जाति-सर्वेक्षण| पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया- सर्वे रद्द नहीं, केवल आगे का काम और डेटा के प्रसार को रोका गया
पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि उसने अपने 4 मई के आदेश में पूरे 'जाति आधारित सर्वेक्षण' को रद्द नहीं किया है, जिसका 80% काम पूरा हो चुका है। उसने केवल सर्वेक्षण के आगे के काम पर रोक लगा दी है और राजनीतिक दलों को एकत्र की गई जानकारी के प्रसार पर रोक लगा दी।
चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की पीठ ने 9 मई को राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण के खिलाफ दायर रिट याचिकाओं पर सुनवाई शीघ्र करने की प्रार्थना वाली बिहार सरकार के आवेदन को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
राज्य सरकार का तर्क था कि मामले को लंबित रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
गौरतलब हो कि गुरुवार को हाईकोर्ट ने राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण पर अंतरिम रोक लगाते हुए मामले को 3 जुलाई को सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया।
इसलिए, मामले की जल्द सुनवाई की मांग करते हुए, बिहार सरकार ने एक अंतरिम आवेदन दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट का 4 मई का आदेश प्रकृति में अंतरिम है, हालांकि इसने विचाराधीन मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय लिया है और इसलिए, मामले शीघ्र निस्तारण किया जाए।
हालांकि, मंगलवार को कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसने मामले का अंतिम रूप से निस्तारण नहीं किया है और मामले को जब अंतिम रूप से सुना जाना है, जिसके लिए मामले को 03.07.2023 को पोस्ट किया गया है।
अदालत ने कहा, "ऐसी परिस्थितियों में, हम सुनवाई को जल्द से जल्द आगे बढ़ाने का कोई कारण नहीं पाते हैं, खासकर जब मामले को छुट्टी के तुरंत बाद पोस्ट किया गया है।"
इसके अलावा, अदालत ने एडवाकेट जनरल की उस प्रार्थना को भी खारिज कर दिया कि अधिकारियों को एक अंडरटेकिंग के साथ सर्वेक्षण जारी रखने की अनुमति दी जा सकती है कि डेटा की रक्षा की जाएगी और इसका खुलासा नहीं किया जाएगा। पीठ ने कहा कि अगर उसने ऐसा किया, तो यह 4 मई को पारित आदेश पर पुनर्विचार करने के समान होगा।
गौरतलब है कि 4 मई को राज्य में जाति आधारित जनगणना कराने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पटना कोर्ट ने अंतरिम आदेश में जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी।
कोर्ट ने प्रथम दृष्टया कहा कि जाति आधारित सर्वेक्षण एक जनगणना के समान है जिसे करने के लिए राज्य सरकार के पास कोई शक्ति नहीं है।
चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की पीठ मामले में उठे निजता के मुद्दे पर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने इसे 'गंभीर चिंता' का विषय बताया कि सरकार राज्य विधानसभा के विभिन्न दलों, सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल के नेताओं के साथ जनगणना के आंकड़े साझा करना चाहती है।
कोर्ट ने आदेश दिया,
"ऐसी परिस्थितियों में, हम राज्य सरकार को निर्देश देते हैं कि वह जाति आधारित सर्वेक्षण को तुरंत बंद करे और यह सुनिश्चित करे कि पहले से ही एकत्र किए गए डेटा को सुरक्षित रखा जाए और रिट याचिका में अंतिम आदेश पारित होने तक किसी के साथ साझा न किया जाए।"
केस टाइटलः यूथ फॉर इक्वेलिटी और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य, संबंधित रिट याचिकाओं के साथ
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