : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि नाम बदलना (चेंज आॅफ नेम) भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति है।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने कहा कि,
''व्यक्तिगत 'नाम' भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) रिड विद अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति के अधिकार का एक पहलू है। अनुच्छेद 19 (1) के तहत मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने प्रभाव क्षेत्र में अभिव्यक्ति के सभी प्रकार को शामिल करती है और वर्तमान दुनिया में नाम स्पष्ट रूप से एक मजबूत अभिव्यक्ति है।''
पृष्ठभूमि
यह अवलोकन एक कबीर जायसवाल की तरफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए किए गए हैं,जो सीबीएसई की ग्यारहवीं और बारहवीं की परीक्षाओं में रिशु जायसवाल के रूप में उपस्थित हुआ था।
याचिकाकर्ता ने अपना नाम रिशु जायसवाल से कबीर जायसवाल में बदलने के लिए भारत के राजपत्र में नोटिस प्रकाशित करवाया था। उसने दावा किया कि उन्होंने अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड में भी अपना नाम बदल लिया है और यहां तक कि आधिकारिक राजपत्र अधिसूचना भी प्राप्त कर ली है। लेकिन जब उसने अपने सीबीएसई प्रमाणपत्रों में नाम बदलने की कोशिश की, तो बोर्ड ने इस अनुरोध को इस आधार पर खारिज कर दिया कि स्कूल के रिकॉर्ड में नाम परिवर्तन को प्रतिबिंबित नहीं किया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील राम सागर यादव ने कहा कि एक बार बिना किसी आपत्ति के गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है, तो दुनिया में यह घोषणा हो गई है कि याचिकाकर्ता अपना नाम बदलने का इरादा रखता है। इसलिए, बोर्ड के पास सीबीएसई प्रमाणपत्रों में नाम बदलने के लिए उसके आवेदन को अस्वीकार करने का कोई उचित कारण नहीं है।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि चूंकि गजट अधिसूचना प्रकाशित हो चुकी है और उसे सीबीएसई के समक्ष प्रस्तुत भी कर गया था, फिर भी बोर्ड ने ''हाइपर टेक्निकल'' आधार पर उनके आवेदन को खारिज कर दिया।
सीबीएसई के लिए उपस्थित होने वाले वकील, एडवोकेट एचएन पांडे ने तर्क दिया कि इग्जैमनेशन बायलाॅज के रूल नंबर 69.1 (प) और 69.1 (पप) के अनुसार नाम बदलने का अनुरोध नहीं किया जा सकता है। संक्षेप में, नियम उम्मीदवार/ माता/ पिता के नाम में परिवर्तन करने की अनुमति प्राप्त करने से संबंधित हैं। नाम परिवर्तन के आवेदन को अनुमोदित करवाने के लिए, परिणाम के प्रकाशन से पहले या बाद में बोर्ड के समक्ष अनुरोध प्रस्तुत करना होता है। अनुरोध को केवल तभी अनुमोदित किया जा सकता है यदि यह ''स्कूल के रिकॉर्ड में दर्ज नामों के साथ भिन्नता रखता है या उनसे भिन्न है।''
कोर्ट का निष्कर्ष
कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि ''दोनों में से कोई भी नियम परिणाम की घोषणा के बाद उम्मीदवार का नाम या पिता का नाम या माता का नाम बदलने की अनुमति नहीं देता है।''
कोर्ट ने रयान चावला बनाम दिल्ली विश्वविद्यालय व अन्य के मामले का हवाला दिया,जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा इसी तरह के मुद्दे पर विचार किया गया था। इस मामले में डीयू ने 1 जुलाई 2015 की अधिसूचना के आधार पर याचिकाकर्ता को अपना नाम बदलने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। डीयू का कहना था कि अधिसूचना के अनुसार छात्र को सबसे पहले सीबीएसई के रिकॉर्ड में अपना नाम बदलवाना होगा।
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना था कि सीबीएसई के रिकॉर्ड में नाम बदलना असंभव है, क्योंकि संबंधित विनियम इसकी अनुमति नहीं देते हैं,, हालांकि, कोर्ट ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को नाम बदलने की अनुमति दें। न्यायालय ने उल्लेख किया कि सीबीएसई रिकॉर्ड और विश्वविद्यालय रिकॉर्ड में विभिन्न नामों के कारण कठिनाइयां आ सकती हैं। इसलिए, विश्वविद्यालय को निर्देश दिया गया था कि वे यूनिवर्सिटी रिकॉर्ड में ''परिवर्तित नाम उर्फ/पुराना नाम'' दर्ज करके परिवर्तित नाम को शामिल करें।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसके बाद इस मुद्दे पर विचार किया कि क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत निहित अधिकारों को वापिस लेने या प्रतिबंधित करने के लिए सीबीएसई बायलाॅज का उपयोग किया जा सकता है।
यह नोट किया गया कि सीबीएसई एक सोसायटी है, जो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत है, और बायलाॅज द्वारा शासित है। न्यायालय ने कहा कि जब परीक्षा समिति द्वारा 01.02.2018 को अधिसूचना जारी की गई तो उसके साथ यह तथ्य जुड़ा था कि सीबीएसई एक सोसायटी है, तो यह स्पष्ट है कि सीबीएसई के नियमों में ''कोई वैधानिक फ्लेवर नहीं है।''
न्यायालय ने आगे कहा कि, ''भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत निहित अधिकार मौलिक अधिकार हैं और इन्हें भारत संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही वापिस लिया या प्रतिबंधित किया जा सकता है।''
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई फैसलों को पढ़ने के बाद, पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंची कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के संदर्भ में,अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत निहित अधिकारों पर एक उचित प्रतिबंध लगाने के लिए सीबीएसई विनियमों को 'कानून' नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि,
''यह स्पष्ट है कि प्रतिवादियों द्वारा जिन सीबीएसई विनियम का हवाला दिया गया है,उनको अनुच्छेद 19 (2) के तहत आवश्यक 'कानून' नहीं माना जा सकता है, जिसके माध्यम से अनुच्छेद 19 (1) (ए)के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाया जा सके। इस प्रकार, मुझे यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत याचिकाकर्ता को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है और वर्तमान मामले में उसे नाम बदलने के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देने से इनकार नहीं किया जा सकता है और वह अपना नाम बदलने का हकदार है।''
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि अलग-अलग दस्तावेजों पर अलग-अलग नाम होने से याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों को अनुचित कठिनाई होगी।
कोर्ट ने रयान चावला मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए सीबीएसई को निर्देश दिया है कि वह अपने रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता का नाम ''कबीर जायसवाल उर्फ रिशु जायसवाल'' के रूप में बदल दे और दो महीने के भीतर ऊपर दिए गए निर्देश के अनुसार नाम लिखते हुए याचिकाकर्ता को एक नया प्रमाणपत्र जारी कर दें।
केस का शीर्षकःकबीर जायसवाल बनाम भारतीय संघ व अन्य
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