पीड़ित बच्चे से यह उम्‍मीद नहीं कर सकते कि वह तोते की तरह घटना बयान करे : मद्रास हाईकोर्ट ने चार साल की छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोपी स्कूल शिक्षक को बरी करने के आदेश को पलटा

Update: 2021-10-20 15:24 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में पुडुचेरी में एक स्कूल शिक्षक को एक नाबालिग छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोप से बरी करने के निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि चार साल के बच्चे से यौन उत्पीड़न के संबंध में ठोस गवाही या सबूत देने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। शिक्षक अर्लम पेरीरा को पोक्सो एक्ट के तहत दो मामलों में सजा सुनाई गई थी।

जस्टिस पी वेलमुरुगन ने कहा,

"पीड़िता एक बच्ची है, जो घटना के समय केवल 5 वर्ष की थी, वह तोते के जैसी घटना के सभी चरणों के बारे में बात नहीं कर सकती और उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि उसे सभी घटनाओं और आरोपी के कृत्यों को याद रखना चाहिए। .. उक्त कारण से हम पीड़ित बच्चे के साक्ष्य को अनदेखा नहीं कर सकते, जो वास्तव में प्रतिवादी/अभियुक्त द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार हुई थी।"

कोर्ट ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष गलत हैं क्योंकि ट्रायल जज इस बात पर विचार करने में विफल रहे कि 4 साल का बच्चा यौन उत्पीड़न की घटना को बहुत विस्तार से याद नहीं कर सकता है।

पृष्ठभूमि

इस मामले में आरोपी सेंट जोसेफ प्ले स्कूल, तिरुवल्लुवर स्ट्रीट, सुगुमर नगर, कालीतीर्थलकुप्पम, पुडुचेरी में अंग्रेजी शिक्षक के रूप में कार्यरत था। अप्रैल, 2018 से पहले कई मौकों पर उसने नाबालिग पीड़िता को जबरन गोद में बैठाकर और स्कूल के घंटों के बाद उसका यौन उत्पीड़न किया था। 27 मार्च, 2018 को आरोपी ने नाबालिग पीड़िता को कथित तौर पर यह कहकर धमकी दी थी कि अगर उसने किसी को यौन उत्पीड़न की घटनाओं के बारे में बताया तो वह उसे जान से मार देगा।

इसके बाद, 2 अप्रैल, 2018 को नाबालिग ने अपनी मां को उन घटनाओं के बारे में बताया, जिसके बाद आरोपी के खिलाफ पोक्सो अधिनियम की धारा 6 और 10 और आईपीसी की धारा 506 (ii) के तहत मामला दर्ज किया गया।

टिप्पणियां

प्रतिद्वंद्वी की दलीलों के अवलोकन के बाद अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि पीड़िता को उसकी मां ने स‌िखाया था। अदालत ने कहा कि नाबालिग से सभी विवरणों को याद रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती है और मां के लिए पीड़िता को याद करने में उसकी सहायता करना स्वाभाविक है।

अदालत ने यह भी नोट किया कि ऐसे मामलों में आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज करने में देरी अभियोजन पक्ष के लिए घातक नहीं है क्योंकि मां के लिए बच्चे के भविष्य और परिवार की प्रतिष्ठा के बारे में चिंता करना स्वाभाविक है।

आगे यह स्पष्ट करते हुए कि दोषियों को केवल तकनीकी आधार पर बरी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, न्यायालय ने कहा, "अपराधी तकनीकी कारणों से भाग रहे हैं और दुर्भाग्य से जांच इकाई भी मानक के अनुरूप नहीं है और जांच में दोष या गलती के कारण अधिकांश मामलो में अपराधी बच कर भाग रहे हैं। इसलिए, तकनीकी को न्याय प्रशासन के रास्ते में खड़े होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"

आगे यह भी कहा गया कि ट्रायल कोर्ट जांच में दोष का अनुचित लाभ उठाकर अपने विवेक का उपयोग नहीं करने और सभी उचित संदेह से परे सबूत की तलाश करने की प्रैक्टिस में लिप्त हैं। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के 6 अक्टूबर, 2020 के फैसले को को रद्द कर दिया और आरोपी को 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।

केस शीर्षक: राज्य बनाम अर्लम पेरीरा

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