मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नाबालिग बलात्कार पीड़िता की 18 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी, फैसले में कहा-"'नाबालिग की पीड़ा के प्रति मूकदर्शक नहीं बने रह सकते'

Update: 2023-08-19 08:46 GMT
Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

MP High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में 16 वर्ष 6 महीने की एक रेप सर्वााइवर को 18 सप्ताह के गर्भ को टर्मिनेट कराने की अनुमति दी। मेडिकल बोर्ड ने टर्मिनेशन की सिफारिश की थी।

जस्टिस मिलिंद रमेश फड़के की पीठ ने लड़की के 'भविष्य' को ध्यान में रखा। कोर्ट ने माना कि उसके गर्भ में एक बलात्कारी का भ्रूण है और ऐसे बच्चे का पालन-पोषण करते समय उसे जीवन भर आघात का सामना करना पड़ेगा।

कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चे को भी अपना पूरा जीवन इस प्रकार के सामाजिक कलंक के साथ जीना होगा। कोर्ट ने लड़की के भविष्य के मद्देनज़र उसकी पहचान गुप्त रखने का निर्देश दिया।

मामले में याचिकाकर्ता नाबालिग लड़की का पिता है। उसने अपनी बेटी की गर्भावस्था को समाप्त कराने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उसने बताया कि उसकी नाबालिग बेटी लापता हो गई थी।

आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर मे आईपीसी की धारा 363, 366, 376 (3) और पॉक्सो एक्ट की धारा 5/6 के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाया गया था।

जांच के दौरान, याचिकाकर्ता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की ‌थी, जिसके बाद जांच एजेंसी ने कॉर्पस को अदालत के समक्ष पेश किया था, जहां यह पता चला कि कॉर्पस गर्भवती है। खुली अदालत में पीड़िता की काउंसलिंग की, जिसमें उसने अपने पिता के साथ रहना स्‍वीकार नहीं किया। जिसके बाद उसे वन स्टॉप सेंटर भेज दिया गया।

पीड़िता के माता-पिता वन स्टॉप सेंटर गए, जहां याचिकाकर्ता की बेटी ने नाबालिग होने के कारण गर्भावस्था को समाप्त करने की इच्छा व्यक्त की। न्यायालय के निर्देश के अनुसार, एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया, जिसने अपनी रिपोर्ट में गर्भपात कराने की सिफारिश की।

कोर्ट ने अपने फैसले में मुरुगन नायकर बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया और अन्य 2017 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला दिया, जिसमें 13 वर्षीय बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी गई थी।

हाईकोर्ट ने "लड़की की उम्र, उसे होने वाले आघात, फिलहाल वह जिस पीड़ा से गुजर रही है उसे और मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी।"

कोर्ट ने फैसले में कहा,

"चूंकि नाबालिग गर्भवती के जीवन को खतरा है। उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर चोट लगी है। इसलिए इस न्यायालय की राय है कि वह यातना से गुजर रही नाबालिग की पीड़ा के प्रति मूकदर्शक नहीं बनी रह सकती है और उसे कार्रवाई करनी होगी।''

उक्त टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने जीआर मे‌डिकल कॉलेज, ग्वालियर के डॉक्टरों की एक इंटर-डि‌सिप्लिनरी टीम गठित करने का निर्देश दिया और उन्हें गर्भावस्था को समाप्त करने की आवश्यक प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया।

केस टाइटलः XYZ बनाम राज्य और मध्य प्रदेश और अन्य

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