100 फीसदी दक्षता की अपेक्षा नहीं कर सकते: कर्नाटक हाईकोर्ट ने दुर्घटना/प्रैक कॉल से बचने के लिए अनिवार्य 'पैनिक' बटन के खिलाफ जनहित याचिका का निस्तारण किया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को संकटग्रस्त या जरूरतमंद नगारिकों की ओर से उठाए गए मुद्दों के समाधान के लिए आपातकालीन प्रतिक्रिया समर्थन प्रणाली प्रदान करने में राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की।
चीफ जस्टिस प्रसन्ना बी वराले और जस्टिस अशोक एस किनागी की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि उपाय नागरिक के लिए अनुकूल, उत्तरदायी और कुशल हैं।
पीठ ने यह अवलोकन अरुणकुमार एनटी की ओर से दायर एक जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए किया, जिसने राष्ट्रीय आपातकालीन नंबर 112 या अन्य त्वरित प्रतिक्रिया सुविधा नंबरों के आकस्मिक दुरुपयोग और कुछ प्रैंकस्टर्स द्वारा दुरुपयोग के संबंध में एक कारण उठाया था।
यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा 2016 में जारी एक अधिसूचना का हवाला देते हुए, जो सभी मोबाइल हैंडसेट में 'पैनिक बटन' को अनिवार्य करता है, याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि अगर नाबालिगों/बच्चों द्वारा चिंतावश बटन बार-बार दबाया जाता है, तो त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली दूसरे कॉल करने वालों, जिन्हें वास्तविक कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, जवाब देने में असमर्थ हो जाएगी।
यह प्रस्तुत किया गया कि यद्यपि आपातकालीन प्रतिक्रिया समर्थन प्रणाली जैसी प्रणाली कुछ अप्रत्याशित स्थितियों से निपटने और कुछ शरारतों को रोकने के उद्देश्य के साथ स्थापित की गई है, प्रणाली का दुरुपयोग किया गया है। इस प्रकार मोबाइल फोन हैंडसेट में पैनिक बटन को अनिवार्य न बनाकर, नियमों में बदलाव करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
रिकॉर्ड को देखने के बाद पीठ ने कहा कि "राज्य सरकार की प्रतिक्रिया सराहनीय है। उन्होंने याचिका को विरोधात्मक मुकदमेबाजी के रूप में नहीं लिया है...राज्य के सीनियर पुलिस ऑफिर्स ने याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत रूप से यह देखने के लिए आमंत्रित किया है कि कमांड सेंटरों में कैसे कामकाज होता है। सीनियर पुलिस अधिकारी का यह संकेत निश्चित रूप से नागरिक अनुकूल और स्वागत योग्य है।
कमांड सेंटरों के दौरे के बाद याचिकाकर्ता की ओर से दायर जवाब और राज्य सरकार की आपत्तियों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा, "अब यह सामान्य ज्ञान है कि एक बार सिस्टम स्थापित हो जाता है और कार्यशील हो जाता है उसके बाद भी सिस्टम की 100 प्रतिशत दक्षता की उम्मीद नहीं की जाती है। कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जो सिस्टम के कामकाज में सामने आ सकते हैं, ऐसे मुद्दों का सामना करने पर सिस्टम के ऑपरेटरों को सिस्टम को अपडेट करना चाहिए। यह भी सामान्य ज्ञान है कि ऐसी प्रणालियां अत्यधिक तकनीकी प्रणालियां हैं और उन्हें संभालने वाले व्यक्ति इस क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। सिस्टम को कैसे स्थापित किया जाना है, इसे कैसे काम करना चाहिए, स्थापना/कार्यप्रणाली के दौरान कौन से उपाय किए जाने की आवश्यकता है, ये ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्तियों पर छोड़ दिया जाना आवश्यक है। निश्चित रूप से यह अदालत ऐसे तकनीकी मुद्दों पर किसी विशेषज्ञता का दावा नहीं कर सकती है।”
पीठ ने कहा,
"हमें यकीन है कि अगर सिस्टम को संभालने या काम करने में कोई समस्या आती है, तो सिस्टम की देखभाल करने वाले विशेषज्ञ यह देखने के लिए उचित कदम उठाएंगे कि मुद्दों को हल किया जाए और सिस्टम को और अधिक कुशल और प्रभावी बनाया जाए।"
इस प्रकार कोर्ट ने कहा "जैसा कि हम सिस्टम के संचालन या कामकाज के लिए कोई निर्देश जारी करने का कोई कारण नहीं देखते हैं।"
तदनुसार इसने जनहित याचिका का निस्तारण किया जिसमें याचिकाकर्ता को बड़े पैमाने पर जनता के लिए अतिरिक्त सुविधा (सुरक्षा ऐप) के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कदम उठाने का सुझाव दिया गया था।
केस टाइटल: अरुण कुमार एनटी और पुलिस उपायुक्त व अन्य।
केस नंबर : डब्ल्यूपी 14221/2021
साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (कर) 74