क्या सीपीसी के आदेश VII नियम 10, 10ए का पालन किए बिना आर्थिक क्षेत्राधिकार के अभाव में वाद वापस किया जा सकता है? कर्नाटक हाईकोर्ट ने दिया जवाब

Update: 2022-11-09 05:14 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई भी दीवानी अदालत नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश VII के नियम 10 की आवश्यकताओं का पालन किए बिना आर्थिक क्षेत्राधिकार की कमी के आधार पर कोई वाद वापस नहीं कर सकती है।

धारवाड़ स्थित न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने एक दिवंगत सैन्य अधिकारी आनंद की मां येलव्वा द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और ट्रायल कोर्ट अदालत द्वारा पारित उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें बैंक सहित अधिकारियों को उनके बैंक खातों और मृतक के खाते में उपलब्ध राशि में से कोई भी राशि बहू को जारी करने से रोकने संबंधी अर्जी खारिज कर दी गयी थी।

बेंच ने कहा:

"कोई भी न्यायालय सीपीसी के आदेश VII के नियम 10 की आवश्यकताओं का पालन किए बिना आर्थिक क्षेत्राधिकार की कमी के आधार पर वाद वापस नहीं कर सकता है, जो सीपीसी के आदेश VII के नियम 10ए के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करता है।"

मामले का विवरण:

याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों के खिलाफ कुछ राहत की मांग करते हुए एक मुकदमा दायर किया था। नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश XXXIX नियम 1 और 2 के तहत एक आवेदन दायर किया गया था, जिसमें बैंक को मृतक सैन्यकर्मी की पत्नी को कोई भी राशि जारी करने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा की मांग की गई थी। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश दिनांक 28.11.2016 द्वारा इसे इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसका कोई आर्थिक क्षेत्राधिकार नहीं है।

निष्कर्ष :

पीठ ने कहा कि यह एक "अजीब मामला" है जहां सीपीसी के आदेश XXXIX नियम 1 और 2 के तहत दायर एक आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया है कि कोर्ट के पास आर्थिक क्षेत्राधिकार नहीं है। बेंच ने कहा कि ऐसा करते हुए कोई और तारीख नहीं दी गयी है।

पीठ ने आदेश VII के नियम 10 और 10ए का हवाला देते हुए कहा:-

"सीपीसी का आदेश VII के उप-नियम 10ए यह स्पष्ट करता है कि प्रतिवादी के पेश होने के बाद किसी भी मुकदमे में यदि कोर्ट की राय है कि वाद को वापस किया जाना चाहिए तो ऐसा करने से पहले वादी को उक्त निर्णय की सूचना दिया जाना चाहिए और जब उक्त निर्णय की सूचना दी जाती है, तो वादी उस कोर्ट को निर्दिष्ट करते हुए एक आवेदन कर सकता है, जिसमें वह अपनी याचिका की वापसी के बाद वादपत्र प्रस्तुत करने का प्रस्ताव करता है और कोर्ट से पक्षकारों की उपस्थिति के लिए एक तिथि निर्धारित करने के लिए प्रार्थना करता है और यह भी अनुरोध किया जाता है कि इस प्रकार तय की गई तारीख की सूचना उसे और प्रतिवादी को दी जाए।"

इसमें कहा गया,

"सीपीसी के आदेश VII के नियम 10 ए के उप-नियम (2) के तहत आवेदन नहीं किए जाने की स्थिति में कोर्ट वाद वापस करते समय पक्षकारों की उपस्थिति के लिए एक तारीख तय करेगा, जिसमें वादी और प्रतिवादी को उपस्थित होने के लिए ऐसी तारीख की सूचना दी जाएगी।"

पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने सेना के मृतक जवान की मां की अर्जी को सीपीसी के आदेश XXXIX नियम 1 और 2 के तहत इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसके पास कोई आर्थिक क्षेत्राधिकार नहीं है।

पीठ ने कहा:

"न तो कोर्ट ने वाद वापस किया है और न ही इसने सीपीसी के आदेश VII के नियम 10 और न ही नियम 10ए के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया है। इसलिए मेरा सुविचारित मत है कि आक्षेपित आदेश कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है और यह लागू कानून के योग्य कानून के विपरीत है।"

अपने पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए, कोर्ट ने सीपीसी के आदेश XXXIX नियम 1 और 2 के तहत दायर वादकालीन याचिका (आईए) को अनुमति दी और प्रतिवादी अधिकारियों को वाद के निपटान तक मृतक के हिस्से में आने वाली 50 फीसदी से अधिक राशि वितरित करने से रोक दिया।

इसके अलावा, इसने कहा,

"चूंकि ट्रायल कोर्ट की राय है कि उसके पास आर्थिक क्षेत्राधिकार नहीं है, इसलिए मामला सीपीसी के आदेश VII के नियम 10 और 10ए की आवश्यकताओं का पालन करने के लिए ट्रायल कोर्ट को भेजा जाता है, जो ट्रायल कोर्ट द्वारा कागजात प्राप्त होने के 15 दिनों की अवधि के भीतर निर्धारित किया जाएगा।"

केस शीर्षक: येलव्वा बनाम सावित्री

केस नंबर: रिट याचिका संख्या 109954/2016

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर्नाटक) 448

आदेश की तिथि: 21 अक्टूबर, 2022

पेशी: एस.बी. हेब्बल्ली (याचिकाकर्ता के अधिवक्ता); गुरुदेव गच्चिनमठ (प्रतिवादी-1 के वकील); एपी कामोजी, (प्रतिवादी 2 के वकील); एम बी कनावी (प्रतिवादी 3, 5 एवं 6 के वकील); के एस पाटिल (प्रतिवादी 4 के लिए)

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News