आरोपी को जमानत देते समय पीड़ित के सापेक्ष लाभ/संपत्ति की बहाली की शर्त लगा सकते हैं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2021-08-11 10:57 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि आरोपी को जमानत देते समय पीड़ित के सापेक्ष लाभ/संपत्ति की बहाली की शर्त लगा सकते हैं।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि आरोपी को जमानत देते समय पीड़ित के सापेक्ष लाभ/संपत्ति की बहाली की ऐसी कोई शर्त लगाने को अनुमेय कठिन स्थिति की श्रेणी में नहीं कहा जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि,

"मेरा विचार है कि यदि अभियुक्त ने धोखाधड़ी/जबरन पीड़ित से लाभ/संपत्ति प्राप्त करने के संबंध में स्वीकार किया है या प्रथम दृष्टया अभेद्य दस्तावेजी सामग्री/वीडियो फुटेज आदि है और आरोपी अपने कानूनी अधिकार को दिखाने में विफल रहता है तो कोर्ट आरोपी को जमानत देते समय पीड़ित के सापेक्ष लाभ/संपत्ति की बहाली की शर्त लगा सकता है।"

संक्षेप में तथ्य

याचिकाकर्ता सुप्रीम सिक्योरिटीज लिमिटेड की चंडीगढ़ शाखा में एक वरिष्ठ कार्यकारी के रूप में कार्यरत थी और वह तीन अन्य लोगों के साथ शाखा के दिन-प्रतिदिन के व्यवसाय के लिए नियत रूप से अकाउंट बुक बनाए रखने के लिए जिम्मेदार थी।

कथित तौर पर चारों आरोपियों ने आपस में मिलीभगत और षडयंत्र के तहत और सामान्य मंशा से कंपनी के करीब 5.50 करोड़ रुपये का गबन किया।

न्यायालय की टिप्पणियां

न्यायालय ने शुरुआत में पाया कि गबन के मामलों में, धोखाधड़ी से प्राप्त / जबरन चल / अचल संपत्ति पर कब्जा करना पीड़ित को प्राप्त लाभ / आरोपी द्वारा ली गई संपत्ति की क्षतिपूर्ति एक महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि आरोपी को अपने अपराध को समाप्त करने अनुमति नहीं दी जा सकती है।

अदालत ने इसके अलावा कहा कि आरोपी को जमानत देने के समय, यदि आरोपी को ऐसा कोई लाभ प्राप्त होने के संबंध में अभेद्य दस्तावेजी सामग्री / वीडियो फुटेज आदि मौजूद है और आरोपी कानूनी रूप से लागू करने योग्य अधिकार के बारे में कोई उचित स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं करता है। उसी के लिए उसे बहुत अच्छी तरह से पीड़ित को लाभ बहाल करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है।

कोर्ट से पूछा कि,

"उदाहरण के लिए यदि प्रामाणिक स्रोत से वीडियो फुटेज आ रहा है कि आरोपी द्वारा पीड़ित का मोबाइल फोन और वाहन छीन लिया गया है और पुलिस उपेक्षा करती है, विफल हो जाती है या उसे पुनर्प्राप्त करने में असमर्थ है तो क्या यह उचित नहीं होगा कि न्यायालय जमानत देते समय या संज्ञान लेने के बाद प्रारंभिक चरण में पीड़िता को आरोपी द्वारा उसी की बहाली की शर्त लगाए?

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि,

"शिकायतकर्ता को उसकी अपील के अंतिम निपटान द्वारा अभियुक्त के अपराध के अंतिम निर्धारण तक मुआवजे के भुगतान तक इंतजार करना, जिसमें वर्षों या दशकों भी लग सकते हैं, पीड़ित को उसके जीवन के मौलिक अधिकार, वैधानिक अधिकार और स्वतंत्रता से अवैध रूप से वंचित करने के बराबर है?"

न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उपयुक्त मामलों में आपराधिक न्यायालय आरोपी को जमानत देने के प्रश्न पर विचार करते समय आरोपी को अपनी चल और अचल संपत्तियों / संपत्तियों का खुलासा करने का निर्देश दे सकता है और यह भी एक अंडरटेकिंग प्रस्तुत करने के लिए कह सकता है कि वह अपराध के शिकार व्यक्ति को अंतरिम/अंतिम मुआवजे की क्षतिपूर्ति/भुगतान के लिए न्यायालय द्वारा पारित किसी भी आदेश को विफल करने के लिए धोखाधड़ी से इसे स्थानांतरित नहीं करेगा और ऐसी किसी भी शर्त को लागू करना अनुमेय कठिन की श्रेणी में नहीं आएगा।

अदालत ने अंत में याचिकाकर्ता को अपनी अचल संपत्तियों के बारे में जानकारी करने की शर्त के अधीन जमानत दी और यह भी एक वचन दिया कि याचिकाकर्ता अदालत से अनुमति प्राप्त किए बिना इसे ट्रांसफर नहीं करेगा।

केस का शीर्षक- प्रिया शर्मा बनाम केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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