अगर मुख्य आरोपी को समान आरोप के लिए समान गवाहों की गवाही पर विचार करते हुए बरी कर दिया जाता है तो सह-अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-03-31 11:43 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि अगर मुख्य आरोपी को समान आरोप के लिए समान गवाहों की गवाही पर विचार करते हुए बरी कर दिया जाता है तो सह-अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार गुप्ता (Justice Suresh Kumar Gupta) की खंडपीठ ने देखा कि आईपीसी की धारा 364-ए [फिरौती के लिए अपहरण], धारा 34 के आरोपों को खारिज कर दिया, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के एक समूह की गवाही के आधार पर इस मामले के मुख्य आरोपी को निचली अदालत पहले ही बरी कर चुकी है।

गौरतलब है कि इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोर्ट ने दीवान सिंह बनाम राज्य 1964 मुकदम 182 के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया। इसमें यह अभिनिर्धारित किया गया था कि यदि आरोप और गवाह समान हैं और गवाहों की गवाही के बाद एक आरोपी को बरी कर दिया जाता है, तो ऐसी परिस्थितियों में, सह-अभियुक्त की दोषसिद्धि को कायम नहीं रखा जा सकता है।

पूरा मामला

विपक्षी दल नं. 2 - मातादीन ने अक्टूबर 2016 में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 364-ए के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि किसी अज्ञात आरोपी ने उनके भाई सिकंदर का अपहरण कर लिया है।

जांच के दौरान वर्तमान आवेदक समेत पांच लोगों के नाम सामने आए, इसके बाद पुलिस ने 3 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। इन व्यक्तियों के खिलाफ अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, सुल्तानपुर के समक्ष मुकदमा चलाया गया।

सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से तीन गवाहों का परीक्षण कराया गया। पीडब्लू-1 मातादीन, जो पहले मुखबिर और अपहरणकर्ता के भाई हैं, ने अभियोजन मामले का समर्थन नहीं किया। पीडब्लू-2 मोनू उर्फ दिलीप कुमार, अपहरणकर्ता की भतीजी ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी ने उसे अपने मोबाइल फोन पर 25,00,000 रुपये की फिरौती के लिए नहीं बुलाया था और उसने अभियोजन मामले का समर्थन भी नहीं किया था। पीडब्लू-3 अपहरणकर्ता सिकंदर है, जिसने अभियोजन मामले का भी समर्थन नहीं किया।

इसे देखते हुए, तीनों अभियुक्तों को उनके खिलाफ धारा 364-ए आईपीसी के तहत लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया गया और उन्हें 28 सितंबर, 2018 तक बरी कर दिया गया।

हालांकि, 24 दिसंबर, 2018 को इसी मामले में पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ एक चार्जशीट पेश की और उसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा 18 जनवरी 2019 को आदेश दिनांकित किया गया। चार्जशीट और समन आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।

कोर्ट की टिप्पणियां

मामले के तथ्यों और दीवान सिंह (सुप्रा) मामले में हाईकोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने इस प्रकार देखा,

"गवाहों की गवाही पर विचार करते हुए, यदि एक आरोपी को बरी कर दिया जाता है, तो गवाहों के एक ही सेट पर सह-अभियुक्तों के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती है और वर्तमान मामले में भी, कोई अलग गवाह नहीं है और आधार पर अभियोजन पक्ष के एक ही गवाह की गवाही, मुख्य आरोपी को नीचे की अदालत ने बरी कर दिया, जब भी मामले के दोषसिद्धि में समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है, तो अदालत का बहुमूल्य समय केवल निष्कर्ष सुनाने की प्रक्रिया को पूरा करने के उद्देश्य से परीक्षण करने के लिए बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए, आवेदक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के तहत न्यायालय ने माना कि आईपीसी की धारा 364-ए/34 के तहत आवेदक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती है और इसे रद्द कर दिया गया।

केस का शीर्षक - अनंत मिश्रा @ अमित मिश्रा @ सूर्य प्रकाश मिश्रा बनाम यूपी राज्य एंड अन्य

केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 148

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